हैदराबाद : विधानसभा चुनाव से पहले चुनावी बॉन्ड पर फिर से बहस छिड़ गई है. मोदी सरकार का दावा है कि बॉन्ड की प्रक्रिया अपनाने से राजनीतिक दलों को सहूलियत होगी. वहीं विपक्षी दलों का दावा है कि इससे ब्लैक मनी को और अधिक बढ़ावा मिलेगा. उनका कहना है कि बॉन्ड की प्रक्रिया इस तरह से बनाई गई है, जिससे भाजपा को फायदा पहुंचे. कौन है चंदा देने वाला, उनके नामों का खुलासा नहीं किया जा सकता है.
चुनावी बॉन्ड के खिलाफ दाखिल हुई याचिका
इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाने के लिए 2017 में एक याचिका लगाई गई है. सुप्रीम कोर्ट 24 मार्च को इस पर सुनवाई करेगी. याचिका सीपीआई (एम), गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से दाखिल की गई है.
वित्त विधेयक 2017 को मिली चुनौती
याचिका में वित्त विधेयक 2017 को चुनौती दी गई है. इलेक्टोरल बॉन्ड इस विधेयक के साथ ही संलग्न था. इलेक्टोरल बॉन्ड के लिए कंपनी एक्ट, इनकम टैक्स एक्ट, लोकप्रतिनिधि एक्ट, फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट में संशोधन किया गया था.
याचिकाकर्ता की दलील
कंपनी एक्ट में संशोधन करने से कंपनियों के हितों को प्राथमिकता मिलेगी. आम लोगों की जरूरतें पीछे रह जाएंगी.
अब तक सुनवाई में क्या हुआ
लोकसभा चुनाव 2019 के पहले इस याचिका पर सुनवाई हुई थी. हालांकि, तब तक बॉन्ड खरीदे जाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी. तीन जजों की बेंच ने सुनवाई की थी. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना इस बेंच में शामिल थे. बेंच ने राजनीतिक पार्टियों से 30 मई 2019 तक जवाब मांगा था. चुनाव आयोग पहले ही अपना शपथ पत्र दाखिल कर चुका है. आयोग को बॉन्ड पर आपत्ति नहीं है, लेकिन इसकी पारदर्शिता को लेकर महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं.
क्या है केंद्रीय सूचना आयोग का पक्ष
केंद्रीय सूचना आयोग ने माना कि राजनीतिक दलों के नामों का खुलासा, जिनका योगदान चुनावी बॉन्ड और उसके तहत किया जाता है, सार्वजनिक हित में नहीं है.
इलेक्टोरल या चुनावी बॉन्ड क्या है
इलेक्टोरल बॉन्ड या चुनावी बॉन्ड एक वचन पत्र की तरह है. इसे भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीदा जा सकता है. कोई भी व्यक्ति या कंपनी इसे खरीद सकती है. वे अपनी पंसद की राजनीतिक पार्टियों को योगदान कर सकते हैं. यह ब्याज मुक्त होता है. इन बॉन्ड को डिजिटल या चेक के माध्यम से खरीदने की अनुमति है.
कब पारित हुआ था विधेयक
चुनावी बॉन्ड को वित्त विधेयक 2017 के साथ पेश किया गया था. 29 जनवरी 2018 को एनडीए सरकार ने इसे अधिसूचित किया था.
चुनावी बॉन्ड का उपयोग करना कितना आसान
इलेक्टोरल बॉन्ड का उपयोग करना काफी सरल है. बॉन्ड हजार रुपये के मल्टीपल्स में उपलब्ध हैं. एक हजार, दस हजार, एक लाख और एक करोड़ का. एसबीआई की चुनिंदा शाखा से कोई भी ग्राहक खरीद सकता है, बशर्ते उसका केवाईसी वेरिफाइड हो चुका हो. खरीदने के बाद वह किसी भी राजनीतिक पार्टी को चंदा दे सकता है. चंदा प्राप्त करने वाली पार्टी चुनाव आयोग द्वारा सत्यापित खाते में जमा कराएगी. बॉन्ड की मान्यता मात्र 15 दिनों की होगी.