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Odisha Villages : ओडिशा का अजीबो-गरीब गांव, जहां के ग्रामीण नहीं बोलना चाहते हैं ओड़िया

ओडिशा के कोरापुट जिले में एक ऐसा गांव बसा हैं, जहां के गांववाले ओड़िया भाषा को अपनी मातृभाषा के रूप में अपनाने के इच्छुक तक नहीं है. ये गांव आंध्र प्रदेश और ओडिशा की सीमा पर बसा है. सीमा की दूसरी तरफ लगने वाले साप्ताहिक बाजार के कारण इन लोगों पर तेलुगु भाषा का प्रभाव अधिक है.

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Published : Aug 22, 2023, 4:47 PM IST

कोरापुट :ओडिशा में मातृ भाषा ओड़िया है. यहां के लगभर सभी जिलों में ओड़िया ही बोली जाती है. लेकिन इस राज्य में एक ऐसा गांव भी है, जहां के लोग ओड़िया ना लिखना-पढ़ना जानते हैं और ना ही समझ पाते हैं. यहां तक के वे लोग ओड़िया भाषा को अपनाना ही नहीं चाहते हैं. ये गांव कोरापुट जिले के कोटिया पंचायत अंतर्गत धुलिपदर है. ओड़िया में गांव का नाम धूलिपदर है और तेलुगु में इस जगह का नाम धूलिभद्र है. धुलिपदर गांव ओडिशा और आंध्र प्रदेश के बीच सीमा विवाद में फंसा कोटिया पंचायत का एक बहुचर्चित गांव है. यह ओडिशा के कोटिया पंचायत और आंध्र प्रदेश के गंजाईभद्रा पंचायत के तहत ओडिशा का अंतिम गांव नेरेडीबालासा के निकट स्थित है. पूरे गांव में कंध जनजाति के 50 आदिवासी परिवार रहते हैं.

इस गांव में मूल रूप से 'कुवी' भाषा ही बोली जाती है. लेकिन आंध्र प्रदेश के सलूर मंडलम में सारिकी साप्ताहिक बाजार के नजदीक होने के कारण, व्यापार सूत्र में तेलुगु भाषा का प्रभाव इन लोगों पर अधिक होता है. इस वजह से इन लोगों ने तेलुगु भाषा को ही अपना लिया है. बहरहाल, धुलिपदर ओडिशा की कोटिया पंचायत के मानचित्र में होने के नाते उनके बीच ओड़िया भाषा के प्रसार को मजबूत बनाने की कोशिश की गई थी. 1971 में इस गांव में एक ओड़िया प्राथमिक विद्यालय की स्थापना भी की गई थी, लेकिन आजतक इस स्कूल का यहां के लोगों पर किसी भी तरह प्रभाव नहीं पड़ा. ओडिशा और आंध्र प्रदेश के बीच सीमा विवाद का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. ऐसे में आंध्र प्रदेश की सीमा तक राज्य की नजदीकी पहुंच के लिए, आंध्र प्रदेश के प्रशासनिक अधिकारी और राजनीतिक नेता इस गांव को अपने अक्सर बैठक स्थल के रूप में उपयोग करते हैं.

इस स्कूल की स्थापना के 52 सालों के बाद भी यहां के लोगों के बीच ओड़िया भाषा के प्रति रुचि पैदा करने में विफल है. जहां ओडिशा सरकार अन्य क्षेत्रों में बच्चों को रोचक तरीके से पढ़ाने के लिए भवन और शिक्षण सामग्री के साथ स्कूल तैयार कर रही है. वहीं धुलिपदर जैसे संवेदनशील गांव में बना स्कूल उड़िया भाषा को बढ़ावा देने की दिशा में असहाय हो चुका है. विद्यालय में शौचालय नहीं है और ना ही बच्चों को आकर्षक करने वाले चित्र दीवार पर बने हैं. हालांकि गांव को आंध्र सरकार द्वारा बिजली की आपूर्ति की जा रही है क्योंकि स्कूल तो ओडिशा सरकार द्वारा चलाया जाता है, लेकिन कनेक्शन की कमी के कारण बिजली की आपूर्ति आंध्र सरकार से होती है. हालांकि इस स्कूल में बिजली कनेक्शन के लिए सभी आंतरिक व्यवस्थाएं की गई हैं, लेकिन दोनों राज्यों के बीच विवाद ने ओड़िया भाषा के प्रसार पर रोक लगा दी है. ओड़िया स्कूल के शिक्षक को छोड़कर पूरे गांव में कोई भी एक ओड़िया शब्द नहीं बोल पाता है.

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जाने माने भाषा विशेषज्ञ डॉ. प्रिदिथारा सामल ने अपनी राय दी कि गांव में ओड़िया भाषा समझने वाले एकमात्र शिक्षक की 24 घंटे की उपस्थिति इस भाषा के प्रसार में मदद कर सकती है. शिक्षक ने गांव में रहने की इच्छा व्यक्त करेंगे, अगर उन्हें बिजली कनेक्शन के साथ घर और बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं. ऐसे में डॉ. सामल को उम्मीद है कि अगर 5टी स्कूलों जैसे स्कूलों में बच्चों को ऑडियो-विजुअल के जरिए ओड़िया में पढ़ाया जाएगा तो वे भी इस स्कूल की ओर आकर्षित होंगे और ओडिशा की मातृभाषा के प्रचार-प्रसार में मदद मिलेगी.

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