नई दिल्ली : समय के साथ साइबर हमलों के खतरे का सामना करते हुए भारत में लंबे समय से प्रतीक्षित राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति (NCSS) एक महीने में लागू हो सकती है. भारतीय बिजली क्षेत्र के संगठनों पर हमला करने वाली चीन प्रायोजित संस्थाओं की हालिया रिपोर्ट के बाद ऐसी संभावना है कि भारत की साइबर सुरक्षा नीति की दीवार को बहुत तेजी से खड़ा किया जा सकता है.
भारत के राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक लेफ्टिनेंट जनरल राजेश पंत ने ईटीवी भारत को बताया कि हमारी नई रणनीति (एनसीएसएस) बहुत जल्द सामने आने वाली है. जिसमें पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को संबोधित किया जाएगा कि हम अपनी सुरक्षा कैसे करेंगे. रणनीति पर काम पहले ही खत्म हो चुका है और इसे केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के लिए भेजा गया है. इसलिए यह एक या दो महीने में हो जाना चाहिए. हाल ही में एक रिपोर्ट में ई रेड इको नाम के एक चीन प्रायोजित समूह की भागीदारी का संकेत दिया गया था, जो भारत के बिजली क्षेत्र पर निर्देशित साइबर हमलों में लिप्त था.
साइबर सुरक्षा केंद्र होना जरूरी
जनरल पंत ने कहा कि यह सब साइबर स्वच्छता से संबंधित है. हमें वास्तव में इंटरनेट से जुडे़ कंप्यूटर के बारे में सावधान रहना होगा. प्रतिकूल साइबर हमलावर आपको उन कंप्यूटरों पर कुछ लिंक पर क्लिक करने के लिए कहता है जो इंटरनेट से जुड़े हैं. इसी से मालवेयर आता है और वहां से फैल जाता है जिसे 'लेटरल स्प्रेडिंग' कहा जाता है. लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा यह है कि इसके ऑपरेटिंग सिस्टम (ओएस) तक विरोधी को पहुंचने में सक्षम नहीं होना चाहिए. भारत के साइबर सुरक्षा समन्वयक ने कहा कि आईटी पर निर्भरता इतनी अधिक हो गई है, यही कारण है कि भारत में हर क्षेत्र में एक साइबर सुरक्षा केंद्र होना चाहिए.
एक खोजी और शोध-आधारित रिपोर्ट जिसे रिकॉर्डेड फ्यूचर द्वारा तैयार किया गया है, जो कि अमेरिका की एक निजी साइबर खतरा विश्लेषण फर्म है. दरअसल, अप्रैल-मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच जारी तनावपूर्ण सीमा सैन्य गतिरोध की पृष्ठभूमि में रिपोर्ट के निष्कर्षों का महत्व है. हालांकि, दोनों एशियाई दिग्गजों के बीच वार्ता द्वारा 'विघटन और डी-एस्केलेशन' की एक प्रक्रिया को गति प्रदान की गई है.