हैदराबाद: किसी बौद्ध भिक्षु का जिक्र हो तो ज़हन में महरून रंग की वेशभूषा में लिपटे तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा की छवि उभरती है. शांत चित्त, एकाग्र, सत्य, अहिंसा, सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय से लबरेज छवि, लेकिन फिलहाल बात ऐसे बौद्ध भिक्षु की करेंगे जो अहिंसा नहीं हिंसा को लेकर चर्चा में रहा. इसी वजह से उसने टाइम मैगजीन के कवर पर भी जगह बनाई और बिन लादेन का तमगा भी मिला. फिलहाल वो जेल से रिहा हो गया है. आखिर कौन हैं ये बौद्ध भिक्षु ? क्यों जाना पड़ा था जेल ? बौद्ध भिक्षु का क्या है बिन लादेन कनेक्शन ? जानने के लिए पढ़िये ईटीवी भारत एक्सप्लेनर (etv bharat explainer)
मामला क्या है ?
म्यांमार के बौद्ध भिक्षु अशिन विराथु को सोमवार 6 सितंबर को जेल से रिहा कर दिया गया. वो मुस्लिम विरोधी टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं और मई 2019 में यंगून सरकार का विरोध और नेता आंग सान सू की (Aung San Suu Kyi) पर अभद्र टिप्पणी करने का आरोप लगा था. भगौड़ा घोषित किए जाने के बाद नवंबर 2020 में उन्होंने खुद को कानून के हवाले किया. इस साल फरवरी में सेना म्यांमार की सत्ता पर काबिज हुई और अब उनपर लगे सभी आरोप हटा दिए गए हैं.
एक बौद्ध भिक्षु, जिसपर हिंसा भड़काने के हैै आरोप कौन हैं अशिन विराथु ?
10 जुलाई, 1968 को बर्मा के मांडले में जन्में अशिन विराथु ने महज 14 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया और बौद्ध भिक्षु बन गए. ये बौद्ध भिक्षु पहली बार नज़र में तब आया जब साल 2001 के दौरान म्यांमार में '969 आंदोलन' से जुड़ गए. ये एक राष्ट्रवादी आंदोलन था और बौद्ध देश म्यामांर में बढ़ती मुस्लिम आबादी के खिलाफ था. इस संगठन और आंदोलन से जुड़े लोगों को कट्टरपंथी माना गया हालांकि इसके समर्थक इस बात से इनकार करते रहे हैं.
भगवान बुद्ध के 969 के अर्थ का अनर्थ
अशिन विराथु की छवि एक कट्टरपंथी बौद्ध भिक्षु की है. अपने कट्टरपंथी भाषणों की वजह से वो कई बार सवालों के घेरे में रहे हैं. अपने ऐसे ही भाषणों से मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ माहौल बनाने के आरोप लगते रहे हैं. 969 मतलब भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का सार, पहले 9 का मतलब बुद्ध के नौ ख़ास गुण, 6 मतलब बुद्ध के बताए छह कर्म और आख़िरी वाले 9 का मतलब है बुद्ध द्वारा स्थापित नौ विशेष चरित्र. कुल मिलाकर 969 को बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध के 3 रत्न माना गया है लेकिन म्यांमार के 969 आंदोलन में इसके अर्थ का अनर्थ हो गया.
आंग सान सू की और उनकी सरकार पर की अशिन विराथु ने की भी अभद्र टिप्पणी इस आंदोलन के जरिये म्यांमार के मुस्लिमों को निशाना बनाया गया. कहा जाता है कि विराथु ने लोगों से मुस्लिम दुकानदारों के बहिष्कार की अपील की, बौद्धों के घरों और दुकानों को 969 लिखकर चिन्हित किया गया और बौद्धों को सिर्फ बौद्धों की दुकान से सामान खरीदने की अपील की गई. कहते हैं कि इस आंदोलन के दौर में विराथु के भाषणों की सीडी बिकने लगी थी और रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ नफरत ने हिंसा को जन्म दिया जिसमें मुस्लिम समुदाय के 10 लोग मारे गए. 2003 में विराथु को 25 साल की सजा सुनाई गई
विवादों से है पुराना नाता
'969 आंदोलन' के दो साल बाद साल 2003 में उन्हें अपने उपदेशों के चलते 25 साल की सजा सुनाई गई. लेकिन करीब 9 साल बाद ही उन्हें अन्य राजनीतिक कैदियों के साथ रिहा कर दिया गया. इसके बाद म्यांमार में सरकार की तरफ से ढील दी जाने लगी तो वो फेसबुक समेत कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सक्रिय हो गए. चेतावनी के बाद भी धार्मिक रूप से भड़काऊ सामग्री पोस्ट करने पर फेसबुक ने उनके पेज को बंद कर दिया था.
अपने भाषणों के चलते वो सुर्खियों में रहते आए हैं विराथु के निशाने पर रहते हैं रोहिंग्या मुसलमान (rohingya muslims)
विराथु ने हमेशा से म्यांमार में बढ़ती मुस्लिम आबादी का विरोध किया है, खासकर रोहिंग्या मुसलमान उनके निशाने पर रहते हैं. वो अपनी रैलियों में रोहिंग्या मुसलमानों को देश से निकालकर किसी अन्य देश भेजने की बात कहते, म्यांमार में होने वाली हिंसक झड़पों के लिए वो मुसलमानों और उनके प्रजनन दर को जिम्मेदार ठहराते हैं. इसके अलावा बौद्ध महिलाओं के जबरन धर्मांतरण का भी वो आरोप लगाते हैं.
साल 2012 में जब राखिने प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्धों के बीच हिंसा भड़की तो वे अपने भड़काऊ भाषणों के साथ लोगों की भावनाओं से जुड़ गए. वो कहते रहे हैं कि एक दिन मुस्लिम म्यांमार में अल्पसंख्यक नहीं रहेंगे, उनके ऐसे बयान लोगों की भावनाओं को भड़काने का काम करते. उनकी छवि और विचार के खिलाफ भी लोग रहे हैं लेकिन म्यांमार का एक बड़ा तबका उनकी राष्ट्रवादी सोच के साथ और रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ खड़ा रहा है.
विराथु का कहना था कि रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार के नहीं हैं वो घुसपैठिये हैं. इसलिये बौद्ध धर्म, संस्कृति, पहचान और देश को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. वो अपने हर विचार, कदम, आंदोलन को आत्मरक्षा बताते हैं.
वो रोहिग्याओं को म्यांमार के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते रहे हैं सरकार का भी मिला साथ
म्यांमार में विराथु के मुस्लिम विरोध को देखते हुए सरकार का समर्थन उन्हें मिलता रहा. साल 2015 में एक बौद्ध युवती के साथ बलात्कार की एक झूठी ख़बर फैली. जिसके बाद विराथु ने सोशल मीडिया पर खूब भड़काऊ पोस्ट लिखे. जैसे जैसे अफवाह फैलती गई वैसे-वैसे हिंसा बढ़ती गई. इस बीच राष्ट्रपति थेन सेन (Thein Sein) रोहिंग्या मुसलमानों को किसी और देश भेजने की योजना लेकर आ गए. उनकी योजना रोहिंग्याओं को UNHCR (United Nations High Commissioner for Refugees) को सौंपने की थी, उसके बाद जो देश रोहिंग्याओं को अपनी शरण में लेना चाहे ले सके. लेकिन UNHCR ने राष्ट्रपति की निंदा करते हुए इसे खारिज कर दिया.
विराथू ने राष्ट्रपति थेन सेन (बाएं) की रोहिंग्याओं को म्यांमार से हटाने की योजना का समर्थन किया विराथु ने खुलकर इस योजना का समर्थन किया और रोहिंग्याओं को देश से हटाने के लिए खूब रैलियां निकाली. जिसका असर बड़े स्तर पर हिंसा के रूप में सामने आया. विराथु की लोकप्रियता बढ़ती रही और अपनी योजना को समर्थन मिलते देख सरकार ने भी इसे बढ़ावा दिया. कई जगह दंगे हुए और रोहिंग्याओं को निशाना बनाया गया और एक वक्त ऐसा आया कि रोहिंग्या मुसलमानों का बर्मा से दूसरे देशों की ओर रुख करना भारत समेत पड़ोसी देशों के लिए मुसीबत बन गया.
टाइम मैगजीन का कवर पर विराथु
एक जुलाई, 2013 को मशहूर टाइम मैगज़ीन ने उन्हें कवर पेज पर छापा और 'द फ़ेस ऑफ बुद्धिस्ट टेरर' यानि 'बौद्ध आतंक का चेहरा' उसकी हेडलाइन दी. मैगजीन के इस अंक को म्यांमार में बैन कर दिया गया टाइम के लेख के जवाब में राष्ट्रपति ने विराथु को 'भगवान बुद्ध का पुत्र' बता दिया.
