नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव 2024 की उल्टी गिनती शुरू हो गई है और सभी राष्ट्रीय विपक्षी पार्टियां राज्यों में अलग-अलग मोर्चो और स्तरों पर एकता बनाने में जुट गई हैं. इस बार, जनता दल (यू) के अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 'एकजुट विपक्ष' तैयार करने का बीड़ा उठाया है ताकि वह नौ साल से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन का मुकाबला कर सके. विपक्षी दलों के अपने जोड़-घटाव के साथ एक साथ कई इंद्रधनुष वाली स्थिति के बावजूद नीतीश की राह मुश्किल है नामुमकिन नहीं.
कांग्रेस के अलावा किसी भी बड़े विपक्षी दल की अपने क्षेत्र विशेष से बाहर उपस्थिति, प्रभाव या राष्ट्रव्यापी विश्वसनीयता नहीं है - चाहे वह नीतीश की खुद की पार्टी जदयू हो या दिल्ली, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों की पार्टियां. हालांकि, किसी भी विपक्षी मोर्चे के लिए महाराष्ट्र एक महत्वपूर्ण कारक होगा क्योंकि यहां 48 लोकसभा सीटें हैं जो उत्तर प्रदेश के बाद देश में सबसे अधिक है. यहां कई दल हैं जिनमें कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शिवसेना (उद्धव गुट) की महाविकास अघाड़ी और वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) तथा अन्य छोटे दल शामिल हैं.
राज्य में मुख्य विपक्षी दलों के अपने गढ़ हैं और उनके समर्पित मतदाता हैं तो वहीं, वीबीए के पास लगभग 6-7 प्रतिशत और समाजवादी समूह के पास 7-8 प्रतिशत वोटर हैं. कम्युनिस्ट भी यहां शक्तिशाली हैं, हालांकि चुनिंदा इलाकों में ही उनके समर्थक हैं. यदि ये सभी मिलकर एक हो जाएं तो भाजपा के सामने कड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं. प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता अतुल लोंधे आशावादी दिखते हैं. उन्होंने दावा किया, हिमालय का मार्ग सह्याद्री के रास्ते प्रशस्त होगा. महाराष्ट्र एक महत्वपूर्ण राज्य है और भाजपा हर जगह नीचे खिसक रही है. एमवीए के खाते में कम से 40 सीटें आएंगी. शुरुआत कर्नाटक से होगी.
राकांपा के मुख्य प्रवक्ता महेश तापसे ने कहा कि राज्य में एमवीए के तहत विपक्ष पहले से ही मजबूती से एकजुट है और कर्नाटक चुनाव के नतीजे आने के बाद लोकसभा चुनावों के लिए केवल बारीकियां तय की जानी हैं. तापसे ने कहा, हमेशा की तरह, बदलाव की बयार इसी राज्य से उठेगी. बेहद जरूरी बदलाव के लिए भाजपा को चुनौती देने के लिए एकजुट विपक्षी मंच का हिस्सा होगा. शिवसेना (यूबीटी) के राष्ट्रीय प्रवक्ता किशोर तिवारी ने कहा कि केवल महाराष्ट्र में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में भाजपा विश्वसनीयता खो चुकी है क्योंकि उसका दृष्टिकोण सांप्रदायिक रूप से विभाजनकारी, गरीब-विरोधी और किसान विरोधी है और वह खुले तौर पर उद्योगों का समर्थन करती है.