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रक्षाबंधन के दिन यहां भगवान विष्णु को बांधी जाती है राखी, ठाकुर जाति के पुजारी करते हैं पूजा, जानें पौराणिक महत्व - Raksha Bandhan 2023

Raksha Bandhan 2023 देवभूमि उत्तराखंड अपनी दिव्यता, मंदिरों और धर्मस्थलों के लिए जाना जाता है. यहां पौराणिक महत्व के मंदिरों से लेकर ऐतिहासिक महत्व तक के मंदिर देखने को मिलते हैं. उनमें से एक मंदिर चमोली में स्थित भगवान वंशीनारायण का मंदिर भी है. खास बात है कि इस मंदिर के कपाट साल में सिर्फ एक दिन खुलते हैं. Vanshinarayan Kalpeshwar Temple

shri bansi narayan temple
श्री वंशीनारायण मंदिर

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 30, 2023, 8:00 AM IST

Updated : Aug 31, 2023, 11:41 AM IST

चमोली (उत्तराखंड): देवभूमि उत्तराखंड के पहाड़ी जनपद चमोली में समुद्रतल से 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित एक ऐसा मंदिर है जिसके कपाट महज एक दिन के लिए खोले जाते हैं. चमोली के जोशीमठ ब्लॉक स्थित भगवान श्री वंशीनारायण मंदिर (Vanshinarayan Temple) के कपाट सिर्फ रक्षाबंधन के पर्व पर ही खोले जाते हैं. इस दिन आसपास के गांवों की महिलाएं कपाट खुलने के बाद भगवान वंशीनारायण को राखी बांधने के पश्चात ही अपने भाइयों को राखी बांधती हैं. वंशीनारायण मंदिर का निर्माण काल छठी से लेकर आठवीं सदी के बीच का माना जाता है.

श्री वंशीनारायण मंदिर में स्थित भगवान नारायण की प्रतिमा.

चमोली में जोशीमठ विकासखंड स्थित उर्गम घाटी में एक ऐसा मंदिर है, जहां साल में सिर्फ एक दिन भगवान नारायण की पूजा इंसानों के द्वारा की जाती है. मान्यता है कि साल के बाकी 365 दिन यहां देवर्षि नारद, भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं. मंदिर की एक विशेषता ये भी है कि इस मंदिर में पुजारी ब्राह्मण जाति के नहीं, बल्कि ठाकुर जाती के होते हैं.

साल में सिर्फ रक्षाबंधन के पर्व पर खुलते हैं भगवान श्री वंशीनारायण मंदिर के कपाट

क्या है पौराणिक कथा:मान्यता है कि वंशीनारायण मंदिर को छठी से लेकर आठवीं सदी के बीच पांडवकाल के दौरान बनाया गया है और यहां भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना होती है. मनुष्य केवल रक्षाबंधन के दिन इस मंदिर में श्री हरि के दर्शन कर सकता है. अब सवाल उठता है कि ऐसा क्यों है? इसके पीछे एक पौराणिक कहनी है जिसके अनुसार एक बार भगवान विष्णु को पाताल लोक में जिम्मेदारियां संभालनी पड़ जाती है. वो ऐसा अपने भक्त राजा बलि के आग्रह पर करते हैं और पाताल लोक में द्वारपाल की जिम्मेदारी के लिए हां कह देते हैं.

बहनें अपने भाइयों से पहले भगवान को बांधती है रक्षासूत्र

श्री हरि को ढूंढते हुए नारद मुनि के पास पहुंचीं माता लक्ष्मी:जब श्री हरि पाताल लोक चले जाते हैं तो मां लक्ष्मी उनको खोजने का प्रयास करती हैं और भगवान विष्णु को ढूंढते-ढूंढते देवर्षि नारद मुनि के पास पहुंच जाती है. ये वही स्थान था जहां पर वंशीनारायण मंदिर स्थित है. यहां पहुंचकर वो नारद मुनि से भगवान विष्णु का पता पूछती हैं. नारद मुनि मां लक्ष्मी को बताते हैं कि भगवान तो पाताल लोक में हैं और वहां द्वारपाल का कर्तव्य निर्वहन कर रहे हैं. मां लक्ष्मी चिंतित हो जाती हैं और नारद मुनि से भगवान विष्णु को वापस लाने का तरीका पूछती हैं.

उर्गम घाटी में स्थित है मंदिर.

नारद मुनि बताते हैं ये तरीका:मां लक्ष्मी के आग्रह पर देवर्षि नारद उन्हें बताते हैं कि वो राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर उनसे भगवान विष्णु को वापस मांग सकती हैं. तरीका जानने के बाद माता लक्ष्मी देवर्षि को भी साथ चलने को कहती हैं क्योंकि उनको पाताल लोक का मार्ग पता नहीं था. फिर, नारद मुनि और माता लक्ष्मी पाताल लोक पहुंचते हैं. माता लक्ष्मी राजा बलि को रक्षासूत्र बांधती हैं और बदले में श्री हरि को मुक्त करवाकर लौट जाती हैं.

ऐसे बनी परंपरा एक दिन पूजा की परंपरा:कहा जाता है कि यही वो एक दिन था जब देवर्षि नारद मुनि वंशीनारायण मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा नहीं कर पाए थे और इसलिए उस दिन घाटी के कलकोठ गांव के जाख पुजारी ने भगवान वंशीनारायण की पूजा की थी. तभी से ये परंपरा लगातार चली आ रही है.

समुद्रतल से 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है मंदिर.

परंपरा पर थोड़ा बदलाव: वैसे तो मंदिर के कपाट केवल एक दिन खोले जाते थे लेकिन पिछले कुछ सालों से उर्गम घाटी के ग्रामीणों ने मंदिर को खोलने की परंपरा पर थोड़ा बदलाव किया है. इसके तहत अब कुछ सालों से बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ ही श्री वंशीनाराणय मंदिर के कपाट भी खोल दिए जाते हैं जबकि रक्षाबंधन के दिन सूर्यास्त से पहले कपाट बंद भी कर दिए जाते हैं.
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भगवान वंशीनारायण को लगता है मक्खन का भोग:श्री वंशीनारायण मंदिर के कपाट खुलने पर कलकोठ गांव के प्रत्येक परिवार से भगवान के लिए भोग स्वरूप मक्खन मंदिर में लाया जाता है और फिर इसी मक्खन से श्री हरि के वंशीनारायण स्वरूप का भोग तैयार होता है. इसके साथ ही दुर्लभ प्रजाति के फूलों से भगवान विष्णु की प्रतिभा को सजाया जाता है. ये फूल मंदिर के प्रांगण में स्थित फुलवारी में ही खिलते हैं और इन फूलों को सिर्फ श्रावण पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन पर्व पर ही तोड़ा जाता है. इसके बाद श्रद्धालु व स्थानीय लोग भगवान वंशीनारायण को रक्षासूत्र बांधते हैं.
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Last Updated : Aug 31, 2023, 11:41 AM IST

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