नई दिल्ली:महिलाओं को हर माह पिरियड्स (मासिक धर्म) के समय काम से छुट्टी मिलें, इस मांग के साथ वकील शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने Supreme Court (SC) में पीआईएल दाखिल की है. अपनी याचिका में उन्होंने पिरियड्स के समय महिलाओं को एक शख्स को दिल का दौरा पड़ने जितना दर्द होने की बात कही है. याचिका में उन्होंने आगे कहा है कि भारत में कुछ कंपनियां है जो पीरियड्स लीव देती हैं. वहीं कुछ राज्य सरकारें भी मासिक धर्म में महिलाओं को छुट्टी देती हैं लेकिन उनकी मांग है कि भारत की हर महिला को पीरियड्स लीव मिले.
क्यों है पीरियड्स लीव की मांग
दरअसल पीरियड के दौरान, महिला का शरीर हार्मोन उत्पादित करता है जिससे गर्भाशय में संकुचन होता है. इससे गर्भाशय की परत को बाहर निकलने में मदद मिलती है. यही संकुचन महिलाओं को मेंस्ट्रुअल क्रैम्प के तौर पर महसूस होता है. पीरियड्स में सामान्य पेट दर्द के अलावा, इसमें कई बार पैर दर्द और पीठ दर्द भी हो सकता है. इससे महिलाओं के कार्य क्षमता पर असर पड़ता है.
इससे पहले भी उठा है मासिक धर्म का मुद्दा
इस पीआईएल से पहले भी महिलाओं की मासिक धर्म से जुड़े मुद्दे उठ चुके हैं. साल 2018 में शशि थरूर ने संसद में वूमेन्स सेक्सुअल रिप्रोडक्टिव एंड मेंस्ट्रूअल राइट्स बिल पेश किया था. इसमें कहा गया था कि महिलाओं को पब्लिक अथॉरिटी फ्री में सिनेटरी पैड उपलब्ध कराएं. इस बिल के अलावा साल 2022 में बजट सेशन के पहले दिन मासिक धर्म लाभ विधेयक, 2017 को पेश किया गया था. लेकिन विधानसभा (Legislative Assembly) ने इसे 'अनक्लिन' टॉपिक के रुप में नजरअंदाज कर दिया. लोकसभा में केंद्रीय मंत्री ने लिखित जवाब में कहा था कि सेंट्रल सिविल सर्विसेज लीव रूल्स 1972 में मेंस्ट्रूअल लीव के लिए कोई प्रावधान नहीं है. दायर याचिका के अनुसार, यह 'पीरियड्स लीव' के बारे में विधायी इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाता है.
किन- किन देशों में मिलता है 'पीरियड्स लीव'
दायर याचिका में बताया गया कि चीन, जापान, ताइवान, यूके, वेल्स, इंडोनेशिया, साउथ कोरिया, स्पेन और जांबिया जैसे देशों में माहवारी के समय छुट्टी दी जाती है. इसी आधार पर हमारे देश में भी इसकी मांग की जा रही है और इसके पीछे तरह- तरह की दलीलें भी दी जा रही हैं. बिहार भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जो 1992 से अपने मानव संसाधन दिशानिर्देशों के माध्यम से महिलाओं को दो दिन का विशेष मासिक धर्म अवकाश दे रहा है.