कोलकाता:कोलकाता के बालीगंज इलाके में सात एचआईवी पॉजिटिव युवाओं द्वारा संचालित एक कैफे बीमारी के बारे में प्रचलित गलत धारणाओं को तोड़ने के अलावा, जीवन के सभी क्षेत्रों से पूर्वाग्रह मुक्त ग्राहकों को अपनी ओर काफी आकर्षित कर रहा है. 'पॉजिटिव कैफे', पहली बार 2018 में जोधपुर पार्क में डॉ कल्लोल घोष द्वारा 100-वर्ग फुट गैरेज में शुरू किया गया था. हाल ही में उसका पता बदल गया और "ग्राहकों की बढ़ती भीड़" को सर्विस देने के लिए बल्लीगंज स्थित बड़े स्थान पर शिफ्ट हो गया है.
सात युवक खाने-पीने की चीजें जैसे कॉफी, मछली और चिप्स से लेकर सैंडविच आदि ग्राहकों को परोसते भी हैं. एशिया में इस तरह का यह पहला कैफे होने का दावा करने वाले घोष ने सोमवार को पीटीआई-भाषा से कहा कि हमारे नियमित ग्राहकों को एचआईवी पॉजिटिव लोगों द्वारा संचालित कैफे पर जाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है. हालांकि वो अपने कैफे से संबंधित जानकारी पंफलेट (brochures) सभी आगंतुकों को देते हैं. कैफे के बारे में पुछने पर अधिकांश ग्राहकों का कहना है कि उन्हें कोई समस्या नहीं है, हालांकि कुछ लोग जानने के बाद अभी भी लौट जाते हैं. बिसवी सदी के लोग लोग बहुत प्रगतिशील होते हैं. यह बता दें कि एचआईवी अन्य संक्रामक रोगों की तरह नहीं फैलता है.
संघर्ष के शुरुआती दिनों को याद करते हुए, एचआईवी पॉजिटिव बच्चों के लिए एक एनजीओ चलाने वाले घोष ने कहा कि उनको समाज की मुख्यधारा में कैफे खोलकर बसाने में थोड़ी दिक्कत आयी परंतु थोड़ा समझाने के बाद जोधपुर में एक निर्जन स्थल पर बनी इमारत के मालिक ने अपने गैरेज को किराए पर देने के लिए सहमति व्यक्त की. हालांकि कुछ पड़ोसियों ने हमारे उद्यम पर आपत्ति जताते हुए दावा किया कि हमारे कैफे से उत्पन्न कचरा आसपास के क्षेत्र में एड्स फैला सकता है. बता दें कि यह दक्षिण कोलकाता का एक पॉश इलाका था.