हल्द्वानी : पितृपक्ष सोमवार यानी 20 सितंबर से शुरू हो रहा है. इस बार पितृपक्ष अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर अश्विनी मास की अमावस्या तिथि यानी 6 अक्टूबर तक रहेगा. हिंदू मान्यता के अनुसार यदि पूरी श्रद्धा भाव के साथ पितरों की पूजा अर्चना और तर्पण (श्राद्ध) करने से मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीवात्मा को मुक्ति प्रदान कर देते हैं. आइए जानते हैं क्या है पितृपक्ष में श्राद्ध की तिथियों का महत्व ज्योतिषाचार्य नवीन चंद्र शास्त्री से.
क्या पूजा विधि
पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध करने और तर्पण देने का विशेष महत्व होता है. पितरों का तर्पण करने का मतलब उन्हें जल देना होता है. इसके लिए प्रतिदिन सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर तर्पण की सामग्री लेकर दक्षिण की ओर मुंह करके बैठ जाएं. सबसे पहले अपने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प लेकर दोनों हाथ जोड़कर अपने पितरों को ध्यान करते हुए उन्हें आमंत्रित करें. खासकर नदी के किनारे तर्पण करना विशेष महत्व रखता है. इस दौरान अपने पितरों को नाम लेते हुए उसे जमीन में या नदी में प्रवाहित करें. साथ ही अपने पितरों से सुख समृद्धि का आशीर्वाद भी प्राप्त करें.
पितृपक्ष की तिथियों का क्या है महत्व
पितृपक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है, जिस तिथि पर जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई है, उसी तिथि पर उस व्यक्ति का श्राद्ध किया जाता है. अगर, मृत्यु की तिथि के बारे में जानकारी नहीं होती है, तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति का श्राद्ध अमावस्या तिथि पर किया जाता है. इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है. पितरों के श्राद्ध के दिन अपने यथाशक्ति के अनुसार ब्राह्मणों को भोज खिलाकर दान पुण्य करें. इसके अलावा भोजन को कौओं और कुत्तों को भी खिलाएं.