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International Kullu Dussehra: दुर्गा पूजा समापन के साथ होगा अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव का आगाज, जानें क्या है धार्मिक मान्यता और महत्व? - Kullu Dussehra 2023

24 अक्टूबर से हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू मुख्यालय ढालपुर मैदान में अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का आगाज होने जा रहा है. कुल्लू दशहरा उत्सव देवी-देवताओं के महाकुंभ के नाम से भी प्रसिद्ध है. अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में हर साल सैकड़ों देवी-देवता शामिल होते हैं. वहीं, इस दशहरा को देखने के लिए हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु कुल्लू पहुंचते हैं. पढ़िए पूरी खबर...(Kullu Dussehra) (International Kullu Dussehra)

International Kullu Dussehra
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 23, 2023, 3:48 PM IST

Updated : Oct 24, 2023, 9:36 AM IST

कुल्लू: देशभर में भले ही मंगलवार को विजयदशमी के साथ दशहरा त्योहार का समापन हो जाएगा, लेकिन हिमाचल प्रदेश में इसी दिन से अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव का आगाज होने जा रहा है. जहां पूरे देश में शारदीय नवरात्रि एक साथ मनाई जाती है, वहीं हिमाचल में कुल्लू अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव की परंपरा विजयदशमी के दिन शुरू होती है. इसके पीछे अलग-अलग मान्यता है. अपनी धार्मिक मान्यता, पारंपरिक संस्कृति और कई खास कारणों की वजह से इसे अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का दर्जा मिला है. इस दशहरा उत्सव में देश-प्रदेश के साथ-साथ विदेशों से भी लोग शामिल होने आते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव की क्या धार्मिक मान्यता और महत्व है ?

कुल्लू में हर साल अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का आयोजन: दशहरा का नाम लेते ही आपके जेहन में पश्चिम बंगाल और मैसूर में होने वाले दशहरा का नाम सबसे पहले आता होगा, लेकिन आपको बता दें कि हिमाचल के कुल्लू जिले में मनाया जाने वाला दशहरे को अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का दर्जा मिला हुआ है. इस दशहरा में कुल्लू जिले के 300 से अधिक देवी-देवता शामिल होने के लिए आते हैं. वहीं, इस दशहरा उत्सव में कुछ ऐसे देवी-देवता हैं, जिनके आगमन के बिना दशहरा उत्सव की कल्पना नहीं की जा सकती. इन्हीं देवी-देवताओं में से एक हिडिंबा माता प्रमुख देवी हैं. देवी हडिंबा का दशहरा उत्सव में आगमन अति आवश्यक माना जाता है. ऐसी धार्मिक मान्यता है कि माता हिडिंबा के बिना दशहरा उत्सव का आयोजन नहीं हो सकता.

माता हिडिंहा के आगमन के साथ शुरू होता है दशहरा उत्सव
विजयदशमी के दिन होता है कुल्लू दशहरा का आगाज

माता हिडिंबा से जुड़ी धार्मिक मान्यता और इतिहास:इतिहासकार सूरत ठाकुर का कहना है कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीराम ने रावण को विजयदशमी के दिन बाण मारा था, लेकिन उसकी मृत्यु 7 दिन बाद हुई थी. यही वजह है कि विजयदशमी से 7 दिनों तक कुल्लू में अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव मनाया जाता है. कुल्लू दशहरा उत्सव के पहले दिन देवी अपने हरियानो के साथ राजमहल पहुंचती है. यहां माता की पूजा के बाद भगवान रघुनाथ को भी ढालपुर में लाया जाता है. माता दशहरा उत्सव के 7 दिनों तक ढालपुर के अपने अस्थाई शिविर में रहती हैं. इस दौरान हजारों की संख्या में भक्त देवी हिडिंबा के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं. हिडिंबा माता की आशीर्वाद से देव महाकुंभ पूरी तरह से संपन्न होता है. वहीं, लंका दहन के दिन माता हिडिंबा का रथ सबसे आगे चलता है. इस दिन माता को अष्टांग बलि दी जाती है. इस दिन पुजारी माता हिडिंबा का गुर और घंटी धडच (धूप जलाने का पात्र) साथ लेकर जाते हैं. जैसे ही बलि की प्रथा पूरी होती है तो माता का रथ वापस अपने देवालय की ओर लौट जाता है. इसके साथ ही दशहरा उत्सव का भी समापन हो जाता है.

