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लखीमपुर खीरी हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी, कहा- ऐसी घटनाओं की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता - Lakhimpur Kheri violence

किसान महापंचायत ने शीर्ष अदालत से मांग की थी कि उन्हें दिल्ली के जंतर-मंतर पर सत्याग्रह करने की परमिशन दी जाए. इस अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं होती हैं, तो कोई भी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होता है. प्रदर्शनकारी दावा करते हैं कि उनका प्रदर्शन शांतिपूर्ण है, लेकिन जब वहां हिंसा होती है तो कोई जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं होता है.

Supreme Court
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Published : Oct 4, 2021, 7:27 PM IST

नई दिल्ली :उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि जब ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं होती हैं, तो कोई भी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होता है. प्रदर्शनकारी दावा करते हैं कि उनका प्रदर्शन शांतिपूर्ण है, लेकिन जब वहां हिंसा होती है तो कोई जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं होता है. वहीं केंद्र की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि लखीमपुर खीरी जैसी घटनाओं को रोकने के लिए किसानों के विरोध-प्रदर्शन पर तुरंत रोक लगाने की जरूरत है.

किसान महापंचायत ने शीर्ष अदालत से मांग की थी कि उन्हें दिल्ली के जंतर-मंतर पर सत्याग्रह करने की परमिशन दी जाए. इस अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की है. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि वह इस बात का परीक्षण करेगा कि क्या प्रदर्शन करने का हक मूल अधिकार है या नहीं. इसके साथ ही अदालत की बेंच ने किसानों के आंदोलन पर ही सवाल उठाया कि जब कानूनों के अमल पर रोक है तो विरोध किस बात का.

केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ से कहा कि जब तीन नए कृषि कानूनों की वैधता को पहले ही अदालत के समक्ष चुनौती दी जा चुकी है, तो विरोध को रोकना होगा. भविष्य में ऐसे किसी आंदोलन को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. यदि हमें लखीमपुर खीरी जैसी घटनाओं को टालना है. इसके साथ ही उन्होंने रविवार को हुई हिंसा को लेकर दुख जताया. वेणुगोपाल ने कहा कि ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं नहीं होनी चाहिए. ऐसे प्रदर्शनों पर रोक लगनी जरूरी है. अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 21 अक्टूबर तय की है.

वेणुगोपाल द्वारा विरोध प्रदर्शन बंद करने की बात पर पीठ ने कहा कि जब संपत्ति को नुकसान होता है और शारीरिक क्षति होती है तो कोई भी जिम्मेदारी नहीं लेता है. केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एक बार मामला सर्वोच्च संवैधानिक अदालत के समक्ष है, तो कोई भी उसी मुद्दे पर प्रदर्शन नहीं कर सकता है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस बात की जांच करेगी कि क्या एक व्यक्ति या एक संगठन, जो पहले ही संवैधानिक अदालत में एक कानून की वैधता को चुनौती दे चुका है, को उसी मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति दी जानी चाहिए जब मामला विचाराधीन हो. शीर्ष कानून अधिकारी ने कहा कि हमने लखीमपुर खीरी में कल हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना को देखा है, इस घटना में आठ लोगों की जान चली गई है.

(पीटीआई)

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