नई दिल्ली :दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में पुलिस की बर्बरता की घटनाओं पर महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि यह नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन है और अक्सर ऐसी ही अप्रिय (दु:खद) घटनाएं होती हैं.
न्यायमूर्ति नजमी वज़ीरी ने दिल्ली पुलिस के अधिकारियों द्वारा दो लोगों के साथ मारपीट के मामले की सुनवाई करते हुए अफ्रीकी अमेरिकी व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड के दुर्भाग्यपूर्ण मामले का भी उल्लेख किया, जिसकी गिरफ्तारी के दौरान मौत हो गई थी.
एक श्वेत पुलिस अधिकारी डेरेक चाउविन द्वारा फ़्लॉइड की गर्दन पर अपना घुटना लगभग नौ मिनट तक दबाने के कारण फ़्लॉइड के बार-बार कहने के बावजूद कि 'मैं सांस नहीं ले पा रहा', उसकी मौत हो गई थी.
न्यायमूर्ति वज़ीरी ने कहा, 'कानून लोगों को पुलिस हिरासत में या पूछताछ के दौरान पीटने की अनुमति नहीं देता है. याचिकाकर्ता और उसके सहयोगी पर पुलिस द्वारा हमला संदिग्ध है. नागरिकों के अधिकारों के उल्लंघन या किसी भी तरह की लापरवाही या कानून-प्रवर्तकों द्वारा अति-प्रतिक्रिया जो एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना या त्रासदी का कारण बन सकती है. किसी को भी जॉर्ज पेरी फ़्लॉइड, जूनियर जैसे दुखद अंतिम शब्दों को दोहराने की ज़रूरत नहीं है: 'मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं.'
याचिकाकर्ताओं ने अधिवक्ता सूफियां सिद्दीकी के माध्यम से दोषी अधिकारियों के खिलाफ निष्पक्ष, समयबद्ध जांच की मांग की. उन्होंने आरोप लगाया कि प्रारंभिक जांच निरीक्षक (सतर्कता) द्वारा की गई और मामला बंद कर दिया गया, जैसे कि कुछ भी उल्लेखनीय या कार्रवाई योग्य नहीं हुआ.
यह उनका मामला था कि उन्हें न तो किसी जांच के लिए बुलाया गया और न ही उनकी चोटों की जांच की गई और न ही उन पर विचार किया गया. इसलिए, निरीक्षक (सतर्कता) द्वारा की गई प्रारंभिक जांच को एक दिखावा बताते हुए याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि एक उच्च रैंक के अधिकारी द्वारा जांच की जाए.
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अदालत ने पुलिस उपायुक्त (सतर्कता) द्वारा जांच करने का निर्देश देते हुए याचिकाओं का निपटारा किया और कहा कि याचिकाओं को पुलिस के प्रतिनिधित्व के रूप में माना जाएगा.
अदालत ने कहा, 'याचिकाकर्ता को इस आदेश की प्राप्ति के चार सप्ताह के भीतर वकील के माध्यम से भी सुना जाएगा. उसके बाद दो सप्ताह के भीतर निर्णय / रिपोर्ट / कार्रवाई की सूचना याचिकाकर्ता को दी जाएगी.'