हैदराबाद : कोहिनूर, ये दुनिया के सबसे मशहूर हीरे का नाम है. कोह-इ-नूर का मतलब होता है रोशनी का पहाड़. इस हीरे को लेकर इतिहास के पन्नों में कई किस्से कहानियां दर्ज हैं लेकिन आज इस हीरे का जिक्र इसलिए हो रहा है क्योंकि आज 3 जुलाई है और आज ही के दिन साल 1850 के दिन ईस्ट इंडिया कंपनी के चेयरमैन ने इसे महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया. जिसके बाद से ये इंग्लैंड में ही है और इसे कई बार भारत वापस लाने की चर्चा हुई है क्योंकि इस कोहिनूर का वास्तविक घर हिंदुस्तान ही है.
ब्रिटेन की रानी के क्राउन में सजा है कोहिनूर कहानी कोहिनूर की
कोहिनूर को गोलकोंडा के कोल्लूर की खदानों से जोड़ा जाता है. कहते हैं कि आज के आंध्र प्रदेश में मौजूद इन खदानों से ही कभी ये बेशकीमती हीरा निकला था. कहते हैं कि शुरुआत में ये हीरा 793 कैरेट का था. एक वक्त इसे दुनिया का सबसे बड़ा हीरा माना जाता था जो अब 105.6 कैरेट (करीब 21 ग्राम) का रह गया है.
- जानकार मानते हैं कि इस हीरे का सबसे पहला जिक्र बाबर की जीवनी 'बाबरनामा' में मिलता है. जिसके मुताबिक बाबर के बेटे हुमायूं ने ये हीरा उसे तोहफे में दिया था. ग्वालियर के राजा बिक्रमजीत सिंह ने अपनी संपत्ति 1526 में हुई पानीपत की लड़ाई के दौरान आगरे के किले में रखवाई थी. मुगलों ने जंग जीतने के बाद किले पर कब्जा किया और कई हीरे-जवाहरात उनको मिले जिनमें ये हीरा भी था. जिसे उस वक्त बाबर हीरा नाम दिया गया.
कोहिनूर के आगे हर हीरे की चमक फीकी - कहते हैं कि जब हुमायूं ने इसकी कीमत आंकने की कोशिश की तो बाबर ने कहा कि इस हीरे की कीमत एक लट्ठ है, जिसके हाथ में भारी लट्ठ होगा ये हीरा उसका होगा.
- जिसके बाद लंबे वक्त तक ये हीरा मुगलों के पास ही रहा. बाबर के पड़पोते शाहजहां ने अपने लिए एक विशेष सिंहासन बनवाया था जिसे मयूर सिंहासन कहते हैं. इसमें कई हीरे जवाहरातों के साथ बाबर हीरा भी मढ़ दिया गया था. दूर-दूर से जौहरी इस सिंहासन को देखने आते थे.
- 1658 में सत्ता औरंगजेब के हाथ आई तो उसने हीरे की चमक बढ़ाने और तराशने के लिए इसे वेनिस शहर के हॉर्टेंसों बोर्जिया को दिया. जिसने हीरे के टुकड़े कर दिए और ये हीरा अब महज 186 कैरेट का रह गया. बोर्जिया पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया.
कुछ लोग मानते हैं कोहिनूर से जुड़ा है एक श्राप - 1738 में ईरानी शासक नादिर शाह के हमले के बाद दिल्ली के तत्कालीन शासक मोहम्मद शाह को बंदी बना लिया गया और खजाना लूट लिया गया. जिसमें बाबर हीरा भी था.
- इसे हीरे को कोहिनूर नाम नादिर शाह ने ही दिया था. 1747 में नादिर शाह के रिश्तेदारों ने ही उसकी हत्या कर दी और कोहिनूर नादिर शाह के पोते शाहरुख मिर्जा के पास आ गया.
