दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

भूस्खलन का एपिसेंटर बन रही केदारघाटी, हजारों लोगों की मौत से बना 'कब्रगाह'

उत्तराखंड में हर बार आपदा कई लोगों की जिंदगी लील लेता है. आपदा गहरे जख्म के साथ ही सबक भी दे जाता है, लेकिन हम उन सबक को नजरअंदाज कर देते हैं. जिसका खामियाजा हमें ही भुगतना पड़ता है. इनमें केदारघाटी भूस्खलन का एपिसेंटर बनता जा रहा है. क्योंकि, अब तक के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो वो बेहद डरावने हैं. जानिए कब और किस जगह पर भूस्खलन की घटनाएं हुई? कितने लोगों ने जान गंवाई...

Landslide in Rudraprayag
केदारघाटी में आसमानी आफत

By

Published : Aug 10, 2023, 9:08 PM IST

Updated : Aug 10, 2023, 9:59 PM IST

देहरादून (उत्तराखंड):हर साल पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में मॉनसून कहर बरपाता है. हर बार मॉनसून ऐसा जख्म दे जाता है, जिसे भरने में लंबा वक्त लग जाता है. खासकर केदारघाटी में आसमानी आफत का सबसे ज्यादा असर देखने मिला है. हाल ही में कई लोग भूस्खलन की चपेट में आ गए. जहां कुदरत ने ऐसा तांडव दिखाया. जिसे देख हर कोई सहम गया. केदारघाटी में 70 के दशक से ही भयानक भूस्खलन हो रहा है. जिसमें हजारों लोग काल कवलित हो गए.

रुद्रप्रयाग बन रहा भूस्खलन का एपिसेंटरः रुद्रप्रयाग में लगातार भूस्खलन की घटनाएं हो रही है. जिससे चर्चाएं हो रही है कि आखिरकार क्यों रुद्रप्रयाग भूस्खलन का एपिसेंटर पर बनता जा रहा है? जहां भूस्खलन से न केवल इंसानी जान जा रही है. बल्कि, सरकार को भी करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है. ताजा आंकड़ों की बात करें तो बीती 4 अगस्त को रुद्रप्रयाग के गौरीकुंड में ही भयानक भूस्खलन हुआ. जिसकी चपेट में कई दुकानें आ गई.

गौरीकुंड हादसे में दुकान समेत नदी में समाए लोग

इस भूस्खलन की चपेट में आने से अब तक 5 लोगों की मौत हो चुकी है. अभी भी 18 लोग लापता हैं. यह हादसा इतना भयानक था कि किसी को संभलने तक का मौका नहीं मिला. पत्थर और बोल्डर ने एक झटके में सभी को मौत के आगोश में ले लिया. इसी तरह 9 अगस्त को भी रुद्रप्रयाग में ही गौरीकुंड के पास भूस्खलन और मलबा आने से एक नेपाली परिवार मलबे में दब गया. इस घटना में भी 2 बच्चों की मौत हो गई. जबकि, बाकी लोग बमुश्किल बचे.
ये भी पढ़ेंःपल भर में दफ्न हुई 20 जिंदगियां, संभलने का तक नहीं मिला मौका, बेहद खतरनाक था गौरीकुंड हादसा

इसके बाद रुद्रप्रयाग में ही एक होटल ताश के पत्तों की तरह ढह गया. जिस जगह पर होटल मौजूद था. वहां पर ऐसी हलचल होती है, जिससे लोगों को महसूस हो जाता है कि यह होटल ज्यादा देर तक टिकने वाली नहीं है. देखते ही देखते पूरा होटल धराशाई हो जाता है. हालांकि, इस दौरान कोई जनहानि नहीं हुई, लेकिन इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि रुद्रप्रयाग में कुछ भी हो सकता है.

बीती 8 अगस्त के दिन केदारनाथ के तलहटी में बसे देवधारी में भारी भूस्खलन हुआ. जिसकी वजह से मुख्य मार्ग 30 घंटे तक बंद रहा. जब देवधारी में पहाड़ी खिसक रही थी, उसी वक्त रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि के पास भी पहाड़ी का बड़ा हिस्सा टूट कर सड़क पर आ गिरा. जिससे सड़क पूरी की पूरी बह गई. वहीं, 27 जुलाई को केदारनाथ हाईवे पर बड़ासू में स्थित रिसोर्ट एवं रेस्टारेंट देखते ही देखते धराशायी हो गया था.

केदारघाटी में आपदा मचा चुकी है तबाही

रुद्रप्रयाग जिला है खासः उत्तराखंड में वैसे हर जिले की अपनी महत्ता और मान्यता है, लेकिन रुद्रप्रयाग जिला खास है. यह जिला खासकर धार्मिक स्थानों की वजह अहम स्थान रखता है. यहां बाबा केदार का धाम केदारनाथ मौजूद है. त्रियुगीनारायण मंदिर, तुंगनाथ मंदिर, मद्महेश्वर मंदिर, ओंकारेश्वर मंदिर, कार्तिक स्वामी मंदिर, कालीमठ मंदिर, इंद्रासणी मनसा देवी समेत अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी रुद्रप्रयाग जिले में हैं.

