मुंबई : नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी दो धड़ों में बंट चुकी है. दोनों धड़ों ने आज बैठक की. शरद पवार गुट की बैठक यशवंत राव चव्हाण केंद्र में, जबकि अजित पवार गुट की बैठक मुंबई एजुकेशन ट्रस्ट में हुई. दोनों गुटों की ओर से कानूनी कार्रवाई को लेकर भी पहल की जा चुकी है. मामला चुनाव आयोग के पास पहुंच चुका है.
अजित पवार ने देर शाम शरद पवार को ही अध्यक्ष पद की कुर्सी से हटाकर अपना नाम चस्पा कर दिया. वैसे, एक दिन पहले तक उन्होंने शरद पवार को राष्ट्रीय अध्यक्ष कहा था. लेकिन आज की स्थिति में उन्होंने कुछ और निर्णय लिया.
इस निर्णय से पहले अजित पवार चुनाव आयोग जा चुके थे. उनके गुट ने अपने समर्थक विधायकों के हस्ताक्षर भी सौंप दिए थे, और यह सब शपथ ग्रहण से पहले ही हुआ. इसके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी थी.
एनसीपी नाम और चुनाव चिन्ह पर दावा हासिल करने के लिए शरद पवार गुट ने भी चुनाव आयोग के पास याचिका दी है. महाराष्ट्र विधानसभा में कुल 288 सीटें हैं. इनमें से 53 सीटें एनसीपी के पास है. अगर अजित पवार 36 विधायकों को जुटाने में कामयाब हो जाएंगे, तो पार्टी पर उनका अधिकार हो जाएगा. हालांकि, शरद पवार उनके दावे को ही गलत बता रहे हैं. आज की बैठक में अजित गुट ने दावा है कि उनके पास 35 विधायक हैं. पर मीडिया के सामने सभी 35 विधायकों को नहीं दिखाया गया. दूसरी ओर शरद पवार ने कहा कि वह किसी भी हाल में पार्टी के चुनाव चिन्ह को जाने नहीं देंगे.
शरद पवार ने कहा कि हमें नहीं पता था कि अजित पवार खोटा सिक्का निकलेगा. शरद पवार ने कहा कि अगर अजित को किसी बात से दिक्कत थी, तो वह हमसे बात कर सकता था.
अजित गुट ने शरद पवार की फोटो का किया इस्तेमाल- अजित पवार गुट की बैठक में शरद पवार की फोटो का इस्तेमाल किया गया. दो दिन पहले शरद पवार ने कहा था कि अजित गुट को हमारे फोटो का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. हालांकि, इस पर अजित गुट के नेताओं का कहना है कि शरद पवार उनके प्रेरणास्रोत हैं, वह उनकी तस्वीर का उपयोग करेंगे.
अजित पवारबोले, क्या रिटायर नहीं होंगे - आज की बैठक को संबोधित करते हुए अजित पवार ने कहा कि हमने जो कुछ भी सीखा है, वह शरद पवार से ही सीखा है. अजित ने कहा कि हां, ये सही है कि मैं सीएम बनना चाहता हूं ताकि राज्य की जनता के लिए काम कर सकूं. शरद पवार पर अप्रत्यक्ष तरीके से हमला करते हुए अजित ने कहा कि आईएएस ऑफिस 60 साल में रिटायर हो जाते हैं, भाजपा में 75 साल पर रिटायरमेंट की व्यवस्था है, और आप तो 83 साल के हो चुके हैं, इसलिए हमें आशीर्वाद दीजिए.
इस्तीफा देकर क्यों लिया वापस - अजित पवार ने कहा कि शरद पवार ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन बाद में उन्होंने वापस ले लिया, ऐसा क्यों किया. वह भी एक कमेटी बनाकर यह फैसला किया गया, और तब उस कमेटी ने कहा कि आपको इस्तीफा नहीं देना चाहिए.
अजित ने 2019 का जिक्र कर कहा कि सीनियर पवार भाजपा के साथ समझौता कर रहे थे. लेकिन हमलोगों को कुछ और बताया. अजित ने कहा कि क्या एक सीनियर नेता को ऐसा करना चाहिए. उन्होंने कहा कि एनसीपी को हमें आगे बढ़ाना है, क्योंकि अब हमारी पार्टी नेशनल पार्टी नहीं रह गई है, इसलिए ज्यादा काम करना होगा.
शरद पवार गुरु, पर -पार्टी विधायकों की बैठक में अजित पवार गुट के छगन भुजबल ने कहा कि हमने भी 56 साल राजनीति में दिए हैं और कुछ तो जरूर सीखा है कि किस समय पर क्या करना है. भुजबल ने कहा कि अगर शरद पवार 60 साल से राजनीति कर रहे हैं, तो हम भी 56 साल से राजनीति कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि राज्य की जनता के हित के लिए हम पहले शिवसेना के साथ गए थे और अब भाजपा के साथ गए, इसमें क्या हर्ज है. महबूबा मुफ्ती ने भी भाजपा के साथ हाथ मिलाया था.
