पटना:बिहार में सियासी खेला हुआ है.'बंगले' में टूट हुई है. पशुपति पारस (Pashupati Paras) ने लोजपा (LJP) में उलटफेर करते हुए पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है. साथ ही लोजपा के पांच सांसदों का समर्थन मिलने के बाद उन्हें एलजेपी के संसदीय दल के नेता की मान्यता भी मिल गई है. यह सियासी बखेड़ा सोमवार सुबह खड़ा हुआ था. दिन भर के घटनाक्रम के बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला (Lok Sabha speaker OM Birla) ने पारस के नाम पर मुहर लगा दी.
संसदीय दल के नेता की मिली मान्यता
लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने पशुपति पारस को लोजपा के संसदीय दल के नेता के तौर पर मान्यता दी है. वहीं, चिराग पासवान (Chirag Paswan) के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद करने वाले 5 सांसदों में से एक वीणा देवी ने साफ किया है कि एलजेपी (LJP) में कोई टूट नहीं हुई है. उनके मुताबिक सिर्फ नेतृत्व बदला है. उन्होंने तो यहां तक कहा कि हम लोग उनको ही राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनाएंगे.
जदयू की अहम भूमिका
पशुपति पारस के अपने ही घर में इस सेंधमारी में जदयू की भी अहम भूमिका बताई जा रही है. जदयू के कद्दावर नेता नेता ललन सिंह (Lalan Singh) ने वीणा देवी(Veena Devi) से उनके नई दिल्ली आवास पर मुलाकात की. ललन सिंह काफी देर तक वहां रुके. वीणा देवी के अलावा वहां एलजेपी के अन्य बागी सांसद भी मौजूद थे. ललन ने सभी सांसदों के साथ बातचीत की, फिर वहां से निकल गए.
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नीतीश ने लिया बदला
कहा तो यह भी जा रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने चिराग पासवान से बदला लिया है. लोजपा सांसदों की टूट के बाद चिराग पासवान का राजनीतिक करियर दांव पर लग गया है. जानकार यह बात भी खुलकर कह रहे हैं कि इन सब के पीछे चिराग पासवान के द्वारा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर किए गए तीखे प्रहार काफी अहम कारण हैं.
लोकसभा में संसदीय दल के नेताओं के नाम. चुनाव में जदयू को पहुंचा था नुकसान
बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election-2020) के समय जनता दल यूनाइटेड (JDU) और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) पर जमकर हमला बोला था. चुनाव से ठीक पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से अलग होने के बाद चिराग ने नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोला था.
विधानसभा चुनाव के 6 महीने बाद आखिरकार नीतीश ने चिराग से अपना 'बदला' ले लिया. चिराग के अकेले चुनाव लड़ने से एनडीए में सबसे अधिक नुकसान जदयू को हुआ था. चुनाव में लोजपा ने जदयू के वोट बैंक पर सेंधमारी की थी. जिसका परिणाम चुनावी नतीजों में दिखा. जदयू की हैसियत सीटों की लिहाज से घट गयी. वह खिसक कर तीसरे पायदान पर पहुंच गई. जिसका बदला अब नीतीश कुमार ने बदला लिया.
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टूट का कारण 'जदयू'- कांग्रेस
लोजपा में हुए टूट पर कांग्रेस ने भी जदयू को इसका कारण बताया है. कांग्रेस एमएलसी प्रेमचंद्र मिश्रा ने कहा कि लोक जनशक्ति पार्टी में टूट का कारण जनता दल यूनाइटेड है.
इस बारे में कांग्रेस के विधान पार्षद प्रेमचंद्र मिश्र ने कहा किआज लोजपा (LJP) में टूट हुई है. हमने देखा है कि किस तरह की टूट हुई है. कहीं ना कहीं इस टूट में जदयू (JDU) का हाथ है. जो काम जदयू पार्टी आजकल कर रही है, वो ठीक नहीं है. कांग्रेस ऐसे कार्यों को राजनीतिक भ्रष्टाचार मानती है. जो आजकल जदयू के लोग बिहार में कर रहे हैं. जदयू आजकल पूरी तरह दलबदलुओं की पार्टी बनती जा रही है. इसका कारण है कि इनके नेता अन्य दलों को तोड़ने में लगे हैं. जाहिर है कि अभी ये सत्ता में हैं. इन्हें पार्टी टूटने का दर्द नहीं पता चल रहा है. लेकिन जिस दिन ये विपक्ष में होंगे, उस दिन इन्हें भी इस दर्द का पता चल जाएगा.
पार्टी दफ्तर के बाहर टंगा नया नेम प्लेट
वहीं, इस सियासी घटनाक्रम का असर अब जमीन पर भी दिखने लगा है. पटना में पार्टी दफ्तर बाहर में पशुपति कुमार पारस (Pashupati Paras) का बोर्ड, अध्यक्ष के रूप लगाया गया है.
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कौन हैं पशुपति कुमार पारस?
पशुपति कुमार पारस अलौली से पांच बार विधायक रह चुके हैं. उन्होंने जेएनपी उम्मीदवार के रूप में 1977 में अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता. तब से वे एलकेडी, जेपी और एलजेपी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ते रहे हैं. उन्होंने बिहार सरकार में पशु और मछली संसाधन विभाग के मंत्री के रूप में कार्य किया. हाजीपुर से 2019 का संसदीय चुनाव जीता और संसद के सदस्य बने. इसके अलावा, वे लोक जनशक्ति पार्टी की बिहार इकाई के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
क्या है सियासी घटना घटनाक्रम?
पार्टी टूट में अगर सबसे बड़ी भूमिका खुद चिराग के चाचा यानी पशुपति पारस ही हैं. बताया जा रहा है कि 2020 के विधानसभा चुनाव ( Bihar Assembly Election-2020 ) में जब चिराग ने NDA से अलग रहकर चुनाव लड़ने का प्लान पार्टी में सबके सामने रखा था तभी पशुपति पारस इसके खिलाफ थे. पशुपति पारस और नीतीश कुमार के बीच नजदीकियां जग जाहिर हैं. बताया जाता है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) के निधन के बाद सेपशुपति पारसपार्टी नेतृत्व से नाराज चल रहे थे.