देवघर : झारखंडरोपवे हादसे (Jharkhand Ropeway Incident) के बाद अचानक त्रिकुट पर्वत सुर्खियों में आ गया. रविवार को हुए रोपवे हादसे में यहां एक साथ 63 जिंदगियां फंस गई. तीन दिनों तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन में 60 लोगों को सुरक्षित निकाला गया, जबकि तीन लोगों की जान नहीं बचाई जा सकी. आखिर लोग यहां क्यों घुमने आते हैं, त्रिकुट पर्वत पर क्या है खास...
रावण का हेलीपैड : बाबानगरी देवघर से महज 20 किलोमीटर दूर हरीभरी वादियों के बीच तीन चोटियों वाला त्रिकूट पर्वत मौजूद है. मान्यता है कि इस पहाड़ की कहानी त्रेता युग से जुड़ी हुई है. यहां रावण और जटायू के बीच युद्ध हुआ था. लोगों का ये भी मानना है कि यहां रावण का हेलीपैड था और वो यहां अपने पुष्पक विमान से आता और तपस्या करता था. यहां एक तरफ एशिया का सबसे ऊंचा रोपवे पर्यटकों को आकर्षित करता है तो वहीं दूसरी तरफ विश्व का सबसे बड़ा शालिग्राम पत्थर भी लोगों को अपनी तरफ खींच लाता है.
रावण और जटायू के बीच हुआ था युद्ध : देवघर के कंकड़-कंकड़ में शंकर का वास है. कहा जाता है कि देवघर में जितने भी धार्मिक स्थल हैं उसकी प्रमाणिकता भी मौजूद है. देवघर से महज 20 किलोमीटर दूर हरीभरी वादियों के बीच तीन चोटियों वाला त्रिकूट पर्वत मौजूद है. मान्यता है कि इस पहाड़ की कहानी त्रेता युग से जुड़ी हुई है. यहां रावण और जटायू के बीच युद्ध हुआ था. लोगों का ये भी मानना है कि यहां रावण का हेलीपैड था और वो यहां अपने पुष्पक विमान से आता और तपस्या करता था.
क्यों कहा जाता है त्रिकुट पर्वत : मान्यता है कि यहां पर रावण को एक साथ ब्रम्हा, विष्ण और महेश का दर्शन हुआ था. यहां जो पहाड़ है उसके तीन शिखर हैं, जिन्हें ब्रम्हा, विष्णु और महेश के रूप में जाना जाता है. पहाड़ की तराई में बाबा त्रिकुटेश्वर नाथ का मंदिर है. मान्यता है कि इसकी स्थापना रावण ने ही की थी. लोगों का कहना है कि यहां माता सीता ने जो दीप जलाया था, वह आज भी मौजूद है. इसे देखने दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं.