मुंबई : साइरस मिस्त्री 2006 में टाटा संस से जुड़े थे. 2012 में उन्हें रतन टाटा की जगह टाटा संस का चेयरमैन बना दिया गया था. हालांकि, चार साल बाद यानी 2016 में उन्हें अचानक ही पद से हटा दिया गया. इसके बाद रतन टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच कानूनी लड़ाई शुरू गई.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक - टाटा ग्रुप और एसपी ग्रुप (शापूरजी ग्रुप) के बीच विवाद की कई वजहें हैं. इनमें चुनाव में कैसे चंदा दें, कौन से प्रोजेक्ट में निवेश करें, अमेरिकी फास्ट फूड चैन से जुड़ना है या नहीं और साइरस द्वारा बिना बताए ही टाटा संस के शेयर को गिरवी रख देना शामिल है. कहा जाता है कि रतन टाटा इस बात से खासे नाराज थे कि साइरस ने बिना बताए ही टाटा संस के शेयर को उन्होंने अपनी कंपनी बचाने के लिए गिरवी रख दी थी.
एक बिजनेस अखबार के अनुसार टाटा ने डिफेंस से जुड़े कॉन्ट्रैक्ट और टाटा पावर-वेल्सपन के बीच की डील पर साइरस की राय को नजरअंदाज कर दिया था. कहा जाता है कि साइरस 2014 में ओडिशा विधानसभा चुनाव के दौरान 10 करोड़ रु. का चंदा देना चाहते थे. रतन टाटा ने इस पर आपत्ति जताई थी. साइरस ने कहा कि ओडिशा में लोहा अयस्क है, इसलिए यहां पर चंदा देना सही होगा. रतन टाटा ने कहा कि हम जो भी चंदा देते हैं वह ट्रस्ट के जरिए देते हैं. वह भी मुख्य रूप से संसद के चुनाव के दौरान. रतन टाटा ने साइरस को ताकीद भी की थी कि आगे से इस तरह का कोई प्रस्ताव उनके पास न लाया जाए. मिस्त्री के करीबी बताते हैं कि मिस्त्री चाहते थे कि चंदा देने का फैसला उस राज्य की कंपनियों पर छोड़ दिया जाए. उनके अनुसार मिस्त्री यह भी चाहते थे कि चंदा इलेक्टोरल ट्रस्ट के जरिए हो. वह यह भी चाहते थे कि इसकी जानकारी सार्वजनिक हो.
जब साइरस टाटा संस के चेयरमैन बने थे, तब कंपनी का कारोबार 100 अरब डॉलर का था. मिस्त्री ने भरोसा दिया था कि वह 2022 तक टाटा संस को 500 अरब डॉलर वाली कंपनी बनाएंगे. लेकिन 2016 में ही उन्हें चलता कर दिया गया. तब टाटा के हवाले से यह खबर आई थी कि साइरस के आने से कंपनी के विकास की दर धीमी हो गई. कंपनी की साख पर आंच आई है. एनसीएलटी में विवाद पहुंचा. यहां पर साइरस ने कहा कि टाटा संस की प्रगति के बाधक खुद रतन टाटा और उनका प्रबंधन है.
साइरस चाहते थे कि टाटा अपने नैनो यूनिट को बंद कर दे. इंडियन होटल्स की महंगी खरीददारियों और टाटा डोकोमो के व्यवसाय से जुड़े साइरस ने जो फैसले लिए, रतन टाटा खुश नहीं थे. दरअसल, मिस्त्री चाहते थे कि टाटा ग्रुप पर जो कर्ज है, उसे कम करने के लिए कुछ परिसंपत्तियों की बिक्री आवश्यक है, इसलिए वह बहुत सी संपत्तियों को बेचना चाहते थे.