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MP Mahashivratri 2023: शुरू हुई महादेव के ब्याह की तैयारियां, चांदी के नंदी पर बैठकर निकलेगी बारात, राजस्थान से आई पोशाक - baba bateshwar temple in bhopal

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में महाशिवरात्रि का पर्व बड़वाले महादेव मंदिर में धूमधाम से मनाया जाता है. इस मंदिर का इतिहास लगभग 200 साल पुराना है. वटवृक्ष की जड़ से निकले शिवलिंग की बटेश्वर मंदिर के नाम से पूजा की जाती है. इस बार ढाई क्विंटल वजनी चांदी के नंदी पर बैठकर बाबा की बारात निकलेगी.

Unique Shiva temple of Bhopal
शुरू हुई महादेव के ब्याह की तैयारियां

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Published : Feb 8, 2023, 10:48 PM IST

भोपाल। महाशिवरात्री पर बड़वाले महादेव मंदिर में बाबा भोलेनाथ के विवाह आयोजन पर 5 क्विंटल फूलों की बारिश की जाएगी. इसके लिए मथुरा और पुणे से फूल बुलाए जा रहे हैं. महाशिवरात्री पर ढाई क्विंटल चांदी से तैयार नंदी पर बैठकर बाबा बटेश्वर माता पार्वती को ब्याहने निकलेंगे. बाबा बटेश्वर के लिए राजस्थान से कपड़ा बुलाकर भोपाल में पोशाक तैयार कराई जा रही है. इस पोशाक को आकर्षक लुक देने के लिए इस पर कढ़ाई कराई जा रही है. महाशिवरात्री का कार्यक्रम करीबन 13 घंटे तक चलेगा. बाबा बटेश्वर के विवाह समारोह को उनके भक्त लाइव भी देख सकेंगे.

बड़वाले महादेव

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21 दिन तक चलेगा कार्यक्रम: बड़वाले महादेव मंदिर सेवा समिति के प्रकाश मालवीय ने बताया कि महाशिवरात्री का कार्यक्रम 13 फरवरी को गणेश पूजन के साथ शुरू होंगे और 4 मार्च तक चलेंगे. इस दौरान बाबा बटेश्वर और मां पावर्ती की हल्दी रस्म, मेहंदी की रस्म होगी. इसके बाद बाबा बटेश्वर का श्रृंगार दर्शन होगा. महाशिवरात्री पर बाबा बटेश्वर की मंदिर से बारात शुरू होगी. दूल्हा बने बाबा बटेश्वर की प्रतिमा को ढाई क्विंटल चांदी के बने नंदी पर विराजित किया जाएगा. बाबा की बारात पर करीब 5 क्विंटल फूलों की बारिश कराई जाएगी. करीब 200 साल पुराने बड़वाले महादेव मंदिर के महाशिवरात्री कार्यक्रम को दूर-दराज बैठे भक्त भी देख सकेंगे. इसके लिए पूरे कार्यक्रम का लाइव प्रसारण किया जाएगा.

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करीब 200 साल पुराना है मंदिर: भोपाल के कायस्थपुरा स्थित श्री बड़वाले महादेव मंदिर करीबन 200 साल पुराना है. बताया जाता है कि यहां पहले एक बगीचा था. यहां एक महात्मा लेटे हुए थे, तभी उनका सिर वृक्ष की जड़ में स्थित एक शिला से टकराया. उन्होंने गौर से देखा तो उन्हें शिवलिंग के दर्शन हुए. बताया जाता है कि महात्मा ने इसके आसपास करीब 25 फीट तक खुदाई कराई, लेकिन इसका छोर नहीं मिला है, तभी से बाबा बटेश्वर मंदिर के नाम से यहां भगवान की पूजा अर्चना शुरू हो गई.

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