लखनऊ : लखीमपुर खीरी हिंसा (Lakhimpur Kheri Violence) मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा को तीन दिन की पुलिस रिमांड (Ashish Mishra Police Remand) पर भेजा गया है. वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी (एसपीओ) एसपी यादव ने पत्रकारों को बताया कि अदालत (मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी) में आशीष मिश्रा को 14 दिन की पुलिस हिरासत में भेजने के लिये शनिवार को अर्जी दी गई थी.
एसपी यादव ने बताया कि आशीष मिश्रा को पुलिस रिमांड (Ashish Mishra Police Remand) पर लेने को लेकर आज कोर्ट में सुनवाई हुई और अदालत ने 12 अक्टूबर से 15 अक्टूबर तक पुलिस हिरासत के लिए स्वीकृति दी. उन्होंने बताया कि हिरासत की अवधि में आशीष मिश्रा का चिकित्सकीय परीक्षण कराया जाएगा और उन्हें पूछताछ के नाम पर पुलिस प्रताड़ित नहीं करेगी. यादव ने यह भी बताया कि इस दौरान उनके अधिवक्ता भी मौजूद रहेंगे.
गौरतलब है कि लखीमपुर खीरी में तीन अक्टूबर को हुई हिंसा के मामले में पुलिस ने केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा को गत शनिवार की रात गिरफ्तार किया था. आशीष पर आरोप है कि उप्र के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के कार्यक्रम का विरोध कर रहे किसानों को कुचलने वाले वाहनों में से एक में वह सवार था. इस हादसे में चार किसानों की मौत हो गयी थी.
इससे पहले भाजपा सांसद वरुण गांधी ने भी लखीमपुर मामले में संलिप्त तमाम संदिग्धों को तत्काल चिह्नित कर आईपीसी की धारा 302 (हत्या) के तहत हत्या का मुकदमा कायम कर सख्त से सख्त कार्यवाही की मांग की थी. उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखे पत्र में कहा, 'तीन अक्टूबर को खीरी में विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों को निर्दयता पूर्वक कुचलने की जो हृदय विदारक घटना हुई है, उससे सारे देश के नागरिकों में एक पीड़ा और रोष है.
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गांधी ने कहा, इस घटना से एक दिन पहले ही देश ने अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी जी की जयंती मनाई थी. अगले ही दिन लखीमपुर खीरी में हमारे अन्नदाताओं की जिस घटनाक्रम में हत्या की गई वह किसी भी सभ्य समाज में अक्षम्य है. उन्होंने पत्र में लिखा, आंदोलनकारी किसान भाई हमारे अपने नागरिक हैं.
इससे पहले गत 4 अक्टूबर को भी सुप्रीम कोर्ट ने लखीमपुर प्रकरण को लेकर परोक्ष टिप्पणी की थी. दरअसल, किसान महापंचायत ने शीर्ष अदालत से मांग की थी कि उन्हें दिल्ली के जंतर-मंतर पर सत्याग्रह करने की परमिशन दी जाए. इस अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं होती हैं, तो कोई भी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होता है. प्रदर्शनकारी दावा करते हैं कि उनका प्रदर्शन शांतिपूर्ण है, लेकिन जब वहां हिंसा होती है तो कोई जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं होता है.