नई दिल्ली : केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि एससी/एसटी को वर्षों से मुख्यधारा से अलग रखा गया है. हमें लोगों के हित में एक समानता (आरक्षण के रूप में) लाना होगा. ताकि देश में उन्हें समान अवसर मिले.
केंद्र ने कहा कि यदि आप एक निश्चित निर्णायक आधार नहीं रखते हैं जिसका पालन राज्य और संघ करेंगे, तो बहुत सारे मुकदमे होंगे. इस मुद्दे का कभी अंत नहीं होगा कि किस सिद्धांत पर आरक्षण होना चाहिए. हम तब तक सीटें नहीं भर सकते जब तक योग्यता का मापदंड न हो.
एक वर्ग है जो सदियों से मुख्यधारा से दरकिनार कर दिया गया है. ऐसे में देश के हित में और संविधान के हित में हमें एक तुल्यकारक और यह मेरे विचार में आनुपातिक प्रतिनिधित्व लाना होगा. यह समानता का अधिकार देता है. वेणुगोपाल ने पीठ को बताया कि इसमें जस्टिस संजीव खन्ना और बीआर गवई भी शामिल हैं जिन्होंने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रखा.
उन्होंने कहा कि हमें एक सिद्धांत की जरूरत है जिस पर आरक्षण किया जाना है. कहा कि अगर यह राज्य पर छोड़ दिया जाता है तो मुझे कैसे पता चलेगा कि पर्याप्तता कब संतुष्ट है? और क्या अपर्याप्त है. यह बड़ी समस्या है. एजी ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि जहां तक एससी/एसटी का संबंध है, सैकड़ों वर्षों के दमन के कारण उन्हें सकारात्मक कार्रवाई द्वारा योग्यता के अभाव से उबरने के लिए समान अवसर देना होगा.
शीर्ष अदालत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित मुद्दे पर दलीलें सुन रही थी. शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा कि प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता का यह मुद्दा 1950 में ही उठा था.
पिछले सात दशकों में भारत संघ और राज्यों द्वारा शिक्षा और नौकरियों में क्या किया गया है? आपके आधिपत्य को देखना होगा कि क्या उन चीजों ने काम किया है. अगर यह संतोषजनक नहीं है तो अदालत का कर्तव्य है कि वह सुझाव दे वैकल्पिक विधि और एक मानक या मानदंड निर्धारित करे जो निश्चित हो कि समान अवसर मिलें.
एजी ने कहा कि इन दुर्भाग्यपूर्ण लोगों के लिए ये अवसर बराबरी के हैं लेकिन तुल्यकारक रातोंरात काम नहीं करते हैं. इसमें दशकों लग सकते हैं. जहां तक एससी/एसटी का संबंध है, वे अभी भी जीवन की मुख्यधारा में आने के लिए जूझ रहे हैं.
वेणुगोपाल ने नौ राज्यों से एकत्र किए गए आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि उन सभी ने बराबरी करने के लिए एक सिद्धांत का पालन किया है ताकि योग्यता का अभाव उन्हें मुख्यधारा में आने से वंचित न करे. उन्होंने कहा कि देश में पिछड़े वर्गों की कुल हिस्सेदारी 52 प्रतिशत है.