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Go First Bankruptcy : क्या भारतीय विमान कंपनियों के खिलाफ साजिश रच रही है अमेरिकी कंपनी ?

पहले किंगफिशर, उसके बाद जेट एयरवेज और अब गो फर्स्ट, ने अपने आप को दिवालिया घोषित कर दिया. भारतीय विमान क्षेत्र के लिए यह बड़ा झटका है. यह स्थिति तब है जबकि इस समय न सिर्फ ईंधन की कीमत कम है, बल्कि घरेलू डिमांड भी लगातार बढ़ता जा रहा है. विमानन क्षेत्र में इसे बड़ा विरोधाभास माना जा रहा है. लेकिन इसका एक और पहलू है, जिसके बारे में आप जानेंगे, तो चौंक जाएंगे. पढ़िए पूरी खबर.

goa first crisis
गो फर्स्ट क्राइसिस

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Published : May 3, 2023, 6:09 PM IST

Updated : May 3, 2023, 6:31 PM IST

नई दिल्ली : गो-फर्स्ट एयरवेज के निर्णय ने भारतीय विमानन क्षेत्र को चौंका दिया. यहां तक कि केंद्रीय नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी स्तब्ध रह गए. उन्होंने कहा कि उन्हें इस फैसले की उम्मीद नहीं थी. गो फर्स्ट ने अपने आप को दिवालिया घोषित करने का आवेदन किया है. यह स्थिति तब है, जबकि पिछले तीन सालों में कंपनी ने 3000 करोड़ रु. से ज्यादा का निवेश किया है. पिछले दो सालों में कंपनी ने 2400 करोड़ का निवेश किया था. इस महीने भी कंपनी ने 240 करोड़ रुपये का फंड जुटाया था.

अब आप सोच रहे होंगे, कि इतना बड़ा निवेश, फिर भी कंपनी ने अपनी सेवा समाप्त करने की घोषणा कर दी. आखिर ऐसा क्यों हुआ. इसका जवाब है- अमेरिकी कंपनी का सौतेला व्यवहार. जिस अमेरिकी कंपनी ने गो फर्स्ट एयरवेज को इंजन सप्लाई की थी, उसने वादा किया था कि वह जरूरत पड़ने पर इंजन देगी और उसका रखरखाव भी करेगी. गो फर्स्ट के सीईओ कौशिक खोना के अनुसार अमेरिकी कंपनी ने अपने वादे को पूरा नहीं किया.

इस अमेरिकी कंपनी का नाम है -प्रैट एंड व्हिटनी. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यही कंपनी इंडिगो को भी इंजन की आपूर्ति करती है. अमेरिकी कंपनी ने इंडिगो को भी समय पर इंजन की डिलीवरी नहीं की है. इंजन शॉर्टेज भारतीय विमानन क्षेत्र के लिए बड़ी समस्या है और इसकी वजह से डीजीसीए के अनुसार 60 विमान ग्राउंडेड कर दिए गए हैं.

गो-फर्स्ट ने एक स्टेटमेंट जारी किया है. इसमें बताया गया है कि सिंगापुर आर्बिट्रेरर ने 27 अप्रैल तक 10 सर्विसेबल स्पेयर लीज्ड इंजन सप्लाई करने को कहा था. आर्बिट्रेरर ने यह भी कहा था कि कंपनी को हर महीने एक इंजन की आपूर्ति अगले 10 महीनों तक करनी होगी. पर गो फर्स्ट के अनुसार प्रैट एंड व्हिटनी ने अपना वादा पूरा नहीं किया. कौशिक खोना ने बताया कि अगर उसे इंजन मिल जाता, तो सितंबर तक कंपनी अपने सभी विमानों को सेवा में यूज कर सकती थी.

गो फर्स्ट के पास 5000 एंपलॉय और 61 एयरक्राफ्ट हैं. इनमें से 54 ए320नियो और पांच ए320सीईओ हैं. एविएशन में गो फर्स्ट का मार्केट शेयर 6.9 फीसदी है. वैसे, कहते हैं कि किसी एक कंपनी का लॉस हो उस क्षेत्र में दूसरी कंपनियों के लिए वरदान साबित हो जाता है. गो फर्स्ट के इस निर्णय के बाद इंडिगो, स्पाइसजेट और ग्लोबल वेक्ट्रा के शेयर की कीमतों में उछाल आया है. स्पाइस जेट ने तो यहां तक कहा है कि वह अपने 25 ग्राउंडेड फ्लाइट को उड़ान भरने के लिए 400 करोड़ के कर्ज का इस्तेमाल करेगी.

  1. दिवालिया घोषित करने वाली कंपनियां-
  2. किंगफिशर एयरलाइंस - 2003 में इसकी स्थापना विजय माल्या ने की थी. शुरुआत में सिंगल क्लास इकोनोमी की सेवा शुरू की गई. कुछ ही सालों में कंपनी भारतीय घरेलू बाजार में दूसरे स्थान पर पहुंच गई. 2007 में कंपनी ने एयर डक्कन को खरीदने का फैसला किया. एयर डक्कन घाटे में जा रही थी. इस डील के तीन साल बाद 2011 से किंगफिशर की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी. 2012 में कंपनी ने अचानक ही अपना ऑपरेशन बंद कर दिया. 2014 में यह विलफुल डिफॉल्टर घोषित कर दी गई.
  3. जेट एयरवेज - नरेश गोयल ने 1992 में इसकी शुरुआत की थी. तब इसे एयरटैक्सी की सेवा के रूप में लोग जानते थे. 2002 में घरेलू विमान सेवा देने वाली भारत की सबसे बड़ी कंपनी बन गई. इसने इंडियन एयरलाइंस को पीछे छोड़ दिया. इसने 2006 में एयरसहारा को खरीद लिया. कंपनी ने घरेलू बाजार में अपना दबदबा बनाया, इसके बाद इसने इंटरनेशनल फ्लाइट सेवा की शुरुआत कर दी. लेकिन यह फैसला कंपनी के लिए अच्छा नहीं रहा. बाजार की रिपोर्ट देखेंगे, तो जेट की वित्तीय स्थिति उसी समय से खराब होने लगी. 2012 में यह इंडिगो से पिछड़ गई. 2019 में कंपनी बैंक को पैसा देने की स्थिति में नहीं थी. आप अंदाजा लगाइए जिसके पास 124 विमान हो, उसके चार विमान ही आसमान में उड़े, तो वह कहां से कंपनी चला सकेगी.
  4. गो फर्स्ट - इसने अपने आप को दिवालिया घोषित करने का अप्लीकेशन जमा कर दिया है. इस फैसले ने सबको चौंका दिया. यह वाडिया ग्रुप की कंपनी है. इसने 2005 में विमान सेवा की शुरुआत की थी. अभी इसके पास 61 एयरक्राफ्ट हैं. कंपनी ने पहले गो एयर, बाद में गो फर्स्ट नाम से सेवा की शुरुआत की थी. आप यह समझिए कि अभी दो सालों के भीतर ही इसमें 2400 करोड़ का निवेश किया गया था, इसके बावजूद कंपनी अपने आपको दिवालिया घोषित कर रही है.

दिवालिया होने का क्या अर्थ है - अगर कोई भी कंपनी अपना कर्ज चुका पाने में असमर्थ है, तो वह दिवालिया घोषित कर सकती है. इसके बाद कोर्ट उसकी संपत्ति का मूल्यांकन करती है और उसे बेचकर कर्जदारों को पैसे दे देती है. दिवालिया घोषित होने के बाद उसे बकाया चुकाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है.

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Last Updated : May 3, 2023, 6:31 PM IST

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