नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High court) के लिए सौरभ किरपाल के नाम को उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) के कॉलेजियम ने मंजूरी दे दी है. सौरभ किरपाल के रूप में भारत को पहला समलैंगिक न्यायाधीश मिलने वाला है. एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) समुदाय के कुछ लोगों ने जहां इसे ऐतिहासिक करार दिया तो कुछ अन्य ने इसे 'निष्पक्ष भारत' के प्रतीक के रूप में वर्णित किया है.
प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एन वी रमण की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम की मंजूरी मिलने के साथ वरिष्ठ अधिवक्ता का दिल्ली उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम आगे बढ़ा है. उनके यौन अभिरूचि के कारण उनके नाम की सिफारिश पर फैसला 2018 के बाद से कई बार स्थगित हुआ.
केंद्र को मंजूरी के लिए सिफारिश भेजी गई है, जो इसे वापस कॉलेजियम को भेज सकता है. हालांकि, अगर नाम वापस भेजा जाता है, तो केंद्र के पास इसे मंजूरी देने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहेगा.
अपनी समलैंगिक स्थिति के बारे में खुलकर बोलने वाले किरपाल (49) की संभावित पदोन्नति की खबर को समलैंगिक समुदाय के लोगों और मशहूर हस्तियों, अधिकार कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों से सोशल मीडिया तथा अन्य जगहों पर भावनात्मक प्रतिक्रिया मिली है.
किरपाल के मित्र, लेखक शरीफ डी रंगनेकर के लिए यह सिफारिश अविश्वसनीय रूप से बहुत बड़ी है. साथ ही यह समुदाय में एक सम्मानजनक जीवन जीने के लिए कई लोगों को प्रेरित करेगी.
पूर्व पत्रकार और 'स्ट्रेट टू नॉर्मल: माई लाइफ ऐज ए गे मैन' के लेखक रंगनेकर ने कहा कि मैं आपको बता नहीं सकता कि यह खबर पाकर मैं कितना खुश हूं. यह निश्चित रूप से सौरभ किरपाल की उपलब्धि है, इसका सारा श्रेय उन्हें जाता है, लेकिन हम एक ऐसे समुदाय में रह रहे हैं, जहां बहुत कम लोग हैं, जो किसी खास पद पर हैं, जो एक खास तरह का प्रभाव रखते हैं, एक ऐसी चीज जिसे हम आज पाना चाहते हैं.
उन्होंने कहा कि सौरभ भारत से अलग किसी दूसरे देश में जाने का विकल्प चुन सकते थे, और अधिक सम्मान प्राप्त कर सकते थे. लेकिन वह यहीं रहे, वह किसी भी दबाव में नहीं झुके हैं. आप नहीं जानते कि अब और कितने वकील किरपाल के रूप में सामने आएंगे, तथा भेदभाव महसूस नहीं करेंगे. यह वास्तव में समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है.
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उल्लेखनीय है कि पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस भूपिंदर नाथ किरपाल के पुत्र सौरभ किरपाल ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से कानून में स्नातकोत्तर किया तथा जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र में एक संक्षिप्त कार्यकाल के बाद भारत लौट आए. किरपाल दो दशक से अधिक समय से शीर्ष अदालत में वकालत कर रहे हैं. वह उस मामले में नवतेज जौहर, रितु डालमिया और अन्य लोगों के वकील थे, जिसमें 2018 में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था.