पूर्णिया : रबी के सीजन के दौरान देश में मक्का के कुल उत्पादन का 80 फ़ीसदी हिस्सा बिहार से आता है लेकिन, अब हाल ये है कि किसान फसल की लागत तक न निकल पाने से निराश हैं. फसलों की सही कीमत न मिल पाने के कारण गांव के कई किसान मेहनत करके उपजाए मूली, मक्का सहित कई फसलों को सड़क पर फेंकने या घर में रखकर सड़ाने के लिए मजबूर हैं.
बिहार में किसान या तो मक्के के न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए या फिर मक्के की सही कीमत के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं. दशकों से सरकारें न्यूनतम समर्थन मूल्य के नाम पर किसान के उपजाए फसल की कीमत तय करती है और किसान उस मूल्य या उससे कम पर अपनी फसल को बेचने के लिए मजबूर हैं.
बिहार में 80 फीसदी मक्का की पैदावार
देश में रबी सीजन की बात करें तो इस समय के कुल उत्पादन का 80 फीसदी मक्का बिहार में पैदा होता है. बिहार के 10 जिले समस्तीपुर, खगड़िया, कटिहार, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, सुपौल, सहरसा, मधेपुरा और भागलपुर में देश के कुल मक्का उत्पादन का 30 से 40 प्रतिशत पैदावार होता है. बात करें पूर्णियां कि तो यहां जिले के गुलाबबाग कृषि उपज मंडी मक्के के कारोबार के लिए मशहूर है, जहां से देश के विभिन्न प्रांतों में मक्के की सप्लाई होती है.
बिहार किसान मजदूर संघ, संस्थापक के संस्थापकअनिरुद्ध मेहता कहते हैं किमक्का 6 महीने की खेती है, मक्का लगाने में 25 से 30 हजार रुपये एक एकड़ में खर्चा आता है. भारत सरकार के समर्थन मूल्य तय करने के बाद भी आज तक सरकार ने समर्थन मूल्य पर मक्का नहीं खरीदा है, इसलिए किसान 900 से 1000 रुपये प्रति क्विंटल तक मक्का बेच रहा है, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है.
मक्के पर एमएसपी का कोई मतलब नहीं
किसानों को मक्का पैदा करने की लागत प्रति क्विंटल 1213 रुपये आती है. जबकि यहां व्यापारी इसे 1100-1200 में खरीदते हैं. हालांकि, भारत सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य 1850 रुपये निर्धारित किया है. बिहार में मक्के पर समर्थन मूल्य का कोई मतलब नहीं है क्योंकि बिहार सरकार न तो मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है और न ही गेहूं और चावल की तरह पैक्स के माध्यम से मक्के की खरीद करती है.
किसान प्रसाद विश्वास कहते है जिस तरह पैक्स में धान और गेहूं की खरीद हो रही है उसी तरह अगर पैक्स में मक्का की भी खरीद होना चाहिए. ताकि किसानों को मक्का का सही दाम मिल सके.