पटना: बिहार में उपचुनाव (By-Election) से ठीक पहले आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) सक्रिय राजनीति में दस्तक दे चुके हैं. लालू प्रसाद यादव उपचुनाव के प्रचार में निकलने की तैयारी में हैं. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections) को लेकर भी पार्टी ने कमर कस ली है. यूपी में भी लालू भाजपा (BJP) से दो-दो हाथ के लिए तैयार हैं.
देश की राजनीति में लालू बड़ा चेहरा हैं. कई बार लालू प्रसाद यादव राज्य और देश के लिए एजेंडा तय करने का काम भी करते हैं. जातिगत जनगणना को लालू प्रसाद यादव ने ही मुद्दा बनाया. उपचुनाव से ठीक पहले लालू प्रसाद यादव बिहार की राजनीति में सक्रिय हो चुके हैं. कुशेश्वरस्थान और तारापुर विधानसभा सीट पर चुनाव प्रचार के लिए भी लालू यादव निकल रहे हैं. फिलहाल स्वस्थ दिख रहे लालू राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश में हैं. उपचुनाव के बाद लालू प्रसाद यादव की नजर उत्तर प्रदेश चुनाव पर है. संभव है कि उत्तर प्रदेश में राजद अपने प्रत्याशी भी खड़ा करें.
बिहार में उपचुनाव (By-Election) आपको बता दें कि लालू प्रसाद यादव का गृह जिला गोपालगंज है. छपरा से वो सांसद भी रहे हैं. ऐसे में बिहार से सटे होने के कारण पूर्वांचल के इलाके के राजनीतिक समीकरण पर भी लालू प्रसाद यादव की नजर है. पिछले कई चुनाव से उत्तर प्रदेश में राजद ने प्रत्याशी तो खड़े नहीं किए हैं, लेकिन उसका समर्थन समाजवादी पार्टी के साथ रहा है. लेकिन इस बार संभव है कि राजद अखिलेश यादव के साथ गठबंधन कर उम्मीदवार उतारे. उत्तर प्रदेश राजद के प्रदेश अध्यक्ष अशोक सिंह ने इसको लेकर संकेत भी दिए हैं. बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव की एंट्री से राजद नेता उत्साहित हैं.
'उपचुनाव में लालू प्रसाद यादव प्रचार के लिए निकल रहे हैं. उसके बाद उत्तर प्रदेश सहित तमाम राज्यों के उपचुनाव में लालू यादव प्रचार के लिए निकलेंगे. सांप्रदायिक शक्तियों को परास्त करने का काम करेंगे.'-एजाज अहमद, राजद प्रवक्ता.
'लालू यादव कहीं भी चुनाव प्रचार करें, उसका कोई भी असर होने वाला नहीं है. बिहार में उनके शासनकाल को याद करके लोग डर जाते हैं. लालू यादव अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. पहले भी उत्तर प्रदेश में अखिलेश के साथ आए थे. लेकिन अखिलेश यादव बुरी तरह चुनाव हारे थे. इस बार भी लालू यादव को कामयाबी मिलने वाली नहीं है.'-विनोद शर्मा, भाजपा प्रवक्ता
'लालू प्रसाद यादव परिवार से ऊपर सोच नहीं सकते हैं. अखिलेश भी उसी कुनबे का हिस्सा हैं. यूपी में लालू प्रसाद को सफलता मिलने वाली नहीं है.'-अभिषेक झा, जदयू प्रवक्ता
'पूर्वांचल के इलाके से लालू यादव का पुराना सरोकार रहा है. जिस काव बेल्ट की बात लालू यादव करते हैं, उस इलाके में लालू यादव प्रभाव छोड़ने की कोशिश करेंगे. वैसे भी सीमावर्ती जिलों के लोगों के बीच बेटी-रोटी का रिश्ता है. लालू यादव पूर्वांचल में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराना चाहेंगे.'-डॉ संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक
उत्तर प्रदेश 2022 विधानसभा चुनाव का अभी भले ही औपचारिक ऐलान न हुआ हो, लेकिन राजनीतिक दलों ने अपने-अपने चुनावी अभियान का आगाज कर दिया है. सूबे के सियासी रण में बीजेपी को मात देने के लिए विपक्षी दल खुलकर मैदान में उतरकर माहौल बनाने में जुटे हैं. दूसरी तरफ चुनावी एजेंडा भी सेट करने लगे हैं. जानकारी दें कि दिल्ली में राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता शरद पवार, समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव और बिहार कांग्रेस के अखिलेश सिंह ने राजद सुप्रीमो लालू यादव से राज्यसभा सांसद मीसा भारती के आवास पर मुलाकात की है. नेताओं ने इसे औपचारिक मुलाकात बताया था, जिसमें उन्होंने बीमार लालू प्रसाद यादव के स्वास्थ्य के बार में जानकारी ली थी. लेकिन संसद के मानसून सत्र में जारी गतिरोध और यूपी सहित अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से जोड़ कर भी देखा जाने लगा था.