टाइम के कवर पेज को लेकर विराथु ने कहा कि मुझे जान-बूझकर निशाना बनाया जा रहा है. दुनिया अल्पसंख्यकों के रूप में मुस्लिमों को दया भाव से देखती है. लेकिन उन्हें जानिए, तो पता चलता है कि ये छोटा सा समूह कितना ग़लत है. ये लोग कितना नुकसान पहुंचाते हैं. सिर्फ हमारा धर्म ख़तरे में नहीं है. पूरा देश ख़तरे में हैं. जिस तरह उन्होंने पाकिस्तान और बांग्लादेश बनाया, उसी तरह 2010 से वो बर्मा को इस्लामिक स्टेट बनाने की कोशिशों में हैं.
टाइम मैगज़ीन कवर (फोटो ट्विविटर) अशिन विराथु 'बर्मा का बिन लादेन' (bin laden of burma)
एक बार विराथु से पूछा गया कि क्या वो ‘बर्मा के बिन लादेन हैं. विराथु ने कहा, वे इस बात से इनकार नहीं करेंगे. वैसे उनके कई ऐसे बयान हैं जिसने एक बौद्ध भिक्षु की छवि को यहां तक पहुंचा दिया है.
1 'आपके अंदर दया और प्रेम भरा हो सकता है. मगर इसका मतलब ये तो नहीं कि आप किसी पागल कुत्ते के बगल में सो जाएं'
2. मुसलमान अफ़्रीकी भेड़िए की तरह हैं. वो तेजी से आबादी बढ़ाते हैं. हिंसात्मक गतिविधियों में शामिल रहते हैं. आजू-बाजू के जानवरों को खा जाते हैं. संसाधनों को तबाह कर देते हैं.
3. मैं तो अपने प्रियजनों की रक्षा कर रहा हूं. जिस तरह आप अपने प्रियजनों की रक्षा करेंगे. मैं तो बस लोगों को मुस्लिमों के प्रति आगाह कर रहा हूं. सोचिए, अगर आपके पास एक कुत्ता होता. अगर आपके घर में कोई अजनबी आता, तो वो कुत्ता भौंकता. ताकि आपको सावधान कर सके. मैं उसी कुत्ते की तरह हूं. मैं भौंककर सावधान करता हूं.
4. म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार की विशेष प्रतिनिधि यांग ली को भी विराथु ने 'वेश्या' कह दिया था. रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थन के आरोप में विराथु ने कहा कि 'सिर्फ इसलिये कि आप संयुक्त राष्ट्र के लिए काम करती हैं, आप सम्मानित महिला नहीं बन जातीं, हमारे देश में आप सिर्फ एक वेश्या हैं'
अशिन विराथु की छवि एक 'राष्ट्रवादी' बौद्ध भिक्षु की है एक 'राष्ट्रवादी' बौद्ध भिक्षु
मांडले, म्यांमार का दूसरा सबसे बड़ा शहर है, जहां विराथु का जन्म हुआ. कहते हैं कि विराथु का मठ इसी शहर में है, जिसके प्रवेश द्वार पर कथित रूप से मुस्लिमों द्वारा मारे गए बौद्धों की तस्वीरें लगाई गई हैं. अगर ये सच भी है तो एक बौद्ध भिक्षु इन तस्वीरों को लगाकर क्या संदेश देना चाहता है. वो अपने हर बयान को म्यामांर की भलाई से जोड़ देते हैं.
विराथु भले एक बौद्ध भिक्षु हों लेकिन बुद्ध के अहिंसा और धर्म के पाठ से अलग उनकी राह हिंसा की ओर जाती है. बौद्ध धर्म सत्य, अहिंसा, भाई चारे और मिलकर रहने का संदेश देता है, जैसा कि तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा. लेकिन विराथु भले खुद को इसी राह पर मानते हों लेकिन उनकी सोच इससे बिल्कुल परे है. म्यांमार के कई लोग मानते हैं कि डर इस बात का है कि वीराथु बाहरी दुनिया के सामने बर्मा के बौद्ध समुदाय का चेहरा बनकर उभर रहे हैं और एक बात तो तय है कि वे इसकी नुमाइंदगी नहीं करते हैं.
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