कोच्चि : केरल उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति आर नारायण पिशारदी ने अपने आदेश में कहा कि केवल इसलिए कि पीड़िता आरोपी से प्यार करती थी, यह नहीं माना जा सकता कि उसने संबंध बनाने के लिए सहमति दी थी.
अदालत ने 31 तारीख के अपने आदेश में कहा, कानून के परिप्रेक्ष्य में अपरिहार्य मजबूरी के सामने बेबसी को सहमति नहीं माना जा सकता. सहमति के लिए किसी कृत्य के बारे में और इसके नैतिक प्रभाव का बोध होना आवश्यक है. केवल इस वजह से कि पीड़िता आरोपी से प्यार करती थी, यह नहीं कहा जा सकता कि उसने शारीरिक संबंध के लिए सहमति दी थी.
अदालत 26 वर्षीय श्याम सिवन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने अपनी दोषसिद्धि और निचली अदालत द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 376 समेत विभिन्न धाराओं के तहत सुनाई गई सजा को चुनौती दी.
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आरोपी 2013 में एक लड़की को मैसूर ले गया था, जिसके साथ उसके संबंध थे और लड़की की सहमति के बिना उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए. अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी ने उसके सोने के सभी गहने बेच दिए और फिर उसे गोवा ले गया, जहां उसने लड़की से फिर से बलात्कार किया.