हैदराबाद : पश्चिम बंगाल में विधान परिषद के गठन को मंजूरी मिल गई है. विधानसभा में इसके समर्थन में 196 मत पड़े. संविधान की धारा 169 के तहत राज्य में विधान परिषद का गठन किया जा सकता है. हालांकि, इस पर अमल तभी हो सकेगा, जब इसे संसद की दोनों सदनों से मंजूरी मिल जाए. यानी इसे लोकसभा और राज्यसभा दोनों से मंजूरी लेनी होगी.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा के दौरान ही विधान परिषद के गठन का वादा किया था. आपको बता दें कि बंगाल विधानसभा में कुल 294 सीटें हैं. इसलिए विधान परिषद में सीटों की संख्या विधानसभा में कुल सीटों की संख्या का एक तिहाई हो सकती है. यह संख्या 98 होती है.
दिलचस्प ये है कि प. बंगाल में विधान परिषद की व्यवस्था पहले थी. लेकिन 21 मार्च 1969 को इसे खत्म कर दिया गया था.
भारत के छह राज्यों में द्विसदनात्मक व्यवस्था है. यानी इन राज्यों में विधानसभा के साथ विधान परिषद भी काम करती है. द्विसदन वाले राज्य हैं- उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र. ओडिशा, राजस्थान और असम ने राज्य में विधान परिषद लाने के लिए प्रस्ताव पारित किया है. लेकिन उसे अभी तक ऊपर से मंजूरी नहीं मिली है.
कैसे होता है विधान परिषद का गठन और विघटन
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत राज्य विधान परिषद बना भी सकते हैं और खत्म भी कर सकते हैं. राज्य से विधान परिषद का गठन और खत्म करने के लिए विधानसभा में विशेष प्रस्ताव लाया जाता है. विशेष प्रस्ताव का मतलब है कि कुल सदस्यों के दो तिहाई मतों से यह प्रस्ताव हो. इसके बाद यह प्रस्ताव संसद के पास जाता है. वहां पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी की जरूरत होती है. यदि इस प्रस्ताव पर राष्ट्रपति की मुहर लग जाती है, तो यह प्रस्ताव पास हो जाता है.
विधान परिषद के लिए सदस्यों का चुनाव
विधान परिषद के एक तिहाई सदस्य राज्य के विधानसभा सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं. अन्य एक तिहाई सदस्य एक विशेष निर्वाचक मंडल द्वारा निर्वाचित होते हैं, जिसमें नगर पालिकाओं, जिला बोर्डों और अन्य स्थानीय निकायों के सदस्य शामिल होते हैं.