जगदलपुर: कोरोना संक्रमण रोकने के लिए बस्तर में 15 से 26 अप्रैल तक लॉकडाउन है. लगभग सभी दुकानें, होटल बंद हैं. इस तालाबंदी का असर महामाया महिला स्व सहायता समूह की महिलाओं पर भी पड़ा. ये महिलाएं गढ़ कलेवा (जहां पूरी तरह से छत्तीसगढ़ी व्यंजन मिलते हैं) वहां काम करती थीं. सब बंद हुआ तो इनका भी रोजगार छिन गया लेकिन दिल छोटा नहीं कर पाया. कोई जरूरतमंद भूखा न सोए इसके लिए बस्तरिया बैक बेंचर्स का ग्रुप काम रहा है. ये महिलाएं ग्रुप से जुड़ीं और मुफ्त में दोनों वक्त का खाना बना रही हैं.
महामाया महिला स्व सहायता समूह की महिलाएं खुद का काम बंद हुआ लेकिन दूसरों की कर रही मदद
महामाया महिला स्व सहायता समूह की महिलाएं शहर के गढ़ कलेवा में खाना और नाश्ता तैयार करती थीं. कोरोना की दूसरी लहर खतरनाक है, इसे देखते हुए बस्तर में भी लॉकडाउन लगा दिया गया. लिहाजा गढ़ कलेवा एक बार फिर बंद हो गया. इसके साथ ही स्व सहायता समूह की महिलाओं की आमदनी पर भी ब्रेक लग गया. लॉकडाउन में गरीबों तक खाना पहुंचाने की जिम्मेदारी उठा रहे बस्तरिया बैक बैंचर्स के बारे में समूह की महिलाओं को जब पता चला तो वे भी उनसे जुड़ गईं और खुद की भी भागीदारी सुनिश्चित की. महामाया महिला स्व सहायता समूह की महिलाएं अब प्रतिदिन करीब 150 से 200 लोगों का खाना तैयार करती हैं. इस खाने की पैकिंग भी महिलाएं खुद ही करती हैं. जिसे बस्तरिया बैक बैंचर्स के युवाओं द्वारा शहर में बांटा जाता है.
बिना स्वार्थ के समूह की 7 महिलाएं बना रही खाना
महामाया महिला स्व सहायता समूह में 15 महिलाएं हैं लेकिन इस समय 7 महिलाएं गरीबों और जरूरतमंदों के लिए खाना बना रही हैं. खाना बनाने के दौरान साफ-सफाई का खास ख्याल रखा जा रहा है. मास्क पहनकर महिलाएं खाना बनाने और पैकिंग का काम कर रही हैं. दोनों टाइम के खाने में दाल-चावल सब्जी और सलाद होता है. लोगों को अच्छा स्वाद मिलता रहे इसके लिए खाने का मेन्यू भी बदला जाता है.
बस्तरिया बैक बेंचर्स के साथ मिलकर कर रही मदद
ईटीवी भारत ने महामाया महिला स्व सहायता समूह की सदस्यों से बात की. समूह की एक महिला सदस्य ने बताया कि उन्हें जब पता चला कि बस्तरिया बैक बेंचर्स के युवा शहर के गरीबों को खाना बांटने की योजना बना रहे हैं तो इन्होंने उनसे संपर्क किया और उनकी मदद करने की बात कही. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन में गढ़ कलेवा बंद होने से उनका भी काम बंद हो गया है. लेकिन गरीबों की मदद करने की बात जब उन्हें पता चली तो समूह की कुछ महिलाएं तैयार हो गईं.
हर रोज 200 लोगों का तैयार कर रहीं भोजन
समूह की एक और सदस्य ने बताया कि लॉकडाउन में पिछले 7 दिनों से वो सुबह-शाम खाना बना रही है. लगभग 200 लोगों का खाना तैयार किया जा रहा है. जिसकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है. हर रोज सुबह वे गढ़ कलेवा पहुंचती हैं. उन्होंने बताया कि बस्तरिया बैक बेंचर्स की तरफ से उन्हें खाना बनाने की सामग्री पहुंचाई जा रही है. महिलाओं ने बताया कि उनकी कोशिश है कि जब तक लॉकडाउन रहेगा वे ऐसे ही मदद करती रहेंगी.
बिना पैसे लिए दोनों टाइम का बना रही खाना
बस्तरिया बैक बेंचर्स के सदस्य सुमित सेंगर ने ETV भारत से चर्चा में बताया कि भोजन तैयार कर रही महिलाओं की वजह से ही वे इस नेक काम को अंजाम दे पा रहे हैं. समूह की महिलाएं निस्वार्थ भाव से बिना पैसे लिए गरीबों का खाना तैयार कर रही हैं. उन्होंने बताया कि महिलाओं ने खुद आकर उनसे संपर्क किया और खाना पकाकर देने की बात कही. सेंगर ने बताया कि जब इस अभियान की शुरुआत हुई थी तो सिर्फ 40 से 50 पैकेट खाना तैयार होता था लेकिन अब इसकी संख्या 200 तक पहुंच गई है.
कोरोना संकट में अन्नदूत बने बस्तर के युवा
बस्तरिया बैक बेंचर्स नामक संस्था के युवा लॉकडाउन के पहले दिन से ही शहर में घूम-घूम कर जरूरतमंद को भोजन पहुंचा रहे हैं. बस्तरिया बैक बेंचर्स शहर के युवाओं का एक समूह है, जिसमें 12 से 15 युवा शामिल हैं. लॉकडाउन में होटल से लेकर सभी दुकानें बंद हैं. दिहाड़ी मजदूर, गरीबों और असहाय लोगों को दो वक्त के भोजन के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में सभी युवाओं ने ऐसे लोगों को भरपेट भोजन कराने फैसला लिया.