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जानिए कैसे नेत्रहीन बच्चे मना रहे हैं दीपावली - मुकाम को हासिल

दीपावली तो हर कोई अपने-अपने अंदाज में मनाता है, लेकिन जो लोग देख नहीं सकते हैं, जानिए उनकी दुनिया कैसी होती है, क्या होते हैं उनके सपने. ईटीवी भारत पेश कर रहा है ऐसे ही होनहारों की कहानी, जो आंखों की रोशनी खोने के बाद अपने मुकाम को हासिल करने के लिए प्रयासरत हैं...

नेत्रहीन बच्चे मना रहे हैं दीपावली
नेत्रहीन बच्चे मना रहे हैं दीपावली

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Published : Nov 14, 2020, 7:26 PM IST

नई दिल्लीःकिसी ने खूब कहा है कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती और अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा और हौसला इंसान के अंदर हो, तो वह कुछ भी कर सकता है और कोई समस्या उसके आड़े नहीं आती. आज हम बात कर रहे हैं, ऐसे बच्चों की जो देख नहीं सकते हैं, लेकिन मुकाम पाने का हौसला बरकरार है.

वहीं, दुनिया में कुछ लोग ऐसे हैं, जो आंखों से कुछ भी देख नहीं सकते, फिर भी उनके हौसले बुलंद हैं और अपनी कामयाबी से सभी को सीख दे रहे हैं. वहीं इन नेत्रहीन बच्चों के हौसले को भी आप सैल्यूट करेंगे और आप यह भी जानेंगे कि नेत्रहीन बच्चे इस कोरोना काल में दीपावली को कैसे मना रहे हैं.

नेत्रहीन बच्चे मना रहे हैं दीपावली

दीपावली के शुभ असवर पर ईटीवी भारत की टीम दिल्ली में लाजपत नगर के इंस्टीट्यूशन ऑफ द ब्लाइंड में पहुंची, तो वहां पर देखा कि तीन बच्चे तबला और हार्मोनियम बजा रहे हैं. यह बच्चे देख तो नहीं सकते हैं, लेकिन संगीत की धुन ऐसी कि जो भी सुने वो भी मुग्ध हो जाए.

'मेहनत से हर काम हो सकता है'
राहुल ने बताया कि वह बचपन से नेत्रहीन हैं और साल 2016 में उन्होंने यहां एडिमिशन लिया था. म्यूजिक हार्मोनियम बजाने के साथ वह पढ़ाई भी कर रहे हैं. कम्प्यूटर सीख रहे हैं और आगे वह अध्यापक बनना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि मेहनत की जरूरत होती है और मेहनत करने से आदमी हर मुकाम हासिल कर सकता है.

म्यूजिक टीचर बनने का है सपना
वहीं, दीपक तबला बजाते हैं और उनका मानना है कि वह नेत्रहीन हैं, लेकिन वह किसी से कम नहीं हैं. दीपावली और बाल दिवस के मौके पर वह दोस्तों से मिलेंगे और प्रैक्टिस करेंगे. दीपक बताते हैं कि साल 2009 में आए थे. खुद में बहुत बदलाव देखते हैं. वह कहते हैं कि अब वह पढ़ाई कर लेते हैं और म्यूजिक टीचर बनने का सपना देख रहे हैं.

पढ़ें- देशभर में दीपावली की धूम, राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री ने दी देशवासियों को बधाई

गोविंद का मानना है कि आंखों की रोशनी नहीं है तो भी हम सब कुछ कर सकते हैं. मन की आंख तो है ही. कुछ सुनते हैं तो दिमाग में कॉपी हो जाता है. कोई बजाता है तो उसका चित्र हमारे मन में आ जाता है. पढ़ाई भी कर लेते हैं, चल लेते हैं. गेम भी खेल लेते हैं और मेहनत जारी है, उन्हें एक महान संगीतकार बनना है.

वहीं, टीचर सुनीता बताती हैं कि बच्चे तो नेत्रहीन हैं, लेकिन सब कुछ जानते हैं. रामायण भी करते हैं और इनको सब कुछ सिखाया जाता है. उन्होंने बताया कि हॉस्टल में फ्री में सब कुछ मिलता है. साथ ही उन्होंने कहा कि देश के अलग अलग राज्यों से यहां बच्चे आते हैं. उन्होंने कहा कि कई बच्चे ऐसे हैं, जो अलग-अलग मंत्रालयों में कार्यरत हैं.

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