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कर्नाटक में बीजेपी के लिए गले की हड्डी बना लिंगायत आरक्षण का मुद्दा - कर्नाटक में बीजेपी

कर्नाटक में बीजेपी सरकार की आरक्षण को लेकर मुश्किलें बढ़ सकती हैं. कर्नाटक में वीरशैवा लिंगायत संप्रदाय ने एक बार फिर आरक्षण देने की मांग दोहराई है. लिंगायत समाज के नेताओं ने राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि अगर मांग जल्द पूरी नहीं हुई तो वह बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करेंगे.

Lingayat community seeks OBC status
Lingayat community seeks OBC status

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Published : May 16, 2022, 3:31 PM IST

बेंगलुरू :कर्नाटक में एक बार फिर आरक्षण आंदोलन की आग सुलग रही है. सत्तारूढ़ भाजपा वीरशैव लिंगायत समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) सूची में शामिल करने की मांग को लेकर असमंजस में है. समुदाय के नेताओं ने चेतावनी भी दी है कि अगर मांग पूरी नहीं की गई तो वे बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करेंगे. वरिष्ठ कांग्रेस नेता ओर अखिल भारत वीरशैव-लिंगायत महासभा के अध्यक्ष शमनूर शिवशंकरप्पा कहना है कि आरक्षण से जुड़ी मांगों को लेकर आम सभा की बैठक में फैसला लिया गया है.

2023 में राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. अगर उससे पहले बीजेपी इस समस्या का समाधान नहीं ढूंढती है तो उसके लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. कर्नाटक में वीरशैव-लिंगायत समुदाय कुल आबादी का 18 से 20 प्रतिशत है, इस कारण राजनीति में इस समुदाय का बड़ा हस्तक्षेप हैं. फिलहाल माना जाता है कि लिंगायत वोटर कर्नाटक में सत्तारूढ़ भाजपा के पीछे मजबूती से खड़े हैं. कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा और वर्तमान सीएम बसवराज वोम्मई भी लिंगायत समुदाय से आते हैं.

वीरशैव लिंगायत समुदाय को ओबीसी का दर्जा देना भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के लिए आसान नहीं हैं. कर्नाटक का एक अन्य समुदाय वोक्कालिगा राज्य के लिंगायतों को आरक्षण देने का विरोध करती है. वोक्कालिगा समुदाय के नेताओं ने वीरशैव लिंगायत समुदाय को फॉरवर्ड क्लास (जनरल कैटिगरी) में रखने की मांग की है. जबकि पूर्व प्रधान मंत्री एच.डी. देवेगौड़ा के कार्यकाल में वोक्कालिगा समुदाय को ओबीसी का दर्जा दिया जा चुका है. वरिष्ठ कांग्रेस नेता ईश्वर बी खंड्रे ने कहा कि हालांकि वीरशैव-लिंगायत समुदाय को अगड़ी जाति के रूप में माना जाता है, लेकिन यह सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक परिदृश्यों के मामले में सबसे पिछड़े समुदायों में से एक है. केंद्र सरकार की नौकरियों जैसे यूपीएससी, बैंकिंग क्षेत्र, रेलवे, कर्मचारी चयन आयोग और सार्वजनिक क्षेत्र में वीरशैव-लिंगायतों की हिस्सेदारी बहुत ही कम है.

2014 के बाद से लिंगायत समुदाय के लोग कर्नाटक में बीजेपी के समर्थन में खड़े हैं. बीजेपी ने उन्हें ओबीसी कैटिगरी में शामिल करने का वादा किया था. अब अगले साल जब राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, लिंगायतों की मांग भी जोर पकड़ने लगी है. अगर भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार उनकी मांग मान लेती है तो वह एक तरह से भानुमति का पिटारा खोल देगी. राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की कई जाति के लोग काफी समय से ओबीसी का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. कर्नाटक में ही कडू गोला और कुरुबा समुदाय के लोग भी अनुसूचित जनजाति वर्ग के तहत आरक्षण की मांग कर रहे हैं. अगर बीजेपी इस मांग को पूरा नहीं करती है और चुनावी मौसम में कांग्रेस उसे निशाना बना सकती है, जिसका असर विधानसभा चुनाव के दौरान दिख सकता है. फिलहाल कर्नाटक भाजपा के नेता इस मुद्दे पर खामोश ही हैं और राज्य सरकार भी फूंक-फूंककर कदम रख रही है.

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