नई दिल्ली: उत्तर भारतीय हिंदू और सिख इसे माघी कहते हैं, जो लोहड़ी से पहले मनाया जाता है. महाराष्ट्र, गोवा, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और तेलंगाना में इसे मकर संक्रांति और पौष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है. मध्य भारत में इसे सुकरात कहा जाता है, असमिया इसे माघ बिहू कहते हैं, पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे खिचड़ी कहा जाता है.
इस साल लोहड़ी उत्सव 14 जनवरी को मनाया जा रहा है. यह मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर सहित भारत के उत्तरी क्षेत्रों में मनाया जाता है. सूर्य देव को सम्मान देते हुए लोग अलाव के चारों ओर गाते और नृत्य करते हैं. मक्की की रोटी, सरसों का साग, पिन्नी, गुड़ गजक, दही भल्ले और हलवा जैसे पारंपरिक व्यंजन इस अवसर पर परोसे जाने वाले पाक आनंद हैं.
इंदौर के ज्योतिषाचार्य भानु चौबे ने बताया कि ज्योतिषीय रूप से, यह घटना सूर्य की स्थिति में बदलाव का प्रतिनिधित्व करती है, जो दिन के लंबे समय को दर्शाती है. माना जाता है कि सौर ऊर्जा में बदलाव का पर्यावरण और व्यक्ति दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. उन्होंने ईटीवी से बात करते हुए कहा मंकर संक्राति के अवसर पर दान की जाने वाली वस्तुओं के महत्व के बारे में भी बताया.
मकर संक्रांति :मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में संक्रमण का प्रतीक है जिसके बाद गर्म और लंबे दिन आते हैं. यह दिन कड़ाके की ठंड के अंत का प्रतीक है. उत्तरायण की यह अवधि लगभग छह महीने तक रहती है. मकर संक्रांति साल में पड़ने वाली सभी 12 संक्रांतियों में से सबसे महत्वपूर्ण है.