रुद्रप्रयाग में ही मिनी स्विट्जरलैंड से फेमस पर्यटक स्थल चोपता मौजूद है. बाबा केदार की नगरी होने की वजह से सरकार का ज्यादा फोकस रहता है. लिहाजा, श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए सरकार के कई बड़े प्रोजेक्ट भी इस क्षेत्र में चल रहे हैं. जिसमें ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट और केदारनाथ पुनर्निर्माण के काम चल रहे हैं. इसके साथ ही रुद्रप्रयाग में कई ऐसी टनल भी बनाई जा रही हैं, जिसका असर इन पहाड़ों में देखा जा रहा है.

हालांकि, सरकार इसे विकास की एक नई इबारत बता रही है. इसके साथ ही रुद्रप्रयाग में आने वाले समय में रोपवे भी स्थापित किया जाएगा. घाटी में बहुमंजिला होटल, धर्मशालाएं और रेस्टोरेंट भी काफी संख्या में बन रहे हैं. केदारनाथ मार्ग को भी लगातार दुरुस्त किया जा रहा है. साथ ही घाटी में नए हेलीपैड भी बनाए जा रहे हैं, लेकिन नियोजित विकास पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

केदारनाथ आपदा 2013 की तस्वीर

क्या कहते हैं जानकारः रुद्रप्रयाग में भूस्खलन की घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है. जिस पर विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने भी चिंता जताई है. वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के पूर्व वैज्ञानिक सुशील कुमार का कहना है कि भूस्खलन अपनी गति से हो रहा है. अगर किसी भी पहाड़ी पर भूस्खलन की घटनाएं अचानक बढ़ी हैं तो कह सकते हैं कि अत्यधिक बारिश हुई हो.

यानी पहाड़ों को जो पानी चाहिए था, वो एक ही बार में 2 से 3 दिन या फिर 4 दिन में मिल गया है. जिसकी वजह से अचानक पहाड़ी नीचे की तरफ खिसक सकते हैं. रुद्रप्रयाग हो या चमोली, उन तमाम जिलों में सबसे बड़ा कारण यही है कि बारिश का पानी पहाड़ों के अंदर पहुंचकर उसे नीचे की तरफ धकेल रही है.
ये भी पढ़ेंःगौरीकुंड में फिर लैंडस्लाइड, मलबे में दबकर 2 बच्चों की मौत, पौड़ी में सड़क हादसे में चार की गई जान

केदारघाटी के पहाड़ पर भारः सुशील कुमार कहते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि जिस तरह से केदारनाथ एक पर्वत पर स्थित है और वहां पर निर्माण कार्य हो रहे हैं. उसका अंदाजा ऐसे लगा सकते हैं, जब हम किसी भारी वस्तु को किसी ऊंची जगह पर रख देते हैं. वो भी पर्वत जैसी जगह पर तो नीचे से पत्थरों का खिसकना लाजिमी है. ऐसा हाल ही में हुई एक रिसर्च में भी सामने आया है. जितने भी समुद्री तटीय इलाके हैं या फिर पर्वतीय क्षेत्र हैं, उनमें अगर बड़ी-बड़ी इमारतें या अत्यधिक बोझ डाला जाता है तो नीचे की इमारतें कमजोर हो रही है.

या यूं कहें कि नीचे की तरफ धंस रही है. रिसर्च में ये भी कहा गया है कि मुंबई जैसे शहर जहां पर 40 से 50 मंजिला इमारत बनी हैं, उनके नीचे की इमारत बीते 20 सालों में नीचे की तरफ धंसी है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो एक मैदानी क्षेत्र है. केदारनाथ तो एक पहाड़ी क्षेत्र है. ऐसे में अगर पहाड़ पर अतिरिक्त बोझ डालेंगे तो वो नीचे की तरफ ही खिसकेगा.

रुद्रप्रयाग में भूस्खलन की आंकड़े

लिहाजा, सरकार को चाहिए कि जितने भी निर्माण कार्य हो रहे हैं, उन्हें सिर्फ बातों में नहीं, बल्कि मॉनिटर करने के बाद ही बनवाएं. पहाड़ों में जो पारंपरिक तरीके से मकान बनाए जाते हैं, वो टिकाऊ होते हैं, लेकिन जो होटल, धर्मशालाएं बनाए जा रहे हैं, उन्हें मजबूत नहीं कहा जा सकता है. तमाम प्रोजेक्ट और बड़े-बड़े इमारतों को जिस तरह से तैयार किया जा रहा है, वो पहाड़ के लिए बेहद खतरनाक है.