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दिल्ली में हुई इस मुलाकात से विपक्ष भारतीय जनता पार्टी विरोधी राजनीति को दिशा मिलने की उम्मीद जताने लगा था. विपक्ष उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पराजित करने के लिए आमने-सामने की लड़ाई चाहता है. हालांकि, फिलहाल विपक्षी बिखरे दिख रहे हैं. लालू के यूपी में दस्तक की घोषणा के बाद से विपक्ष में थोड़ी जान जरूर आई है. वहां की राजनीति में विपक्ष के दो बड़े क्षेत्रीय ध्रुव समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी अलग-अलग दिख रहे हैं. माना जा रहा है कि लालू यादव बिखरे विपक्ष को एक कर बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती पेश करने की कोशिश में हैं.
यूपी में एनसीपी व समाजवादी पार्टी एक साथ आ गए हैं. अब नजरें अन्य छोटे-छोटे दलों को एक छतरी के नीचे लाने पर टिकी हैं. यूपी चुनाव में कूदने जा रहे बिहार के छोटे दलों पर भी अन्य दलों की नजरें हैं. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के अंदर के घात-प्रतिघात पर भी नजर पार्टी नजर बनाए है. बिहार में एनडीए के सहयोगी विकासशील इनसान पार्टी (VIP) के सुप्रीमो मुकेश सहनी को बीते 25 जुलाई को यूपी में फूलन देवी की पुण्यतिथि पर कार्यक्रम करने से रोक दिया गया था.
मुकेश सहनी ने यूपी में अपने दम पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी. उनकी नजर निषाद वोट बैंक पर थी. जो कई क्षेत्रों में निर्णायक हैसियत रखता है. उन्हें बिहार एनडीए के एक और सहयोगी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) प्रमुख जीतन राम मांझी ने भी समर्थन दे दिया है. विपक्ष की नजर एनडीए में चल रही इस तरह की विरोधी गतिविधियों पर भी है. जाहिर है लालू यादव इन तमाम स्थितियों को जोड़कर चलेंगे. चलिए यूपी चुनाव के समीकरणों पर एक नजर डालते हैं. यूपी में ओबीसी वोट बैंक के सपोर्ट के बिना कोई भी दल सत्ता में पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बना सकता. केंद्र की सत्ता में भी काबिज होने के लिए किसी पार्टी के पक्ष में इस वोट बैंक के एक बड़े हिस्से का सपोर्ट होना अनिवार्य है. क्योंकि मंडल कमीशन की रिपोर्ट को मानें तो देश की कुल आबादी में ओबीसी का प्रतिनिधित्व 50 फीसदी से अधिक है.
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मंडल कमीशन की रिपोर्ट को आधार मानें तो देश में ओबीसी आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है, वहीं उत्तर प्रदेश में 40 से 50 फीसदी के बीच. यूपी में ओबीसी वोट बैंक की बात करें तो इसे यादव और गैर-यादव में बांट सकते हैं. वहीं 2001 के 'सामाजिक न्याय रिपोर्ट' के मुताबिक उत्तर प्रदेश की आबादी में पिछड़ा वर्ग की हिस्सेदारी करीब 54 फीसदी है. उत्तर प्रदेश पिछड़ा आयोग के डेटा को मानें तो यूपी में अब तक कुल 79 जातियां ओबीसी में शामिल हैं. 70 अन्य जातियों ने खुद को ओबीसी लिस्ट में शामिल करने के लिए आयोग के पास आवेदन किया है. इन ओबीसी 70 जातियों में यादवों की आबादी 19.4 फीसदी है. राज्य की आबादी में यादवों की हिस्सेदारी 10.52% है.
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सीएसडीएस (Centre for the Study of Developing Societies) के आंकड़ों के मुताबिक यूपी में गैर-यादव ओबीसी जातियों में कुर्मी 7.5%, लोध 4.9%, गडरिया/पाल 4.4%, निषाद/मल्लाह 4.3%, तेली/शाहु 4%, जाट 3.6%, कुम्हार/प्रजापति 3.4%, कहार/कश्यप 3.3%, कुशवाहा/शाक्य 3.2%, नाई 3%, राजभर 2.4%, गुर्जर 2.12% हैं. इन आंकड़ों पर गौर करते हुए भी लालू प्रसाद ने यूपी में भाजपा से दो-दो हाथ करने की ठान ली है. 2009 के लोकसभा चुनावों में महज 22% ओबीसी ने भाजपा को वोट किया था और 42% ने क्षेत्रीय दलों को चुना. लेकिन एक दशक के भीतर, ओबीसी के बीच भाजपा का जनाधार नाटकीय रूप से बदल गया है. 2014 में भाजपा को जहां 34% ओबीसी वोट मिले वहीं 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान 44% ओबीसी ने भाजपा को वोट दिया. अब इस जनाधार को वापस लाने के लिए लालू ने यूपी चुनाव में कूदना सही समझा है.