'तहसीम' और 'रुखसाना' के नाम पर विवाद. देहरादून (उत्तराखंड):टिहरी के नरेंद्र नगर और हरिद्वार के श्यामपुर क्षेत्र से लगभग 10 महीने पहले मिले तेंदुए (गुलदार) के दो शावकों को नया घर मिल गया है. हरिद्वार के चिड़ियापुर रेस्क्यू सेंटर में लंबे समय से रह रहे दोनों तेंदुओं को राजधानी देहरादून के चिड़ियाघर भेज दिया गया है. लेकिन अब इन दोनों के नाम को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. हिंदू संगठनों और तीर्थ पुरोहितों ने तेंदुए के नामों को लेकर आपत्ति जताई है.
दरअसल, चिड़ियापुर रेस्क्यू सेंटर में 11 महीने तक सेवा करने वाले उपनल कर्मी और उनकी पत्नी के नाम पर ही दोनों तेंदुओं का नाम रखा गया है. दोनों तेंदुओं में से मादा का नाम रुखसाना रखा गया है जो करीब एक साल की है. वहीं, नर तेंदुए का नाम तहसीम रखा गया है जो 9 महीने का है. इन दोनों युवा तेंदुओं को देहरादून चिड़ियाघर में शिफ्ट भी कर दिया गया है.
अब हिंदू संगठनों ने इनके नामों पर आपत्ति जताई है. हिंदू संगठनों का कहना है कि अधिकारियों को देवी-देवताओं के वाहनों (सिंहों) के नाम सोच समझकर रखने चाहिए. उन्होंने चेतावनी दी कि तत्काल प्रभाव से इनके नामों को बदला जाए, नहीं तो इसका विरोध होगा.
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भगवान के वाहन हैं सिंह:इन दोनों ही गुलदारों का नया ठिकाना देहरादून चिड़ियाघर है. वहीं, रुखसाना और तहसीम के नाम को तीर्थ पुरोहित उज्ज्वल पंडित का कहना है कि अधिकारियों को यह नाम सोच समझकर रखने चाहिएं. गुलदार का नाम जिस तरह से एक विशेष समुदाय के नाम से रखा गया है, उससे यह साफ जाहिर होता है कि अधिकारियों की मंशा क्या है. लिहाजा, तीर्थ पुरोहित समाज इस पर आपत्ति जताते हुए तत्काल प्रभाव से इनके नामों को बदलने की मांग कर रहा है. उज्ज्वल पंडित का कहना है कि इससे हिंदू देवी देवताओं का ना केवल अपमान हो रहा है बल्कि आस्था को भी ठेस पहुंच रही है. जो लोग इन सिंहों को मानते ही नहीं है, उनके नामों से इनकी पहचान भला क्यों हो?
बजरंग दल ने बताया विवादित: उधर, बजरंग दल ने तो इन नामों पर कड़ी आपत्ति जताते हुए तत्काल प्रभाव से सरकार से एक्शन लेने की मांग की है. बजरंग दल के प्रदेश संयोजक अनुज वालिया का कहना है कि किसी कर्मचारी के नाम से कैसे जानवरों का नाम रखा जा सकता है, जब की सेवा करने वाले तो और भी होंगे. अनुज कहते हैं कि ये हो सकता है कि कुछ लोगों को बात छोटी लगे, लेकिन आजकल यह छोटी-छोटी बात ही कब बड़ी हो जाती है, कुछ कहा नहीं जा सकता. आखिरकार ऐसे ही नामों को चुनकर क्यों रखा गया है? बजरंग दल प्रदेश संयोजक ने कहा कि सरकार और संबंधित मंत्रालय इस मामले पर हस्तक्षेप करके दोनों ही गुलदार का नाम किसी महापुरुष या उत्तराखंड से संबंधित विशेष पहचान से रखें.
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इसलिए पड़ा नाम: वहीं, नामों पर बढ़ते विवाद पर हरिद्वार चिड़ियापुर रेस्क्यू सेंटर के प्रभारी अरविंद डोभाल का कहना है कि इन दोनों गुलदारों का नामकरण हरिद्वार के रेस्क्यू सेंटर में किया गया है. इसके पीछे की वजह ये है कि जब दोनों शावक रेस्क्यू सेंटर में लाए गए तो इनकी देखभाल उपनल कर्मचारी तहसीम और उनकी पत्नी रुखसाना ही कर रहे थे. कर्मचारी द्वारा बच्चे की तरह दोनों शावक को पाला गया. दोनों शावक तहसीम और रुखसाना को पहचानने लगे थे. दोनों जानवरों का कर्मचारी के प्रति प्यार देखकर ही यह फैसला लिया गया था.
हरिद्वार से देहरादून पहुंचे 'तहसीम' और 'रुखसाना'. वहीं, आज दोनों गुलदार अपने इन्हीं नामों से पहचाने जाते हैं. दोनों गुलदार क्या खाते, क्या पीते हैं, क्या पसंद है, कौन सी चीज उन पर सूट करेगी, इनकी जानकारी कर्मचारी तहसीन और रुखसाना को अच्छी तरह रहती है. जब दोनों गुलदार चिड़ियापुर से देहरादून शिफ्ट किए गए तो इस सभी बातों का खास ध्यान रखा गया.
अरविंद डोभाल कहते हैं कि दोनों गुलदार को देहरादून शिफ्ट करने की मुख्य वजह ये थी कि अब वह मांस खाने लगे थे. जब तक दोनों मांस नहीं खा सकते थे तब तक रेस्क्यू सेंटर में उनकी देखभाल की गई, लेकिन अब वह मांस का सेवन कर सकते हैं और ग्रोथ कर रहे हैं इसलिए उन्हें देहरादून चिड़ियाघर शिफ्ट कर दिया गया है.
नाम पर कर रहे रिस्पॉन्स: वहीं, देहरादून चिड़ियाघर में गुलदारों के नाम बदले जाएंगे या नहीं, इसको लेकर हमने चिड़ियाघर प्रभारी मोहन रावत से बातचीत करनी चाही, लेकिन मीटिंग में होने की बात कहकर उनसे ज्यादा बात नहीं हो पाई. वैसे इसमें कोई दो राय नहीं है कि चिड़ियाघर में आने के बाद दोनों गुलदारों को नया नाम दिया जाए. लेकिन खास बात ये है कि दोनों गुलदार तहसीम और रुखसाना के नाम पर रिस्पॉन्स कर रहे हैं.
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