मुंबई : महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (mva) सरकार के 27 नवंबर को सत्ता में दो साल पूरे हो जाएंगे. यह सरकार कोरोना वायरस महामारी के बीच विभिन्न मुश्किल परिस्थितियों के बावजूद स्थिर रही.
ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना और उसके पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) एवं कांग्रेस का अप्रत्याशित गठबंधन घटक दलों के अलग-अलग वैचारिक झुकाव, मराठा आरक्षण जैसे अनसुलझे पेचीदा मुद्दों और आक्रामक भाजपा के बावजूद स्थिर बना हुआ है.
इस गठबंधन के सत्ता में आने के कुछ महीनों के भीतर ही कोरोना वायरस महामारी फैल गई थी, लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि हो सकता है कि इससे सरकार को अप्रत्याशित रूप से एक तरह से फायदा हुआ हो क्योंकि इससे उसके साझा न्यूनतम कार्यक्रम और गठबंधन के आंतरिक टकराव से ध्यान हट गया.
हालांकि सरकार के समक्ष एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि देश में सबसे अधिक शहरीकृत राज्य महाराष्ट्र ने वायरस के प्रसार को रोकने के लिए संघर्ष किया. एक समय राज्य में एक दिन में कोविड-19 के 24,000 नए मामले सामने आ रहे थे.
महाराष्ट्र के एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा कि चूंकि अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई, नई बड़ी परियोजनाओं को रोक दिया गया और तटीय सड़क, मुंबई-नागपुर एक्सप्रेस-वे जैसी चल रही बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित किया गया.
मराठा आरक्षण का मुद्दा
सरकार ने खुद को तब एक मुश्किल स्थिति में फंसा पाया जब उच्चतम न्यायालय ने अलग-अलग मामलों में राजनीतिक रूप से प्रभावशाली मराठा समुदाय के लिए शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए स्थानीय निकायों में आरक्षण को दरकिनार कर दिया.
विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ठाकरे सरकार पर मराठा आरक्षण के समर्थन में अपना पक्ष रखने में विफल रहने का आरोप लगाया. सरकार ने यह मांग करते हुए गेंद भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के पाले में डालने की कोशिश की कि वह समग्र आरक्षण को 50 प्रतिशत से अधिक व्यावहारिक बनाने के लिए एक संवैधानिक संशोधन करे.
एंटीलिया मामला, वाजे की गिरफ्तारी रही चर्चा में
महामारी की दूसरी लहर के बीच तब एक राजनीतिक विवाद शुरू हुआ जब उद्योगपति मुकेश अंबानी के दक्षिण मुंबई स्थित आवास के पास एक वाहन में विस्फोटक पदार्थ रखा मिला. इसको लेकर रहस्य तब और गहरा गया जब ठाणे के व्यवसायी मनसुख हिरेन मृत पाए गए. हिरन ने दावा किया था कि उक्त वाहन उनके पास से चोरी हो गया था.
इसके चलते पुलिस अधिकारी सचिन वाजे की गिरफ्तारी हुई और आईपीएस अधिकारी परमबीर सिंह को मुंबई पुलिस के आयुक्त के पद से स्थानांतरित कर दिया गया. सिंह ने राज्य के तत्कालीन गृहमंत्री अनिल देशमुख पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया. राकांपा नेता देशमुख ने आरोपों से इनकार किया लेकिन उन्हें पद छोड़ना पड़ा और उनके खिलाफ सीबीआई जांच शुरू हुई.