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Maharashtra News: नाबालिग के साथ बलात्कार-हत्या के आरोपी को सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी, मिली थी मौत की सजा - सुप्रीम अदालत

देश की सुप्रीम अदालत ने छह साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या करने के मामले में आरोपी को मिली फांसी की सजा को रद्द करते हुए उसे बरी कर दिया. बता दें कि निचली अदालत ने आरोपी को फांसी की सजा सुनाई थी, जिसके बाद मामला बॉम्बे हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट गया.

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सुप्रीम कोर्ट

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Published : May 21, 2023, 10:50 PM IST

मुंबई: सुप्रीम कोर्ट ने छह साल की बच्ची के बलात्कार-सह-हत्या के एक मामले में निचली अदालत द्वारा मौत की सजा पाने वाले और बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा पुष्टि किए गए एक व्यक्ति को परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर मामले में मुक्त कर दिया है. जस्टिस बी आर गवई, विक्रम नाथ और संजय करोल की पीठ ने कहा कि मासूम बच्ची के खिलाफ अपराध विवाद में नहीं है और सबसे गंभीर शब्दों में भी इसकी पर्याप्त निंदा नहीं की जा सकती है.

पीठ ने कहा कि हालांकि, इस अपराध के कमीशन की श्रृंखला बनाने वाली परिस्थितियां अपीलकर्ता को इस तरह से निर्णायक रूप से इंगित नहीं कर सकती हैं कि उसे उसी के लिए कम से कम दंडित किया जा सकता है, मौत की सजा के साथ. बता दें कि करीब दस साल पहले महाराष्ट्र के ठाणे शहर में छह साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ था. उसके बाद उसकी भी हत्या कर दी गई. पुलिस ने इस संबंध में मामला भी दर्ज किया था.

निचली अदालत ने आरोपी को मौत की सजा सुनाई थी. इसके बाद मामला बॉम्बे हाई कोर्ट में गया था, जिसके बाद यह मामला बॉम्बे हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चला गया. हालांकि, इस मामले को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत में उचित साक्ष्य के अभाव में आरोपी बरी हो गया. उसकी मौत की सजा भी रद्द कर दी गई. इस मामले की सुनवाई हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति भूषण गवई की खंडपीठ के समक्ष हुई थी.

दस साल पहले ठाणे शहर में छह साल की बच्ची के साथ आरोपी ने दुष्कर्म किया था और उसे मार डाला था. इस सिलसिले में उसे गिरफ्तार किया गया था. बाद में मामला निचली अदालत में उठा. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, लेकिन आरोपियों के सैंपल और ओवरऑल डीएनए रिपोर्ट व अन्य साक्ष्य मेल नहीं खाते. इसलिए कोर्ट ने उसे रिहा करते हुए, फांसी की सजा को भी रद्द कर दिया.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस अपराध की पुलिस जांच में कई त्रुटियां हैं और इस वजह से यह देखा जा रहा है कि मामला कमजोर हो गया है. इसमें प्रस्तुत कालक्रम के विभिन्न चरणों में अनेक त्रुटियां हैं. इस सबने अभियुक्त के दोष का निर्धारण करना बहुत कठिन बना दिया है.

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