सुशील कुमार कहते हैं कि अभी भी हिमालय विकसित हो रहा है. ग्लेशियर भी लगातार पीछे खिसक रहे हैं. लिहाजा, पहाड़ों के साथ हमें प्रकृति के हिसाब से ही सलूक करना होगा. विकास कार्य होने चाहिए, लेकिन एक ही जगह पर अगर बोझ डाला जाएगा तो उसका परिणाम जोशीमठ और रुद्रप्रयाग जैसे ही होंगे.

रुद्रप्रयाग में भूस्खलन की घटनाएं

अभी और होंगे भूस्खलन: वहीं, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के जाने माने भूवैज्ञानिक बीडी जोशी कहते हैं कि यह सिर्फ मॉनसून में ही नहीं हो रहा. अभी जो भूस्खलन की घटनाएं रुद्रप्रयाग या अन्य जगहों पर हो रही है, वो भले ही यह मामूली हो, लेकिन जैसे ही बारिश रुकेगी और तेज धूप पड़ेगी, वैसे ही भूस्खलन में और इजाफा होगा.
ये भी पढ़ेंःउत्तराखंड में आपदा के बाद घोटाले का रहा इतिहास, जोशीमठ में न हो राहत में धांधली!

लिहाजा, सरकार को यह देखना होगा कि ऐसी जगहों पर जहां पर भूस्खलन की संभावनाएं ज्यादा हैं, वहां से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट कर दिया जाए. क्योंकि, भूस्खलन की घटनाएं आने वाले समय ज्यादा होंगी. साथ ही लोगों को पहाड़ों पर चढ़ाने पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.

थोड़ी सी बारिश में दरक रही पहाड़ी

रुद्रप्रयाग में बड़े हादसेःरुद्रपयाग में 15 जून से अब अब तक भूस्खलन की वजह से 8 मौत हो चुकी है. जबकि, अभी 18 लोग लापता हैं. हालांकि, अभी उन्हें मृत घोषित नहीं किया है. मौजूदा समय में 13 सड़कें बंद है. एक महीने में छोटी बड़ी 16 घटनाएं पहाड़ खिसकने की हुई है. देश में सबसे ज्यादा भूस्खलन वाला जिला भी रुद्रप्रयाग है. जबकि, टिहरी दूसरे नंबर है. इतिहास भी बताता है कि रुद्रप्रयाग पहले भी बड़े भूस्खलन का गवाह बना है.

भूस्खलन से कब्रगाह बना रुद्रप्रयाग-

  • 1976: भूस्खलन से ऊपरी क्षेत्रों में मंदाकिनी का प्रवाह बाधित हो गया था.
  • 1979: क्यूंजा गाड़ में बाढ़ से कोंथा, चंद्रनगर क्षेत्र में तबाही हुई थी. जिसमें 29 लोग मारे गए थे.
  • 1986: जखोली के सिरवाड़ी में भूस्खलन हुआ था. जिसमें 32 लोग मारे गए.
  • 1998: भूस्खलन से भेंटी और पौंडार गांव ध्वस्त हुआ. इसके साथ ही 34 गांवों में नुकसान पहुंचा. इस दौरान 103 लोगों की मौत हुई थी.
  • 2001: ऊखीमठ के फाटा में बादल फटा था. जिसमें 28 लोगों की जानें गई.
  • 2002: बड़ासू और रैल गांव में भूस्खलन की घटना हुई.
  • 2003: स्वारीग्वांस में भूस्खलन से तबाही मची.
  • 2004: घंघासू बांगर में भूस्खलन की घटना हुई.
  • 2005: बादल फटने से विजयनगर में तबाही मची. जिसमें चार लोगों की मौत हुई.
  • 2006: डांडाखाल क्षेत्र में बादल फटा था.
  • 2008: चौमासी-चिलौंड गांव में भूस्खलन की घटना हुई. जिसमें एक युवक की मौत और कई मवेशी मलबे में दबे.
  • 2009: गौरीकुंड घोड़ा पड़ाव में भूस्खलन की घटना हुई. जिसमें दो श्रमिकों ने जान गंवाई.
  • 2010: रुद्रप्रयाग जिले में कई स्थानों पर बादल फटे. जिसमें एक युवक बहा.
  • 2012: ऊखीमठ के कई गांवों में बादल फटा था. जिसमें 64 लोग मारे गए.
  • 2013: केदारनाथ में आपदा आई. जिसमें 4500 से ज्यादा लोगों ने जान गंवाई. कई लापता हो गए.
  • 2023: गौरीकुंड में भूस्खलन की घटना हुई. जिसमें 18 लोग लापता चल रहे हैं.
Last Updated : Aug 10, 2023, 9:59 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details