नई दिल्ली :आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन कोकिला व्रत रखा जाता है. इसे संपूर्ण सावन महीने में आने वाले व्रतों का शुभारंभ करने वाला व्रत भी माना जाता है. इस व्रत में देवी के स्वरूप को कोयल रूप में पूजकर आराधना की जाती है. ऐसा माना जाता है कि माता सती ने कोयल रूप में भोलेनाथ को पाने के लिए कई वर्षों तक कठोर तपस्या की थी. इसीलिए अच्छे मनवांछित वर की प्राप्ति के लिए कोकिला व्रत महिलाओं के द्वारा किया जाता है. आम तौर पर इसे दक्षिण भारत में रखा जाता है.
हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह में आने वाली पूर्णिमा के दिन कई त्योहार व पर्व मनाए जाते हैं, जिसको अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग नामों से जाना जाता है. इसी में से आसाढ़ पूर्णिमा के अलावा कोकिला व्रत भी इसी दिन किया जाता है. कोकिला व्रत केवल सुहागिनें ही नहीं, बल्कि कुंवारी कन्याएं भी अपने लिए सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए किया करती हैं. इस व्रत को करने से स्त्री का दांपत्य जीवन में सुखमय होता है. कहा जाता है कि माता सती ने भी भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए इस कोकिला व्रत को किया था. इसीलिए इस व्रत का महत्व और भी अधिक बताया जाता है.