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MP Ajab Gajab: 4 कमरों का स्कूल, पढ़ाने के लिए 2 टीचर, मिड डे मील के लिए 1 रसोइया और पढ़ने वाला मात्र एक छात्र..

मध्य प्रदेश में ऐसे कई स्कूल हैं, जहां पर बच्चों की संख्या तो 100 से ज्यादा है, लेकिन पढ़ाने के लिए शिक्षकों की कमी है. इसको लेकर बच्चे कलेक्टर कार्यालय तक आंदोलन करने के लिए भी पहुंचे हैं. जनसुनवाई से लेकर जनप्रतिनिधियों तक अपनी गुहार लगाई, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं. चावरमारा का स्कूल इससे उलट है, यहां पर एक बच्चा दो शिक्षक हैं पर किसी की नजर नहीं जा रही है.

MP Ajab Gajab
राजसी ठाठ वाला छात्र

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 1, 2023, 10:40 PM IST

सिवनी। चार कमरे का स्कूल पढ़ाने के लिए 2 शिक्षक और भोजन बनाने के लिए एक रसोइया पढ़ने वाला मात्र एक बच्चा.. सुनने से लगता है कि कोई राजसी ठाट वाट वाला छात्र होगा, जिसे इतनी सुविधा दी जा रही है. लेकिन वास्तव में ये हाल सिवनी के केवलारी विकासखंड के चावरमारा गांव के एक सरकारी स्कूल के हैं. मध्य प्रदेश के कई सरकारी स्कूलों में 100 से ज्यादा तादाद में बच्चे हैं, लेकिन स्थाई शिक्षक नहीं मिल रहे हैं. वहीं सिवनी जिले के इस स्कूल में एक छात्र को पढ़ाने के लिए दो सरकारी टीचर तैनात किए गए हैं, स्कूल टीचर के वेतन सहित दूसरी सुविधाओं की बात करें तो महीने का खर्च लाखों में आता है.

एक बच्चे को पढ़ाने के लिए दो शिक्षक हैं तैनात:सिवनी जिले के केवलारी विकासखंड के खैरापलारी ग्राम पंचायत के चावरमारा गांव में पांचवी तक सरकारी स्कूल है, लेकिन इस स्कूल में सिर्फ एक बच्चा है और उसे पढ़ने के लिए दो शिक्षक यहां पदस्थ हैं. पिछले 3 सालों से स्कूल के यही हालात हैं, सिर्फ एक छात्र को पढ़ाने के लिए दो शिक्षक हर दिन स्कूल पहुंचते हैं.

सरकारी स्कूल में बस एक छात्र

लाखों रुपए हो रहे खर्च, स्कूल बंद करने का नहीं है प्रावधान:सरकारी खर्च का आकलन लगाया जाए तो महीने के लाखों रुपए सिर्फ एक बच्चे की पढ़ाई के लिए खर्च किया जा रहा है. इस मामले में जब ईटीवी भारत ने विकासखंड स्त्रोत समन्वयक नरेश सोनी से चर्चा की उन्होंने बताया कि "चावरवारा स्कूल में दो शिक्षक पदस्थ हैं, जिसमें एक उर्मिला राय और दूसरे शिक्षक का नाम चमरू रजक है. हालांकि स्कूल में एक ही बच्चा होने की वजह से शिक्षक चमरू रजक को शांति नगर के गिट्टी खदान स्कूल में अटैच कर दिया गया है, इतना ही नहीं स्कूल में एक बच्चे के मध्यान्ह भोजन के लिए सरकारी नियम के अनुसार रसोइया भी तैनात है."

केवलारी विकासखंड स्त्रोत समन्वयक नरेश सोनी ने बताया कि "शिक्षा के अधिकार के नियम के तहत किसी भी स्कूल में अगर एक बच्चे का नाम भी दर्ज है, तो उसे फ्रिज नहीं किया जा सकता. अगर बच्चे की माता-पिता चाहे तो उसे किसी दूसरे स्कूल में डाल सकते हैं, उसके बाद स्कूल को बंद करने की वजह फ्रीज किया जाता है. फ्रीज होने का मतलब है कि अगर फिर से कुछ सालों के भीतर स्कूल में बच्चों के दाखिले हो तो स्कूल चालू किया जा सके, इस दौरान तक शिक्षकों को दूसरे स्कूलों में अटैच किया जाता है."

इस वजह से स्कूल में नहीं होते एडमिशन:ग्रामीणों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि "गांव में स्कूल तो है, लेकिन पढ़ाई का स्तर बहुत कमजोर है. यही वजह है अब गांव के लोग सरकारी स्कूल में पढ़ाने की वजाए गांव से करीब 3 किलोमीटर दूर खैरा पलारी के स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ने भेजते हैं."

सैकड़ों स्कूल में 10 से भी कम हैं बच्चे:सिवनी जिले में सरकारी स्कूलों की कुल संख्या 2846 है, जिसमें प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल शामिल है. जिले में प्राइमरी स्कूल की कुल संख्या 2097 है और माध्यमिक स्कूलों की संख्या 749 है. इन स्कूलों में 7 ऐसे भी स्कूल है, जहां पर छात्रों की संख्या जीरो है, जिन्हें फ्रिज किया गया है. इन स्कूलों में धनोरा विकासखंड में 3, घंसौर में 2, केवलारी में 1 और बरघाट में 1 स्कूल है, तो वहीं 107 स्कूल ऐसे हैं जहां पर छात्रों की संख्या 10 या इससे कम है. 10 से 20 छात्रों की संख्या वाली स्कूलों की संख्या 364 है. यह आंकड़े इसलिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं, क्योंकि सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का वेतन बिल्डिंग और दूसरी सुविधाओं को देखें तो निजी स्कूलों के मुकाबले काफी ज्यादा है.

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शिक्षा का खराब स्तर भी एक कारण:स्कूल शुरू होने के समय ही जिले भर में स्कूल चलो अभियान चलाया जाता है, जिसमें घर-घर जाकर सर्वे किए जाते हैं. अभिभावकों को बच्चों को स्कूल भेजने के लिए समझाइए दी जाती है, इसके साथ ही शाला त्यागी बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए भी प्रयास होते हैं और प्रवेश उत्सव सहित कई कार्यक्रम कराए जाते हैं. सरकारी स्कूल में छात्रवृत्ति, मध्यान्ह भोजन, स्कूल यूनिफॉर्म, किताबें और टैबलेट आदि के जरिए भी शिक्षा दी जा रही है, लेकिन सरकारी स्कूलों में बच्चों की कमी होने का एक प्रमुख कारण शिक्षा का खराब स्तर भी माना जा रहा है. शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत निजी स्कूलों में 25% सीट गरीब छात्रों के लिए सुरक्षित है, जिसमें फीस शासन देता है. इसके साथ ही स्कॉलरशिप भी मिलती है, निजी स्कूलों की चमक दमक और प्रचार प्रसार भी इसका एक प्रमुख कारण माना जाता है.

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