हीरों में हीरा है कोहिनूर -1751 में ये हीरा अफगानी शासक अहमद शाह दुर्रानी के पास पहुंच गया. कहते हैं कि नादिर शाह के पोते शाहरुख मिर्जा ने अपनी मदद के बदले ये हीरा दुर्रानी को दिया था. हीरा अब अफगानिस्तान पहुंच गया था.
- इसके बाद हीरा अहमद शाह के वंशज शूजा शाह के साथ लाहौर पहुंचा. तब महाराजा रणजीत सिंह ने कोहिनूर हासिल किया. जिसे महाराज रणजीत सिंह अपने ताज में पहनते थे. 1839 में उनके निधन के बाद हीरा उनके पुत्र दिलीप सिंह के पास आ गया.
-1849 में अंग्रेजों ने महाराज को हरा दिया. तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी और महाराज दिलीप सिंह ने लाहौर संधि पर दस्तखत किए और कोहिनूर अंग्रेजों को सौंपना पड़ा.
- लार्ड डल्हौजी साल 1850 में कोहिनूर को लाहौर से मुंबई ले गए. जहां से इसे लंदन भिजवा दिया गया.
- 3 जुलाई 1850 को कोहिनूर हीरा बकिंघम पैलेस में महारानी विक्टोरिया के सामने पेश किया गया. इस हीरे को फिर से तराशा गया. जिसके बाद इसका ये हीरा 108 कैरेट के करीब रह गया. ये हीरा इंग्लैंड की महारानी के ताज का हिस्सा बन गया.
- आजादी के बाद से ही लगातार भारत में कोहिनूर को वापस लाने की मांग उठती रही है. इसके अलावा पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने भी अपना हक जताते हुए हीरे की मांग की लेकिन उसे खारिज कर दिया गया.
हीरे के साथ जुड़ी है बर्बादी और मौत के श्राप की कहानी
मान्यता है कि इसे हीरे को कोहिनूर नाम मिलने से करीब 450 साल पहले साल 1294 में ये हीरा ग्वालियर के राजा के पास था. इस हीरे को पहचान 1306 में मिली जब कहा जाने लगा कि ये हीरा जिसके पास होगा वो संसार पर राज करेगा. भले ही कोहिनूर दुनिया का सबसे चर्चित और अनमोल हीरा माना जाता हो लेकिन इसके साथ एक श्राप या दुर्भाग्य की कहानी भी जुड़ी हुई है. कहते हैं कि ये हीर अपने साथ मौत और बर्बादी लाता है.
कहते हैं कि कोहिनूर जिस भी राजा के पास पहुंचा वो कभी खुशहाल नहीं रह पाया. बाबर से लेकर नादिर शाह और महाराजा रणजीत सिंह तक ये हीरा जिस भी राजा के पास पहुंचा उसका अंत जंग और कत्लेआम के साथ ही हुआ. कोहिनूर सबसे अधिक मुगल सल्तनत के पास रहा लेकिन ज्यादतर मुगल शासकों का अंत बहुत बुरा हुआ. मुगल शासक अपनों के ही षडयंत्र और भीतरघात का शिकार हुए. यानि जिस भी पुरुष राजा के पास ये हीरा पहुंचा उसे अंत में हार या मौत ही नसीब हुई.
1850 में ये हीरा अंग्रेजों के पास पहुंचा. कहते हैं कि इस श्राप की कहानी अंग्रेजों को भी पता था. कोहिनूर का इतिहास बताता है कि जिस भी पुरुष राजा के पास ये पहुंचा उसे बर्बादी ही नसीब हुई. आखिरकार अंग्रेजों ने फैसला लिया कि इस हीरे को पुरुष नहीं बल्कि महिला पहनेगी. जिसके बाद इस हीरे को महारानी एलिजाबेथ के क्राउन में जड़वा दिया गया. हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि इसके श्राप ने अंग्रेजों के खिलाफ भी काम किया और 1850 में हीरे के ब्रिटेन पहुंचने के बाद दुनिया भर में ब्रितानी साम्राज्य सिकुड़ने लगा.
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