नई दिल्ली :भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को कहा कि शीर्ष अदालत कानून क्लर्कों को स्टाइपेंड के रूप में प्रति माह 80,000 रुपये का भुगतान कर रही है (stipend to young doctors). उन्होंने सुझाव दिया कि आर्मी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज को युवा डॉक्टरों को वजीफे के रूप में कम से कम 1 लाख रुपये देना चाहिए.
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील चारू माथुर ने सीजेआई की अगुवाई वाली और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि यह एक ऐसा मामला है जहां मेडिकल छात्रों को कोई वजीफा नहीं मिल रहा है और अदालत ने इस मामले में नोटिस जारी किया है.
मुख्य न्यायाधीश ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, आर्मी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसीएमएस) का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील से सवाल किया कि क्या वे प्रशिक्षुओं को किसी भी प्रकार का वजीफा नहीं देते हैं?
एसीएमएस की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कर्नल (सेवानिवृत्त) आर बालासुब्रमण्यम ने कहा कि कॉलेज सशस्त्र कर्मियों के बच्चों की सेवा के इरादे से बिना किसी लाभ के आधार पर आर्मी वेलफेयर एजुकेशन सोसाइटी (एडब्ल्यूईएस) द्वारा चलाए जाते हैं. मुख्य न्यायाधीश ने सवाल किया, 'कोई कॉलेज कैसे कह सकता है कि हम इंटर्न को भुगतान नहीं करेंगे.'
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'क्या आप कह सकते हैं कि हम लाभ के लिए नहीं चल रहे हैं, इसलिए सफाई कर्मचारियों को हमारे लिए मुफ्त में काम करना चाहिए... यह आपके लिए लाभ है लेकिन उनके लिए आजीविका है, या यह दान है लेकिन उनके लिए आजीविका है. क्या आप कह सकते हैं कि हम अपने शिक्षकों को वेतन नहीं देंगे?'
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'आप युवा डॉक्टरों से काम नहीं ले सकते...' बालासुब्रमण्यम ने कहा कि 'वे युवा डॉक्टरों के साथ-साथ संस्थान की वित्तीय स्थिति को लेकर भी चिंतित हैं. यह एक आत्मनिर्भर संस्थान है...इस कोष का संबंध छात्रों से ली गई फीस से है और छात्रावास सुविधाओं पर भारी सब्सिडी दी जाती है.'
पीठ ने कहा कि वह समझती है कि संस्थान AWES द्वारा चलाया जाता है और पूछा गया कि अब आप इंटर्न को कितना भुगतान कर रहे हैं, आप कुछ भी भुगतान नहीं करते हैं?
पीठ ने एनएमसी के वकील से सवाल किया, क्या ऐसा कोई नियम नहीं है कि इंटर्न को भुगतान करना होगा? वकील ने कहा कि 'हमारे पास मेडिकल कॉलेजों का वित्तीय नियंत्रण नहीं है और हमने निर्धारित किया है कि वे वजीफा देंगे, कोई राशि तय नहीं है.' पीठ ने सवाल किया कि अन्य सरकारी संस्थानों में कितना स्टाइपेंड दिया जाता है और आश्चर्य हुआ कि छात्रों को भुगतान कैसे नहीं किया जाता?
चीफ जस्टिस ने कहा कि 'वे पांच साल की चिकित्सा करते हैं, सभी छात्रों के पास माता-पिता के संसाधन नहीं हैं... हम एक अंतरिम आदेश पारित करेंगे कि अक्टूबर के महीने से आपको वजीफा देना शुरू करना होगा. छात्रों को प्रति माह कम से कम 1 लाख रुपये का भुगतान करें, हम अपने कानून क्लर्कों को प्रति माह 80,000 रुपये का भुगतान करते हैं.'