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Palamu Malvariya Massacre: बदला रहा विधवाओं का गांव, नरसंहार के बाद बदलती मलवरिया की फिजा

4 जून 1991, इतिहास की वो काली तारीख जो धब्बे की तरह सिर्फ पलामू और झारखंड ही नहीं बल्कि पूरी मानवता अपनी स्याह छाप छोड़ दी है. आज 30 साल बाद इलाके की फिजा बदल रही है. ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट से जानिए, पलामू में मलवरिया नरसंहार के बाद ये इलाका क्यों कहलाया विधवाओं का गांव.

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Published : Feb 3, 2023, 10:37 AM IST

Palamu Malvariya Massacre
Palamu Malvariya Massacre

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पलामूः 250 किलोमीटर दूर पलामू के मलवरिया गांव में आज शांति है, चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है लेकिन कभी यहां चीख-पुकार और मातम का शोर ही सुनाई देता था. 90 के दशक में यह गांव जमीन की लड़ाई को लेकर खूनी संघर्ष का केंद्र रहा. इन 10 साल में 20 लोगों अपनी जान गंवाई थी. आज वो खौफनाक मंजर को याद कर लोग सहम जाते हैं, उस काली शाम के खूनी स्याह ने सबको अपने अंदर समेट लिया.

4 जून 1991 की शाम मलवारिया गांव इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया और पूरे भारत में चर्चा का केंद्र बन गया था. इस गांव में एक साथ 10 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया, इसमें चार महिलाएं भी शामिल थीं. प्रतिशोध की आग ने इस गांव को रक्तरंजित कर दिया. गांव के दुकानदार रामविनय सिंह नाम के व्यक्ति की हत्या नक्सल संगठन पार्टी यूनिटी द्वारा की गई थी. जिसका बदला लेने के लिए सनलाइट सेना का गठन हुआ.

सनलाइट सेना ने एक साथ नक्सली श्याम बिहारी साव उर्फ सलीम के परिजनों समेत 10 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. अदावत की यही वारदात मलवरिया नरसंहार कहलाया, जिसके ना सिर्फ अविभाजित बिहार के पलामू बल्कि पूरे देश में इस जघन्य हत्याकांड की चर्चा होने लगी. इसी साल जुलाई में बिहार में विधानमंडल इस मुद्दे को लेकर गहन चर्चा भी की गयी. तत्कालीन मुख्यमंत्री ने पीड़ितों से मुलाकात कर मदद का भरोसा भी दिया.

बदले की आग तो शांत हो गयी लेकिन इसकी काली परछाई इस गांव पर लंबे समय छाई रही. एक वक्त था जब मलवरिया को विधवाओं का गांव कहा जाता था. क्योंकि घर के जो भी कमाने वाले पुरुष थे उन्हें मौत की नींद सुला दी गयी थी. आलम ऐसा था कि खौफ के मारे दूसरे गांव का कोई भी व्यक्ति इस गांव में अपनी बेटी की शादी नहीं करता था. लेकिन तीन दशक बाद आज इलाके के हालात बदल रहे हैं. नक्सल संगठन आज कमजोर हो गए हैं और झारखंड बिहार में अपनी अंतिम सांसे गिन रहे हैं पर ये अपने पीछे कई रक्तरंजित कहानियां छोड़ गए हैं. गांव के पूर्व मुखिया बताते है कि एक वक्त था मलवरिया विधवाओं के विलाप से दहल उठा था पर अब माहौल पूरी तरह बदल गया है.

नक्सल के खिलाफ बनी थी सनलाइट सेनाः मलवरिया नरसंहार से पहले सनलाइट सेना का गठन हुआ था. सनलाइट सेना मलवारिया से ही पूरे इलाके में गतिविधि का संचालन करती थी. 90 के दशक में सनलाइट सेना और नक्सल संगठन के आपसी खूनी संघर्षों में दर्जनों लोगों की जान गई. सनलाइट सेना और नक्सल संगठन पलामू, गढ़वा और बिहार के सीमावर्ती इलाकों में आपस में कई लड़ाइयां लड़ी. सनलाइट सेना के संस्थापक में से एक बच्चू सिंह बताते है कि ऐसी परिस्थिति बन गई थी कि सेना का गठन हुआ. मलवरिया और उसके आसपास के इलाके में कई घटनाएं हुई थी लेकिन उनका गांव इससे अछूता था. यहां सुख शांति थी लेकिन अचानक परिस्थितियां बदली और घटनाएं होने लगी. उन्होंने एक लंबा वक्त जेल में बिताया है अब यहां सब कुछ शांत है.

जमीन की अदावत में कई संगठनों का उदयः पलामू में मलवरिया नरसंहार के बाद यहां जमीन की लड़ाई और तेज हो गई. इससे पहले जमीन के विवाद में कई खूनी संघर्ष हुए. मलवरिया नरसंहार से पहले अविभाजित बिहार में जमीन विवाद में कई संगठनों का उदय हो चुका है और कई हत्याऐं भी हो चुकी थीं. मलवरिया नरसंहार में पार्टी यूनिटी के तत्कालीन जोनल कमांडर श्याम बिहारी साव उर्फ सलीम की मां, भाई और भाभी मारी गई थी और घर भी फूंक दिए गए थे.

मलवरिया नरसंहार पीड़ित पूर्व टॉप नक्सली कमांडर श्याम बिहारी कान्दू सलीम बताते है कि उस दौरान जमीन समेत कई बिंदुओं पर लड़ाई हुई. उस दौरान अगल बगल के गांव में जमीन विवाद था हालांकि मलवरिया का इससे लेना देना नहीं था पर इसकी आंच गांव तक पंहुची और यहां भी खूनी संघर्ष हुआ. श्याम बिहारी झारखंड में आत्मसमर्पण करने वाले पहले नक्सली हैं. 90 के दशक में जमीन समेत कई बिंदुओं पर नक्सल संगठन और दूसरे संगठनों के बीच संघर्ष हुए. इस दौरान सनलाइट सेना के अलावा भी कई संगठनों का उदय हुआ पर आज सब कुछ खत्म हो गया है.

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