देवास: कोरोना महामारी से मध्य प्रदेश में हजारों लोगों की मौत हुई है. इन शवों का जैसे तैसे अंतिम संस्कार भी हो गया. अब परिजनों के सामने समस्या है मृत परिजनों के अस्थि विसर्जन, पिंडदान और तर्पण की.
हिंदू मान्यताओं के मुताबिक नदियों के किनारे ही पिंडदान और तर्पण किया जाता है. लोग प्रदेश में बहने वाली नदियों की ओर ही रुख कर रहे हैं. जिसका नतीजा है नदी के किनारे ही कोरोना संक्रमित मरीजों के कपड़े और दूसरा सामान छोड़ दिया जाता है. देवास के पास बहने वाली पवित्र नदी क्षिप्रा किनारे भी लोग बड़ी संख्या में अपने परिजनों का पिंडदान करने आते हैं, जिससे नदी के पानी में संक्रमण का खतरा बढ़ गया है. खास बात यह है कि क्षिप्रा का यह पानी देवास और इंदौर को सप्लाई किया जाता है. एक रिपोर्ट.
लाखों लोगों पर मंडरा रहा है संक्रमण का खतरा
कोरोना से हो रही हजारों मौतों के बाद प्रदेश की जीवनदायिनी नदियों पर प्रदूषण का संकट गहरा रहा है. क्षिप्रा नदी पर आलम यह है कि तमाम लॉकडाउन और पुलिस की सख्ती के बावजूद सैकड़ों लोग यहां प्रतिदिन कोरोना से मारने वाले लोगो का पिंडदान और तर्पण करने पहुंच रहे हैं.
घाट की स्थिति यह है कि यहां संक्रमित और गैर संक्रमित तमाम लोग यहां पर मृतकों का तर्पण करते हैं. नदी में अस्थियां, बाल, जूते चप्पल और संक्रमितों के कपड़ों तक का विसर्जन किया जा रहा है. इससे नदी का पानी तो अशुद्ध हो ही रहा है चिंता की बात यह है कि इसी पानी की सप्लाई देवास नगर निगम द्वारा पीने के पानी के तौर पर शहर के लाखों लोगों को की जा रही है. जिससे पानी के जरिए देवास में भी लाखों लोगों को संक्रमण फैलने का खतरा मंडरा रहा है.
'ईटीवी भारत' ने कलेक्टर देवास चंद्रमौली शुक्ला को सूचना देने का प्रयास किया उनसे संपर्क नहीं हो सका. जिसके बाद देवास नगर निगम आयुक्त से बात की गई. देवास नगर निगम के आयुक्त दावा करते हैं कि शहर को सप्लाई होने वाला पानी वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में साफ किया जाता है उसके बाद ही सप्लाई होती है.
नगर निगम के मुताबिक फिलहाल कहीं से भी दूषित पानी की शिकायत नहीं मिली है लेकिन फिर भी संक्रमण की आशंका के चलते अब नदी में दूषित सामग्री डालने से लोगों को रोका जाएगा.
'कोरोना घाट' का खतरा : नर्मदा में अस्थि विसर्जन करने वालों की संख्या 4 गुना बढ़ी
वाटर फिल्ट्रेशन प्रक्रिया के बाद भी जीवित रहता है वायरस
मेडिकैप्स यूनिवर्सिटी के रिसर्च वायरोलॉजी विशेषज्ञ एवं ख्यात शिक्षाविद एवं वैज्ञानिक डॉ. राम श्रीवास्तव के अनुसार नगर निगम पानी को क्लीन करने के लिए जिस फिल्टर प्रक्रिया का सहारा लेती है, उसमें फिटकरी और क्लोरीन से पानी साफ किया जाता है.
फिटकरी से वायरस और बैक्टीरिया नहीं मरता है. इसके अलावा पानी में क्लोरीन मिलाने पर भी वायरस जिंदा रह सकता है, यदि कोरोनावायरस को नष्ट करने के लिए क्लोरीन की मात्रा पानी में बढ़ाई भी जाती है तब ऐसी स्थिति में ज्यादा क्लोरीन होने के चलते पानी पीने योग्य नहीं रहेगा .जहां तक क्षिप्रा नदी का सवाल है तो पानी के अधिक भंडारण के कारण फिलहाल वायरस का असर नहीं दिख रहा है लेकिन फिर भी यह वायरस दूषित पानी के जरिए लोगों के लिए खतरा बन सकता है इसके लिए तुरंत प्रभावी कदम उठाए जाने की जरूरत है.
रोजाना क्षिप्रा पर आते हैं 200-300 लोग
तर्पण और विसर्जन की परंपरा को पूरा करने के लिए इंदौर देवास के बीच के शिप्रा घाट पर सुबह 3:00 बजे से ही लोग पिंडदान और तर्पण करने पहुंचने लगते हैं. ताकि पुलिस प्रशासन को इसकी भनक ही न लगे. सामाजिक मान्यता के चलते पॉजिटिव व्यक्ति के संपर्क में रहते हुए भी लोग चोरी छुपे शिप्रा में डुबकी लगा रहे हैं.