श्रीनगर :जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस (National Conference) के दो सांसदों के बाद अब लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश (Ladakh Union Territory ) के तीन राजनीतिक नेताओं ने धारा 370 और 35ए को खत्म करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाया है.
कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (Kargil Democratic Alliance) के कमर अली अखून (Qamar Ali Akhoon), असगर अली करबलाई और सज्जाद हुसैन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में कहा गया है कि भारत के राष्ट्रपति (President of India ) द्वारा जारी आदेश और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 (Jammu and Kashmir Reorganization Act 2019) असंवैधानिक हैं क्योंकि इसमें लोकतांत्रिक प्रक्रिया ने पालन नहीं किया गया.
याचिका में आगे कहा गया है कि भारत के राष्ट्रपति और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 द्वारा जारी आदेशों ने न केवल क्षेत्र की विधायिका और कार्यकारी अंगों (legislature and the executive organs) को बल्कि लोगों के संवैधानिक अधिकारों (constitutional rights) को भी समाप्त कर दिया है. उन्हें अपना प्रतिनिधि चुनने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है. वर्तमान प्रशासन जवाबदेह नहीं है.
गौरतलब है कि अखून विधानसभा के पूर्व सदस्य हैं, करबलाई कारगिल के वरिष्ठ नेता हैं और करगली पत्रकार हैं और संसदीय चुनाव लड़ चुके हैं.
करबलाई ने ईटीवी भारत को फोन पर बताया, 'हम इस बारे में अपने वकीलों से लंबे समय से बात कर रहे थे आऱ फिर हम कल शीर्ष अदालत गए.'
यहां के लोगों की परेशानी बढ़ गई है. पांच अगस्त का फैसला असंवैधानिक था. आप किसी राज्य के विशेष दर्जे को रद्द करते हैं, फिर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करते हैं. यह सही निर्णय नहीं है.
उन्होंने कहा, 'हम मांग करते हैं कि लद्दाख का राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए.'
मामले में अखून के विचार भी अलग नहीं थे. उन्होंने कहा, 'हम हमेशा लद्दाख को केंद्र के नियंत्रण ( control of the Center) में लाने के खिलाफ रहे हैं. लेह के लोग इसे चाहते थे, लेकिन आज वे भी चिंतित हैं. देखिए, एक सांसद भी लेह से है, लेकिन वे अभी भी चिंतित हैं.'