नई दिल्ली:साल 2014 में बीजेपी ने अपने दम पर 282 सीटें जीतीं और एनडीए ने मिलकर 336, साल 2019 में बीजेपी ने 303 और एनडीए ने 352 सीटें जीतीं. दोनों ही चुनाव में ये ऐसा जादुई आंकड़ा था जिसे लेकर बीजेपी पूरे पांच साल तक विश्वास से लबरेज होकर सरकार में निर्णय लेती रही.
समीक्षकों ने इसे बीजेपी का स्वर्णिमकाल तक करार दिया. लेकिन धीरे-धीरे 2024 के चुनाव से पहले बीजेपी के अपने पुराने सहयोगी अलग होते गए और एक समय पार्टी के साथ कदमताल मिलाकर वर्षों तक चलनेवाली पार्टियों ने या तो विपक्ष का दामन थाम लिया या फिर एकला चलो की राह पर निकल पड़ीं. लेकिन क्या बीजेपी 'बड़े भाई' का फर्ज निभाते हुए लोकसभा चुनाव से पहले अपनी रणनीति बदल रही है और पार्टी को 25 साल पुराने सहयोगियों की फिर से याद आ रही है. क्या बीजेपी गठबंधन की पुरानी सहयोगियों को एकबार फिर से वापस लाने की कवायद में है.
मांझी के बेटे का इस्तीफा, क्या हैं मायने? :सूत्रों की मानें तो अपने पुराने सहयोगियों को वापस गठबंधन में लाने की भाजपा पूरी कोशिश चल रही है. मंगलवार को बिहार के दलित चेहरा जीतनराम मांझी के बेटे संतोष सुमन मांझी ने नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. सूत्रों की मानें तो 2019 के चुनाव में 3 सीटों पर नालंदा, गया और औरंगाबाद से चुनाव लड़ा था, मगर कहीं भीं उनकी जीत नहीं हुई थी.
इस बार 'हम' 5 सीटों की मांग कर रही थी, जिसपर कथित तौर पर नीतीश कुमार ने पार्टी को जेडीयू में विलय करने की शर्त रख दी. उसके बाद ही इस्तीफे का खेल शुरू हुआ. यहां अटकलें ये भी लग रही हैं कि अप्रैल में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर चुके जीतनराम मांझी एकबार फिर एनडीए का दामन थाम सकते हैं.