भुजबल ने कहा कि 2019 में सुबह-सुबह जिस तरीके से शपथ ग्रहण हुआ, अब तो उसको लेकर शरद पवार खुद कह रहे हैं कि यह उनकी गुगली थी. अजित पवार ने क्या मांगा था, यही न कि उन्हें स्टेट चीफ बनाया जाए. भुजबल ने कहा कि शरद पवार हमारे गुरु हैं, लेकिन वह गलत आदमी से घिरे हुए हैं. भुजबल ने कहा कि अब भी शरद पवार के पास समय है, वह चाहेंगे तो किसी भी विधायक की विधायकी नहीं जाएगी. प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि शरद पवार पिता तुल्य हैं.
शिंदे गुट नाराज -अजित पवार और उनके समर्थकों ने जिस तरीके से भाजपा नेताओं से नजदीकी बढ़ाकर राजनीतिक दांव चला, उससे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. उनके साथ आने वाले विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाना था, लेकिन इस पर अभी तक अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है. ऊपर से जिन नेताओं का वे विरोध करते रहे, उनको साझीदार भी बना लिया गया है.
मीडिया रिपोर्ट की मानें तो अजित पवार और उनके साथ आने वाले विधायकों में अधिकांश राज्य के बड़े नेता हैं. वे बड़े-बड़े मंत्रालयों पर अपनी नजरें गड़ाए हैं. शिंदे गुट को यह मंजूर नहीं है. शिंदे गुट चाहता है कि मंत्रालयों का बंटवारा समान रूप से हो.
एनसीपी को शामिल करने की नहीं थी कोई जल्दी- ऐसा नहीं है कि शिंदे गुट के बारे में यह अनुमान लगाया जा रहा है, बल्कि उनके विधायक संजय शिरसाट ने मीडिया को बयान दिया है. शिरसाट ने कहा कि भाजपा और शिवसेना को मिलाकर ही हमारे पास पर्याप्त बहुमत था. इसलिए एनसीपी के नेताओं को शामिल करने की कोई जल्दीबाजी नहीं थी.
शिरसाट ने कहा कि हमने उद्धव ठाकरे से इसलिए अलग रूख अख्तियार किया क्योंकि वे शरद पवार की गोदी में खेल रहे थे. उनके अनुसार शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को सीएम बनवाकर सारे फैसले खुद लेते थे, हर मामले में सिर्फ उनकी ही चलती थी. क्योंकि हमलोग उपेक्षित थे, इसलिए विद्रोह किया था.
शिरसाट ने यह भी कहा कि राजनीति में विरोध पक्ष आपसे संपर्क साधता है, और आप अपने आप को मजबूत करने के लिए उसे मिलाते हैं, भाजपा ने यही किया, यहां तक तो ठीक है. लेकिन यह भी जानिए कि हमलोग एनसीपी का विरोध करते थे.
शिवसेना के ही एक और विधायक भरत गोगावले ने तो यहां तक कहा दिया कि एनसीपी के शामिल होने से हमें आधी रोटी खानी पड़ेगी. गोगावले का इशारा साफ तौर पर था कि यह फैसला भाजपा का था. गोगावले के अनुसार इस फैसले से हमारे गुट के विधायकों में अप्रसन्नता है.
विधायकों ने सीएम से की मुलाकात - सोमवार को शिंदे गुट के जितने भी मंत्री हैं, मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी. उन्होंने बैठक में एनसीपी के विधायकों को शामिल किए जाने पर नाराजगी जताई. शिंदे गुट को पता है कि उनके नेता जिस मंत्रिमंडल विस्तार का इंतजार कर रहे थे, उब उसमें बंटवारा होगा. क्योंकि कैबिनेट के 23 पद खाली हैं और एनसीपी के आठ विधायकों को शपथ दिलाई जा चुकी है. लिहाजा, मंत्रिमंडल से सीमित बचे हुए पदों में से ही बंटवारा होना है.
भाजपा ने लिया रिस्क, मराठा मतदाताओं पर नजर - कुछ लोगों का मानना है कि भाजपा ने बहुत बडा रिस्क लिया है. पार्टी सूत्र बता रहे हैं कि आगामी चुनाव में एनसीपी के इन विधायकों की मदद से चुनावी जीत हासिल की जा सकती है. उनका यह भी आकलन है कि शिंदे गुट के साथ भाजपा का गठबंधन मजबूत है, लेकिन जीत हासिल करने के लिए कुछ और समर्थन की जरूरत है. भाजपा नेता बताते हैं कि एनसीपी के ये नेता मराठा के बीच लोकप्रिय हैं. सहकारिता के क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ है, जिसका फायदा भाजपा उठा सकती है. महाराष्ट्र में कॉ-ओपरेटिव मूवमेंट बहुत ही मजबूत रहा है. साथ ही भाजपा जातिगत राजनीति को भी ध्यान में रख रही है. पार्टी को ओबीसी से लेकर ब्राह्मणों का समर्थन तो मिलता है, लेकिन मराठा के बीच एनसीपी सबसे अधिक लोकप्रिय रही है. इसी वर्चस्व को भाजपा ने तोड़ने की कोशिश की है.