कुल्लू दशहरा महोत्सव में 300 से अधिक देवी-देवता होते हैं शामिल
कुल्लू दशहरा में शामिल होते हैं हजारों की संख्या में लोग
देश-विदेश से लोग कुल्लू अंतरराष्ट्रीय दशहरा में होते हैं शामिल

हिडिंबा देवी राज परिवार की कुलदेवी हैं: इतिहासकार डॉक्टर सूरत ठाकुर का कहना है कि देवी हिडिंबा को विहंग मणिपाल राज परिवार की कुल देवी भी हैं. उन्हें राज परिवार की दादी भी कहा जाता है. मान्यताओं के अनुसार देवी हिडिंबा ने राजा विहंग मणिपाल को एक बुढ़िया के रूप में दर्शन दिया था. इस दौरान राजा विहंग ने बुढ़िया को अपनी पीठ पर उठाकर पहाड़ी तक पहुंचाया था. जिससे खुश होकर माता हिडिंबा ने विहंग मणिपाल को अपने कंधे पर उठाया, उस दौरान मां हिडिंबा अपने असली स्वरूप में आग गईं और उन्होंने राजा कि कहा जहां-जहां तक तेरी नजर जा रही है. वहां तक की संपत्ति आज से तेरी होगी. उसके बाद माता हिडिंबा ने विहंग मणिपाल को पूरे इलाके का राजा घोषित किया. तभी से राज परिवार ने माता हिडिंबा को दादी का दर्जा दिया. दशहरा उत्सव में माता हिडिंबा की उपस्थिति इसलिए अनिवार्य मानी जाती है.

हिडिंबा देवी राज परिवार की कुलदेवी हैं

माता आगमन के छठे दिन शुरू होता है मोहल्ला उत्सव:धार्मिक परंपरा के अनुसार माता हिडिंबा नवरात्रि के नवमी पर पर्यटन नगरी मनाली से ढालपुर के लिए रवाना होती हैं. अपनी इस यात्रा में शाम के वक्त वह रामशिला में विश्राम करती हैं. मां के रामशिला हनुमान मंदिर पहुंचने पर उन्हें सम्मान पूर्वक लाने के लिए भगवान रघुनाथ की छड़ी जाती है. जिसके बाद माता हिडिंबा रघुनाथपुर में प्रवेश करती हैं. इस दौरान राज परिवार के लोग सभी परंपराओं का निर्वहन करते हैं. वहीं, देवी दर्शन के साथ कुल्लू दशहरा उत्सव का आगाज हो जाता है. कुल्लू दशहर के छठवें दिन भगवान रघुनाथ की छड़ी माता हिडिंबा के रथ को लाने के लिए आती है. उसके बाद मोहल्ला उत्सव शुरू किया जाता है.

मनाली स्थित माता हिडिंबा माता का मंदिर
धार्मिक और पारंपरिक संस्कृति का संगम है कुल्लू दशहरा

16वीं शताब्दी में मनाया जाता है कुल्लू दशहरा उत्सव: इतिहासकार डॉक्टर सूरत ठाकुर का कहना है कि 16वीं शताब्दी से कुल्लू दशहरा उत्सव को मनाया जा रहा है. पर्यटन नगरी मनाली के ढूंगरी स्थित मंदिर में माता हिडिंबा की प्रतिमा स्थापित है. जहां पर हर साल हजारों सैलानी और भक्त माता की दर्शन के लिए आते हैं. मंदिर के भीतर एक प्राकृतिक चट्टान है, जिसे देवी का स्थान कहा गया है. चट्टान को स्थानीय बोली में ढूंग कहते हैं, इसलिए देवी को ढूंगरी देवी भी कहा जाता है. इस मंदिर का निर्माण कल्लू के शासक बहादुर सिंह ने 1553 ईसवीं में करवाया था.

कुल्लू दशहरा उत्सव में पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह लोक नृत्य करते हुए
साल 2022 में पीएम मोदी हुए थे अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में शामिल

2017 में मिला अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का दर्जा: कुल्लू दशहरा को साल 1966 में राज्य स्तरीय दर्जा मिला था. वहीं, 1970 में अंतरराष्ट्रीय स्तर का दर्जा देने की घोषणा की गई, लेकिन इसे मान्यता नहीं मिल पाई. ऐसे में साल 2017 में कुल्लू दशहरा को अंतरराष्ट्रीय उत्सव का दर्जा दिया गया. गौरतलब है कि साल 2022 में पीएम नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री थे, जो कुल्लू अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में शामिल हुए थे. वहीं, इस दशहरा को अंतरराष्ट्रीय लोक नृत्य का भी दर्जा प्राप्त हैं. यहां देश-विदेश से पर्यटक और कलाकार शामिल होने आते हैं.

कुल्लू दशहरा में नहीं जलाया जाता रावण का पुतला:शारदीय नवरात्रि पर विजयदशमी के दिन देशभर में रावण का पुतला जलाया जाता है, लेकिन कुल्लू दशहरा में न तो लंका दहन होता है और नहीं रावण का पुतला जलाया जाता है. ढालपुर में 7 दिनों तक चलने वाले दशहरा उत्सव में करीब 300 से अधिक देवी देवाओं का आगमन होता है. अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि से एक सप्ताह तक यह उत्सव चलता है. 7वें दिन माता हिडिंबा का रथ और भगवान रघुनाथ वापस अपने मंदिर की ओर लौट जाते हैं. इसके साथ अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा का समापन हो जाता है.

लंका दहन के दिन माता हिडिंबा का रथ चलता है सबसे आगे

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Last Updated : Oct 24, 2023, 9:36 AM IST

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