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महाराष्ट्र की राजनीति : क्या उद्धव तमिलनाडु के पलानीस्वामी की तरह वापसी कर सकेंगे! - How Maharashtra Shiv Sena MLAs can be disqualified

महाराष्ट्र की राजनीतिक उथल-पुथल जल्द खत्म होने वाली नहीं है. एकनाथ शिंदे के साथ विद्रोहियों के पास अब दलबदल विरोधी कानून को दरकिनार करने के लिए आवश्यक संख्या से अधिक की संख्या हो सकती है. उद्धव ठाकरे ने अयोग्यता की कार्यवाही को गति दी है, जिस पर डिप्टी स्पीकर नरहरि सीताराम जिरवाल अगले सप्ताह की शुरुआत में सुनवाई कर सकते हैं. ईटीवी भारत अंग्रेजी डेस्क के इंचार्ज प्रिंस जेबाकुमार का एक विश्लेषण.

Uddhav Thackeray and Palaniswami
उद्धव ठाकरे व पलानीस्वामी (फाइल फोटो)

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Published : Jun 26, 2022, 2:07 PM IST

हैदराबाद: संविधान के अनुसार देखें तो शिवसेना के बागी विधायकों के नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले विद्रोहियों ने विधायक दल के प्रमुख के खिलाफ प्रस्तावों को अपनाने से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की सेना के लिए बहुत लाइफलाइन (जीवन रेखा) दी है, जो विधानसभा के लिए एक मिसाल है. वहीं विधानसभा अध्यक्ष दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्यता के आरोपों का सामना कर रहे 16 असंतुष्ट विधायकों को अयोग्य घोषित कर सकते हैं.

बता दें कि कुछ इसी तरह 2017 में तमिलनाडु में देखने को मिला था. यहां एडप्पाडी के पलानीस्वामी (ईपीएस) के खिलाफ विद्रोह करने वाले एआईएडीएमके विधायकों की अयोग्यता का मामला सामने आया था. यहां पर जब वीके शशिकला के भतीजे टीटीवी दिनाकरन को दरकिनार कर दिया गया, तो उन्होंने 19 विधायकों के साथ राज्यपाल को लिखा था कि उन्होंने 'सत्ता के दुरुपयोग', 'भ्रष्टाचार' और 'पक्षपात' का आरोप लगाते हुए कहा था कि सीएम पलानीस्वामी ने विश्वास खो दिया है. वहीं सरकारी सचेतक राजेंद्रन ने असंतुष्टों को अयोग्य ठहराने के लिए तमिलनाडु विधानसभा अध्यक्ष पी धनपाल के समक्ष याचिका दायर की थी. इसके बाद, अध्यक्ष ने कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा कि उन्हें अयोग्य घोषित क्यों नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने इस बारे में असंतुष्टों को अपना पक्ष प्रस्तुत करने का समय दिया था.

इतना ही नहीं सुनवाई के बाद विधानसभा अध्यक्ष धनपाल ने 18 असंतुष्ट विधायकों को अयोग्य घोषित करने का फैसला सुनाया था, जबकि एक विधायक को माफ कर दिया था क्योंकि वह सत्तारूढ़ दल के पक्ष में चले गए थे. हालांकि आयोग्य ठहराए गए विधायकों ने स्पीकर के फैसले को मद्रास हाई कोर्ट में चुनौती दी. इस पर कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने खंडित फैसला सुनाया. इस पर तीसरे न्यायाधीश को सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र रूप से नियुक्त किया था. इसके बाद भी कोर्ट ने असंतुष्ट विधायोकों की अयोग्यता को बरकरार रखा .

इस मामले पर न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा था कि 18 विधायकों के द्वारा राज्यपाल को अभ्यावेदन देकर अन्नाद्रमुक की सदस्यता छोड़ दी थी और सीएम पलानीस्वामी से समर्थन वापस ले लिया था, इस पर विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा उठाया गया कदम प्रशंसनीय है. न्यायाधीश ने कहा कि पलानीस्वामी की सरकार खुद ही गिर जाती लेकिन उसने कार्यकाल पूरा किया.

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कुछ इसी प्रकार महाराष्ट्र में शिंदे गुट ने 21 जून, 2022 को डिप्टी स्पीकर को दो प्रस्तावों को स्वीकार करते हुए एक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने दावा किया कि विधानसभा के 4 निर्दलीय सहित 34 विधायकों ने सर्वसम्मति से अपनाया है. साथ ही उद्धव ठाकरे समूह द्वारा शिंदे को विधायक दल के समूह नेता के रूप में छोड़ने के बीच इन नेताओं ने एकनाथ शिंदे पर अपना विश्वास दोहराया. वहीं शिंदे गुट ने भारत गोगावाले को अपना मुख्य सचेतक नियुक्त किया, जबकि सुनील प्रभु को एक अन्य प्रस्ताव के माध्यम से मुक्त कर दिया.

पत्र में भाजपा के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन की चर्चा की गई और पार्टी नेता उद्धव द्वारा वर्तमान महा विकास अघाड़ी (एमवीए) पर असंतोष जताया गया. इसके लिए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को दोषी ठहराते हुए पार्टी के मूल सिद्धांत- हिंदुत्व से समझौता करने का भी आरोप लगाया गया. साथ ही ठाकरे के कैबिनेट सहयोगियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप सहित पार्टी के मूल सिद्धांत से समझौता करने की भी बात कही गई. राजनीतिक गतिविधियों के तेज होने के बाद उद्धव ठाकरे अपने आधिकारिक आवास को छोड़कर अपने घर मातोश्री चले गए थे. इससे अयोग्य ठहराए गए विधायकों के खिलाफ कार्रवाई को बल मिला है.

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