चेन्नई :मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी और न्यायमूर्ति एम दुरईस्वामी की खंडपीठ ने याचिका को समय की बर्बादी और प्रचार हासिल करने की महत्वाकांक्षा से प्रेरित बताया. इस आधार पर याचिका को खारिज कर दिया गया.
हालांकि बेंच ने याचिकाकर्ता को ऑनलाइन गेम या ऐसी गतिविधियों को प्रतिबंधित करने के लिए कदम उठाने के लिए उपयुक्त अधिकारियों से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी. इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह याचिका कुछ विज्ञापनों में कई प्रमुख हस्तियों की भागीदारी पर सवाल उठाकर खुद को स्टारडम के लिए प्रेरित करने की याचिकाकर्ता की महत्वाकांक्षा से प्रेरित है.
आदेश में कहा गया कि वर्तमान जनहित याचिका समय की बर्बादी है और कुछ भी नहीं बल्कि एक प्रयास है. याचिकाकर्ता प्रचार हासिल करने के लिए यह कर रहा है. जस्टिस एन किरुबाकरण (अब सेवानिवृत्त) और बी पुगलेंधी की एक अन्य पीठ ने पिछले साल नवंबर में इस मामले में नोटिस जारी किया था.
अपनी याचिका में अधिवक्ता मोहम्मद रजवी ने छह हस्तियों को प्रतिवादी के रूप में नामित किया था. जिसमें क्रिकेटर्स सौरव गांगुली और विराट कोहली, अभिनेता प्रकाश राज, तमन्नाह, राणा दग्गुबाती और सुदीप, जो विभिन्न ऑनलाइन गेम का विज्ञापन कर करते हैं.
याचिका में कहा गया था कि ऑनलाइन गेम साइबर बुलिंग, हिंसा और जेनोफोबिया को बढ़ावा देते हैं. याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता के नीलमगम ने दलील दी कि कल ही एक सत्रह वर्षीय छात्र ने आत्महत्या कर ली. उन्होंने अदालत से कुछ कार्रवाई करने का आग्रह किया.
कहा कि तमिलनाडु में युवा फिल्मी सितारों और क्रिकेट के दीवाने हैं, जो यह संकेत देकर ऑनलाइन गेम का समर्थन करते हैं कि केवल खेल खेलने से पैसा जीता जा सकता है. उन्होंने कहा कि जंगल गेम्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम तमिलनाडु राज्य में उच्च न्यायालय के अगस्त 2021 के फैसले में केवल ऑनलाइन रमी से संबंधित है. उन्होंने न्यायालय से अन्य ऑनलाइन खेलों के लिए कुछ प्रतिबंधों पर विचार करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने का आग्रह किया.
सौरव गांगुली की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस रमन ने पीठ को सूचित किया कि याचिका में ऑनलाइन गेम का समर्थन करने वाली हस्तियों के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग की गई है. राणा दग्गुबाती की ओर से पेश हुए वकील आकाश ने कहा कि यह एक जनहित याचिका है और उच्च न्यायालय के अगस्त के फैसले ने पहले ही नैतिकता की धारणा को छूने वाले ऐसे मामलों को संबोधित किया था.
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मुख्य न्यायाधीश ने याचिका को खारिज करने से पहले मौखिक रूप से सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता को अधिक दबाव वाले सामाजिक मुद्दों को उठाने पर विचार करना चाहिए. उन्होंने कहा कि और भी कई चीजें हैं, बालिका शिक्षा पर ध्यान दें, विवाहिता की हत्या को कैसे रोक सकते हैं. इस तरह की बातों के प्रचार में न जाएं.