हिमाचल प्रदेश में आई प्राकृतिक आपदा के मूल कारणों का पता लगाएगा लखनऊ विश्वविद्यालय
लखनऊ विश्वविद्यालय के भू विज्ञान विभाग की एक टीम अक्टूबर महीने में शिमला, सोलन व जोशीमठ के क्षेत्र का दौरा करेगी. टीम भारी बारिश के बाद आई प्राकृतिक आपदा के पीछे के कारणों का पता लगाकर एक रिपोर्ट तैयार करेगी.
जानकारी देते लखनऊ विश्वविद्यालय के भू विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ अजय आर्य
लखनऊ :हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला, सोलन व उत्तराखंड के जोशीमठ में भारी बारिश के बाद आई प्राकृतिक आपदा के पीछे के कारणों का पता जल्द लगेगा. अधिक बारिश होने के कारण शिमला व सोलन में पहाड़ों के दरकने के पीछे बारिश के अलावा और कौन से कारण मुख्य हैं, इसका पता लखनऊ विश्वविद्यालय का भू विज्ञान विभाग लगाएगा. लखनऊ विश्वविद्यालय के भू विज्ञान विभाग की एक टीम अक्टूबर महीने में शिमला, सोलन व जोशीमठ के क्षेत्र का भ्रमण कर वहां के नमूने इकट्ठा करेगी. लखनऊ विश्वविद्यालय भू विज्ञान विभाग के अपने रिसर्च स्कॉलर व प्रोफेसर की टीम भेजकर यहां पर बीते दशकों में हुए बदलाव का आंकलन कर एक रिपोर्ट तैयार करेगी. यह देखेगी कि यहां हुए अधाधुंध विकास कार्य से पहाड़ों पर क्या असर पड़ा है. समीक्षा करने के बाद विश्वविद्यालय इस संबंध में राज्य सरकारों को रिपोर्ट उपलब्ध कराएगी.
लखनऊ विश्वविद्यालय के भू विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ अजय आर्य ने बताया कि 'शिमला, सोलन व जोशीमठ का जो एरिया है वह लेसर हिमालय (लघु हिमालय) क्षेत्र में आता है. जिसे भूगर्भी भाषा में इन पहाड़ों को कच्चे पहाड़ कहा जाता है. इस क्षेत्र में जो पहाड़ हैं उसमें जो पत्थर पाए जाते हैं वह या तो सेल है या स्लेट हैं. यह छोटे-छोटे धूल के कणों से बने हुए हैं. ऐसे में जब कभी बारिश होती है तो यह पहाड़ फूल जाते हैं और अत्यधिक गर्मी पड़ने पर यह सिकुड़ जाते हैं. ऐसे में इन पहाड़ों में एक खाली जगह हमेशा बनी रहती है. जब भी भारी बारिश होती है तो यहां पर जो सैचुरेटेड जोन है व अनसैचुरेटेड जोन में तब्दील हो जाता है.' प्रोफेसर आर्य ने बताया कि 'ऐसे में पहाड़ों का जो पोर प्रेसर है, हल्की बारिश में भी काफी बढ़ जाता है, जिस कारण यहां पर भूस्खलन हो रहा है.'
उन्होंने बताया कि 'यह भूस्खलन जितना प्राकृतिक है उतना ही मानव का निर्मित भी है. पहाड़ी क्षेत्र का जो लैंड यूज और लैंड कवर है वह मैदान क्षेत्र से काफी भिन्न है. ऐसे में निर्माण के लिए जो भी कंपनियां लैंड कवर और लैंड यूज़ की प्लानिंग कर रही हैं उसमें कहीं न कहीं किसी प्रकार की कोई न कोई खामी है. जिसे अब देखने की जरूरत है. एक से दो दशकों में जो पर्यटन को बढ़ावा मिला है, उसको देखते हुए इन क्षेत्रों में जो निर्माण व डेवलपमेंट के काम चल रहा है, उनको इतनी तेजी से करने के बजाय प्लानिंग ऐसी होनी चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह की किसी भी समस्या का सामना किया जा सके.'
लखनऊ विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभाग के प्रोफेसर्स का कहना है कि 'शिमला जिस पहाड़ी पर स्थित है वह भुरभुरे या मिट्टी के पत्थरों की पहाड़ी है. बीते एक दशक में पहाड़ पर रोड चौड़ीकरण करने के नाम पर हुए अंधाधुंध काटन व पेड़ों की कटाई ने पहाड़ों को कमजोर कर दिया है. ऐसे में भारी बारिश की स्थिति में शिमला में यह प्राकृतिक आपदा आई है. शिमला सोलन या जोशीमठ में सड़कों की चौड़ीकरण करने से पहले वहां कितने लेन की रोड बन सकती है, इस पर एक्सपोर्ट किया जाना सबसे जरूरी है. प्रो. आर्य ने बताया कि 'भू-विज्ञान विभाग की एक टीम इन सभी जगह का अक्टूबर महीने में दौरा करेगी और बीते दो दशक में इन क्षेत्रों में हुए निर्माण व उसके कारण हो रहे बदलाव का अध्ययन करेगी. उन्होंने बताया कि इससे पहले हमारे विभाग ने हिमाचल प्रदेश के ही चंबा और भरमौर क्षेत्र का भी दौरा किया था और वहां के नमूनों की जांच में पाया था कि उनके लोंगिट्यूड आदी में अंधाधुंध निर्माण के कारण काफी परिवर्तन आ गया है. उन जगहों पर भी इसी तरह की समस्याओं से लोग जूझ रहे हैं.'