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वीर सावरकर के बारे में झूठ फैलाया गया : राजनाथ सिंह - प्रीवेंटेड पार्टिशन

राजनाथ सिंह ने कहा, सावरकर के बारे में झूठ फैलाया गया. बार-बार, यह कहा गया कि उन्होंने ब्रिटिश सरकार के समक्ष दया याचिका दायर कर जेल से रिहा करने की मांग की... महात्मा गांधी ने ही उन्हें दया याचिका दायर करने के लिए कहा था.

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Published : Oct 13, 2021, 7:58 AM IST

Updated : Oct 13, 2021, 8:54 AM IST

नई दिल्ली : भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राष्ट्र नायकों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में वाद प्रतिवाद हो सकते हैं लेकिन विचारधारा के चश्मे से देखकर वीर सावरकर के योगदान की उपेक्षा करना और उन्हें अपमानित करना क्षमा योग्य और न्यायसंगत नहीं है.

राजनाथ सिंह ने उदय माहूरकर और चिरायु पंडित की पुस्तक 'वीर सावरकर हु कुड हैव प्रीवेंटेड पार्टिशन' के विमोचन कार्यक्रम में यह बात कही. इसमें सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी हिस्सा लिया.

वीर सावरकर के बारे में झूठ फैलाया गया : राजनाथ सिंह

सिंह ने कहा, एक खास विचारधारा से प्रभावित तबका वीर सावरकर के जीवन एवं विचारधारा से अपरिचित है और उन्हें इसकी सही समझ नहीं है, वे सवाल उठाते रहे हैं.

उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्र नायकों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में वाद प्रतिवाद हो सकते हैं लेकिन उन्हें हेय दृष्टि से देखना किसी भी तरह से उचित और न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता है.

राजनाथ सिंह ने कहा कि वीर सावरकर महान स्वतंत्रता सेनानी थे, ऐसे में विचारधारा के चश्मे से देखकर उनके योगदान की अनदेखी करना और उनका अपमान करना क्षमा योग्य नहीं है.

उन्होंने कहा, वीर सावरकर महानायक थे, हैं और भविष्य में भी रहेंगे. देश को आजाद कराने की उनकी इच्छा शक्ति कितनी मजबूत थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों ने उन्हें दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई, कुछ विशेष विचारधारा से प्रभावित लोग ऐसे राष्ट्रवादी पर सवालिया निशान लगाने का प्रयास करते हैं.

उन्होंने कहा कि कुछ लोग उन पर (सावरकर) नाजीवादी, फासीवादी होने का आरोप लगाते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसा आरोप लगाने वाले लोग लेनिनवादी, मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित थे और अभी भी हैं .

सिंह ने कहा कि सीधे शब्दों में कहें तो सावरकर ‘यथार्थवादी’ और राष्ट्रवादी थे जो बोल्शेविक क्रांति के साथ स्वस्थ लोकतंत्र की बात करते थे.

उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व को लेकर सावरकर की एक सोच थी जो भारत की भौगोलिक स्थिति और संस्कृति से जुड़ी थी . उनके लिये हिन्दू शब्द किसी धर्म, पंथ या मजहब से जुड़ा नहीं था बल्कि भारत की भौगोलिक एवं सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा था.

पढ़ें :सावरकर को बदनाम करने की चल रही मुहिम, कहीं अगला निशाना विवेकानंद न हो जाएं : भागवत

उन्होंने कहा, इस सोच पर किसी को आपत्ति हो सकती है लेकिन इस विचार के आधार पर नफरत करना उचित नहीं है.

उन्होंने अंग्रेजों के समक्ष दया याचिका के बारे में एक खास वर्ग के लोगों के बयानों को गलत ठहराते हुए यह दावा किया कि महात्मा गांधी के कहने पर सावरकर ने याचिका दी थी.

Last Updated : Oct 13, 2021, 8:54 AM IST

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