बक्सर:बिहार के बक्सर जिले का गौरव पांच दिवसीय पंचकोशी परिक्रमाका बुधवार को समापन हो गया. 2 दिसंबर से शुरू पांच दिनों तक चलने वाले पंचकोशी परिक्रमा मेला का चरित्रवन में लिट्टी चोखा के भोग के साथ समापन हुआ. ठंड होने के बावजूद भी पंचकोशी परिक्रमा मेला में आये हजारों श्रद्धालु और संत समाज पांच दिनों तक मेला के भक्तिमय माहौल से आनंदित थे.
पुनर्जन्म से मिलती है मुक्ति : इस बाबत संत त्रिदंडी स्वामी गंगापुत्र ने बताया कि "बक्सर के इस पंचकोशी परिक्रमा मेला के महत्व का वर्णन वराह पुराण के श्लोक एक से लेकर 197 श्लोक तक में विस्तृत रूप से हुआ है. यहीं नहीं श्रीमद्भागवत महापुराण में भी इसके महत्व की चर्चा खूब की गई है. जो भी श्रद्धालु पंचकोशी परिक्रमा करतें हैं. उनका पुनर्जन्म नहीं होता है. पांच दिनों तक चलने वाले इस परिक्रमा मेला में बिहार ही नहीं उतर प्रदेश और झारखंड के भी हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं."
श्रीराम ने भी की थी पंचकोशी परिक्रमा : गौरतलब है कि पंचकोशी परिक्रमा मेला यात्रा को लेकर कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम, लक्ष्मण, महर्षि विश्वामित्र के साथ बक्सर आये थे. उस समय बक्सर में ताड़का, सुबाहू, मारीच समेत कई राक्षसों का आतंक था. इन राक्षसों का वध कर भगवान राम ने महर्षि विश्वामित्र से यहां शिक्षा ग्रहण की थी. ताड़का वध करने के बाद भगवान राम ने नारी हत्या दोष से मुक्ति पाने के लिए प्रायश्चित्त स्वरूप अपने भ्राता लक्ष्मण और महर्षि विश्वामित्र के साथ यात्रा कर बक्सर के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित पांच ऋषियों के आश्रम गये और आशीर्वाद प्राप्त किये.
पांच ऋषियों के आश्रम का किया था दौरा : कहा जाता है कि इस यात्रा के पहले पड़ाव में गौतम ऋषि के आश्रम अहिरौली भगवान राम पहुंचे. वहां पत्थर रूपी अहिल्या को अपने चरणों से स्पर्श कर उनका उद्धार किया. फिर उत्तरावाहिनी गंगा में स्नान कर पुआ-पकवान खाये. यात्रा के दूसरे पड़ाव में भगवान राम नारद मुनि के आश्रम नादांव पहुंचे, जहां सरोवर में स्नान करने के बाद सत्तू और मूली का उन्होंने भोग लगाया. इसी तरह तीसरे पड़ाव में भार्गव ऋषि के आश्रम भभुअर में चूड़ा दही का भोग लगाया.
अंतिम पड़ाव पर लगाया था लिट्टी चोखा का भोग : मान्यता है कि चौथे पड़ाव में उद्दालक ऋषि के आश्रम नुआव में भगवान राम ने खिचड़ी और पांचवें और अंतिम पड़ाव में चरित्र वन में पहुंचकर लिट्टी चोखा का भोग लगाया. तभी से इस परंपरा का लोग निर्वहन करते आ रहे हैं. प्रत्येक साल अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से इस यात्रा की शुरुआत होती है.