जोशीमठ: जोशीमठ में लगातार हो रहे भू धंसाव (joshimath subsidence) की आंच अब ज्योतिर्मठ तक पहुंच चुकी हैं. कहा जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने आज से करीब करीब 2500 वर्ष पूर्व जिस शहतूत के वृक्ष (इस स्थानीय लोग अब कल्प वृक्ष कहते हैे) के नीचे गुफा के अंदर बैठकर ज्ञान की प्राप्ति की थी, आज उस कल्प वृक्ष का अस्तित्व मिटने की कगार पर है. मंदिर के नीचे बने प्राचीन ज्योतिरेश्वर मंदिर पर भी भू धंसाव (subsidence in Joshimath Jyotirmath) के चलते बड़ी बड़ी दरारें पड़ चुकी हैं. कभी भी यह ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत ढह सकती है.
आदि गुरु शंकराचार्य ने पहला मठ यहीं स्थापित किया: पूरे देश में हिंदू धर्म का प्रचार-प्रसार करने और रूढ़ियों को तोड़ने के लिए जाने जाने वाले आदि गुरु शंकराचार्य ने भारत के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की थी. ये चारों मठ आज भी चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में सनातन परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. वहीं हिंदू धर्म में मठों की परंपरा लाने का श्रेय आदि गुरु शंकराचार्य (Adi Guru Shankaracharya) को जाता है, जो आज भी आदि गुरु शंकराचार्य की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. उत्तरामण्य मठ या उत्तर मठ, ज्योतिर्मठ जो कि जोशीमठ में स्थित है. वहीं पूर्वामण्य मठ या पूर्वी मठ, गोवर्धन मठ जो कि पुरी में स्थित है. जबकि दक्षिणामण्य मठ या दक्षिणी मठ, शृंगेरी शारदा पीठ जो कि शृंगेरी में स्थित है.
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शंकराचार्य की तप स्थली पर संकट: पश्चिमामण्य मठ या पश्चिमी मठ, द्वारिका पीठ जो कि द्वारिका में स्थित है. आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म नाम शंकर था. उनका जन्म 788 ई– मृत्यु 820 ई मानी जाती है. वो अद्वैत वेदांत के प्रणेता, संस्कृत के विद्वान, उपनिषद व्याख्याता और हिंदू धर्म प्रचारक थे. मान्यता के अनुसार आदि शंकराचार्य को भगवान शंकर का अवतार माना जाता है. इन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग उत्तर भारत में बिताया था. आज इस मठ पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं और ऐतिहासिक कल्प वृक्ष का अस्तित्व मिटने की कगार पर है.