ये रिक्शा है कमाल! देखें बाबूराम का हाईटेक रिक्शा. देहरादून (उत्तराखंड): जरूरी नहीं कि आलीशान घर में ही इंसान को खुशियां मिलती हैं, जहां प्यार हो वहां खुशियां अपने आप जुट जाती हैं. ऐसा ही कुछ सड़कों पर घूम-घूमकर, छोटे-मोटा सामान बेचकर और भिक्षा मांग कर अपनी पत्नी के साथ गुजारा करने वाले मुंबई (महाराष्ट्र) के बाबूराम के साथ भी है. लेकिन खास बात उनके रिक्शे की है, जिसे बाबूराम ने एक चलता-फिरता 'आलिशान' घर बना दिया है. 'आलीशान' इसलिए क्योंकि उस रिक्शे में एलईडी टीवी, स्पीकर, इनवर्टर, जनरेटर, पंखा और आराम-फरमाने के लिए बेड भी है.
बाबूराम और उनकी छोटी से दुनिया. ये रिक्शा है कमाल:फुटपाथ पर हजारों लोग रहते हैं जिनका जीवन सड़क पर ही शुरू होता है और सड़क पर ही खत्म हो जाता है. सड़क पर जीवन व्यतीत करने वाले एक ऐसे ही दंपति पर हमारे संवाददाता किरणकांत शर्मा की नजर पड़ी. रविवार देर रात किरणकांत शर्मा देहरादून से हरिद्वार पहुंचे ही थे कि उन्होंने देखा सड़क किनारे एक रिक्शा खड़ा हुआ है. रिक्शे से किसी फिल्मी गाने की आवाज आ रही थी. दरवाजा थोड़ा सा खुला था. जैसे ही पूरा दरवाजा खोला गया तो दिखा कि एक व्यक्ति रिक्शे में आराम कर रहा था.
6 सालों में घूमे कई राज्य: रिक्शे में बैठे बाबूराम से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि वो मुंबई के रहने वाले हैं. अब अपनी पत्नी बीना के साथ पिछले 6 सालों से एक राज्य से दूसरे राज्य घूम रहे हैं. घूमने का मकसद है पेट का गुजारा करना. उन्होंने बताया कि पहले दोनों केवल भिक्षा मांगकर खाते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने रिक्शे पर ही छोटे-मोटे सामान रखने शुरू कर दिए. अब बाबूराम और उनकी पत्नी बीना दोनों रिक्शे पर घूम-घूमकर पान-सुपारी बेचते हैं और भिक्षा मांगते हैं. इस तरह बाबूराम महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, यूपी और अब उत्तराखंड घूम रहे हैं. बाबूराम पिछले 6 सालों से इसी तरफ घूम-घूमकर भिक्षा मांगकर जीवन जी रहे हैं. रहने का कोई ठिकाना नहीं, सिर पर कोई छत नहीं है इसलिए बाबूराम ने अपने रिक्शे को ही ठिकाना बना दिया है.
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छोटे से रिक्शे में पूरा संसार:10वीं पास बाबूराम कहते हैं कि उन्होंने अपने दिमाग से रिक्शे को घर का रूप दिया है, जिसमें मनोरंजन और रोज की सुविधानुसार संसाधन जुटाए हैं. जब बाबूराम अपने जीवन के बारे में बता रहे थे तो बरबस की उनके रिक्शे की चकाचौंध नजर को खींच रही थी. दरअसल, रिक्शे की खासियत ये है कि इस छोटे से रिक्शे में सिर छुपाने के लिए छत है. रिक्शा के अंदर एक एलईडी टीवी लगा है. एलईडी टीवी के नीचे स्पीकर रखे हुए हैं और उसके ही पास में बाबूराम ने इनवर्टर फिट किया हुआ है. इनवर्टर को चार्ज करने के लिए एक जनरेटर भी रिक्शे में ही रखा हुआ है. रिक्शे के अंदर ही घड़ी लगी है. कपड़े रखने की छोटी सी जगह है. दवाइयां रखी हुई हैं. हैरानी की बात है कि इतना सबकुछ होने के बावजूद रिक्शे में ही रसोई का सामान भी रहता है. सिलेंडर रखने और गैस चूल्हा रखने की जगह बनाई गई है. इसके साथ ही पानी का एक बड़ा ड्रम और फोल्डिंग पलंग भी वो इसी रिक्शे में लेकर चलते हैं. फोल्डिंग चारपाई को रात बिताने के लिए बाहर फुटपाथ पर लगा लेते हैं.
बाबूलाल और उनकी पत्नी बीना से बातचीत. एंड्रॉयड फोन के हर फीचर का करते हैं इस्तेमाल:इसके साथ ही अलग-अलग मोबाइल एप्लीकेशन से बाबूराम एलईडी में रोजाना ना केवल पिक्चर देखते हैं बल्कि उनकी पत्नी को कई तरह के सीरियल भी देखना पसंद है. बाबूराम के हाथों में एंड्रॉयड फोन रहता है जिससे वो अपने परिवार और रिश्तेदारों को ना केवल फोन करते हैं बल्कि जिस शहर में जाना है उसकी लोकेशन भी वो बखूबी देख लेते हैं. बाबूराम बताते हैं कि अभी वह कुछ दिन यहीं पर रुकेंगे उसके बाद ऋषिकेश या फिर अलग-अलग शहरों में जाकर अपना जीवन यापन करेंगे. बाबूराम और बीना के दो बच्चे भी हैं जो अब महाराष्ट्र में ही रहते हैं.
छोटे से रिक्शा में बड़ी कलाकारी. खुद डिजाइन किया है रिक्शा:यह रिक्शा इसलिए बेहद खास है, क्योंकि इसमें ना तो बारिश का कोई असर पड़ता है और ना ही तेज आंधी तूफान का. बाबूराम बताते हैं कि उन्होंने यह रिक्शा खुद ही डिजाइन किया है. एक-एक सामान किस्तों पर लेकर रिक्शे में फिट किया है. बाबू राम कहते हैं उन्हें ज्यादा फिल्में देखने का शौक नहीं है, लेकन उनकी पत्नी लगातार इस बात की मांग करती थी कि जहां भी वो रुकते हैं वहां पर मनोरंजन के लिए कोई सामान नहीं है. पत्नी की फरमाइश को पूरा करने के लिए ही बाबूराम ने इस रिक्शे को इस तरह से बनाया है कि अब वो एंटरटेनमेंट का पूरा सामान अपने साथ लेकर चलते हैं.
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खुशी के लिए अमीर होना जरूरी नहीं:सड़क पर बेफिक्री से अपना जीवन बिता रहे ये पति पत्नी भले ही भिक्षा मांगकर खाते हैं, लेकिन जिस तरह से उन्होंने अपने पूरे दिन की रूपरेखा का लेखा-जोखा बनाकर शाम को इत्मीनान से अपने मनोरंजन के लिए साधन जुटाए हैं, वो काबिले तारीफ है. बाबूराम और उनकी पत्नी से लोगों को ये सीखना जरूर चाहिए कि खुश रहने के लिए जरूरी नहीं कि आलीशान घर गाड़ी बंगला ही चाहिए, इस तरह छोटे से रिक्शे में भी अपनी सुख-सुविधाओं को जुटाकर खुश रहा जा सकता है.