मंडी: पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम पंचतत्व में विलीन हो गए हैं. मंडी जिले के हनुमान घाट स्थित श्मशान घाट में राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार हुआ. बेटे अनिल शर्मा के साथ पोते आश्रय शर्मा और आयुष शर्मा ने उन्हें मुखाग्नि दी. इस दौरान हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री, कैबिनेट मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप समेत कई नेता मौजूद रहे. अंतिम संस्कार में भारी संख्या में लोग भी पहुंचे.
इससे पहले गुरुवार सुबह अंतिम दर्शन के लिए पंडित सुखराम का पार्थिव शरीर मंडी के ऐतिहासिक सेरी मंच पर रखा गया. जहां उनके अंतिम दर्शन के लिए हजारों की संख्या में लोग पहुंचे. लोगों ने नम आंखों से पूर्व केंद्रीय मंत्री को अंतिम विदाई दी. सेरी मंच के बाद उनकी अंतिम यात्रा चौहटा बाजार, मोती बाजार, अपने पुराने घर समखेतर बाजार से होते हुए, विक्टोरिया पुल से हनुमान घाट के लिए निकाली गई.
95 साल की उम्र में ली आखिरी सांस: बुधवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम (pandit sukh ram passes away) ने दिल्ली के एम्स अस्पताल में आखिरी सांस ली. 4 मई को मनाली में ब्रेन स्ट्रोक के बाद उन्हें जोनल अस्पताल मंडी में उपचार के लिए भर्ती करवाया गया था. 7 मई की सुबह पंडित सुखराम को बेहतर इलाज के लिए राज्य सरकार के हेलीकॉप्टर के जरिये दिल्ली ले जाया गया था. दिल्ली के एम्स में इलाज के दौरान, 9 मई को दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया (former telecom minister pandit sukhram dies) था. बुधवार रात पंडित सुखराम ने 95 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली. वो लेबे वक्त से देश और प्रदेश की राजनीति में सक्रिय थे.
राजनीतिक सफर: प्रदेश समेत देश की राजनीति में सुखराम (political journey of pandit sukh ram) का प्रभाव रहा है. केंद्र सरकार में सुखराम मंत्री पद पर भी आसीन रहे हैं. प्रदेश और देश में संचार क्रांति के लिए भी इन्हें जाना जाता है. हालांकि केंद्र में दूरसंचार मंत्री रहते हुए सुखराम पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे. सुखराम ने मंडी सदर विधानसभा क्षेत्र (Mandi Sadar Assembly Constituency) से 13 बार चुनाव लड़े और हर बार जीत हासिल की. इसके साथ ही उन्होंने लोकसभा के चुनाव भी लड़े और केंद्र में अलग-अलग मंत्री पद पर आसीन हुए. 1984 में सुखराम ने कांग्रेस के टिकट से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था और भारी बहुमत से जीत कर संसद पहुंचे.
1989 के लोकसभा चुनाव में सुखराम को हार का सामना करना पड़ा और भाजपा के महेश्वर सिंह जीतकर संसद पहुंचे. 1991 के लोकसभा चुनाव में सुखराम ने महेश्वर सिंह को हराकर संसद में कदम रखा. 1996 में सुखराम फिर से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. 1998 में पंडित सुखराम ने कांग्रेस से अलग होकर हिमाचल विकास कांग्रेस (हिविकां) के नाम से अपनी पार्टी बनाई. हालांकि हिविकां लोकसभा चुनाव में कुछ खास नहीं कर पाई और उनकी पार्टी से सिर्फ कर्नल धनीराम शांडिल ही जीतकर संसद पहुंच पाए.
हिविकां ने 1998 के चुनाव में हिविकां ने 5 सीटें जीती. भाजपा-कांग्रेस के पाले में 31-31 सीटें आई. जिसके बाद सरकार बनाने के लिए हिविकां ने अहम रोल निभाया. हिविकां ने भाजपा को समर्थन दिया. वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बनने से चूक गए और प्रेम कुमार धूमल पहली बार सीएम के पद पर आसीन हुए. पंडित सुखराम ने 2003 में अपना आखिरी विधानसभा का चुनाव लड़ा और फिर 2007 में सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे अनिल शर्मा को सौंप दी. 2017 के विधानसभा चुनाव में पंडित सुखराम परिवार ने बीजेपी का दामन थाम लिया और अनिल शर्मा ने बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ा और जीते भी. लोकसभा चुनाव 2019 में पंडित सुखराम पोते आश्रय को टिकट दिलाने के लिए फिर से कांग्रेस में शामिल हुए.
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