रांची: हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1994 में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में घोषित किया. आदिवासियों के सम्मान में यह दिवस मनाया जाता है. इसके माध्यम से आदिवासी संस्कृति को जानने, आदिवासियों को पहचानने और उनसे जुड़े मुद्दों को जानने की कोशिश की जाती है.
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आदिवासियोंं का इतिहासःआदिवासियों का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है. इनकी गाथा भी काफी गौरवमयी है. विश्व के लगभग 90 देशों में आदिवासी समाज के लोग रहते हैं. दुनिया भर में इनकी आबादी लगभग 40 करोड़ होगी. आदिवासी समाज के लोग आज भी अपनी सभ्यता-संस्कृति को संजोए हुए हैं. भारत में आदिवासियों की जनसंख्या लगभग 10 करोड़ होगी. आदिवासी का अर्थ होता है मूलवासी. भारतीय संविधान की 5वीं अनुसूची में जनजातीय समुदायों को मान्यता दी गई है. देश में 645 प्रकार की जनजातियां हैं. संविधान में इनके लिए कई व्यवस्था की गई है.
आदिवासी संस्कृति और सभ्यताःआदिवासी बेहद शांतिप्रिय होते हैं. कभी किसी के अधिकारों का हनन नही करते हैं. यहां चलना ही नृत्य और बोलना ही गीत होता है. इसके बावजूद इतिहास में आदिवासी समाज की कई वीर गाथा दर्ज है. अपने आत्मसम्मान और अधिकारों के लिए इन्होंने हमेशा अपनी आवाज बुलंद की है.
झारखंड में आदिवासीःझारखंड आदिवासी बहुल राज्य है. यहां कुल 32 जनजातियां निवास करती हैं. संविधान में आदिवासियों के लिए अनुसूचित जनजाति शब्द का इस्तेमाल किया गया है. इसके अलाव कुछ आदिवासी समुदाय को आदिम जनजाति की श्रेणी में रखा गया है. देश के कई राज्यों में आदिवासी अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते हैं. जबकि मिजोरम में ये बहुसंख्यक हैं. झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आध्र प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल देश के ऐसे राज्य हैं, जहां आदिवासी समाज के लोग निवास करते हैं.
आदिवासियों के पर्वः आदिवासी समाज प्रकृति प्रेमी होते हैं. इसलिए इनके पर्व प्रकृति से जुड़े हैं. ये लोग प्रकृति की उपासना करते हैं. आदिवासियों के प्रमुख पर्व सरहुल, करमा, जावा, टुसू, बंदना, जनी शिकार है. आदिवासियों में बलि प्रथा भी खूब चलती है. ये मूर्ति पूजा भी करते हैं.
आदिवासियों के गीत और नृत्यःआदिवासी समाज के लोग स्वभाव से ही शांतिप्रिय, संस्कृति प्रेमी होते हैं. इनकी भाषा और संस्कृति बेहद ही प्रिय है. इनके गीतों और नृत्यों में आदिवासी समाज की विविधता दिखती है. आदिवासी समाज पर्व त्योहार के मौके पर खूब नाचते गाते हैं. इनके वाद्य यंत्र भी काफी पारंपरिक हैं. आदिवासियों के प्रमुख नृत्य हैं नटुआ नाच, झूमर, छऊ, डमकच.
भले ही आज के दिन को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है. लेकिन आज दुनिया के अलग-अलग इलाकों में कई जनजातियां लुप्त होने की कगार पर हैं. वजह आधुनिकता से कम जुड़ाव होना है. भारत में भी ऐसे हालात हैं. आदिवासियों के उत्थान और विकास के लिए कई तरह की कोशिश की जा रही है. झारखंड आदिवासी बहुल राज्य है. इसलिए यहां भी इनके लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. समय-समय पर कई कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है.